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दास्तान-गो : एक हादसा जिसने अमिताभ बच्चन को ‘महानायक’ होने का एहसास दिया

Daastaan-Go ; Amitabh Bachchan Accident’s Story : अमिताभ बच्चन किसी तरह के ऑपरेशन, इलाज, दवा वग़ैरा पर ज़वाबी हरकत नहीं कर रहे थे. नब्ज़ डूब रही थी. नसों में खून का दौड़ना रुक गया था, कुछ देर के लिए. वे कोमा में चले गए. तब उन्हें वेंटिलेटर पर रखने के बाद डॉक्टरों को मज़बूरन कहना पड़ा कि अमिताभ बच्चन ‘क्लीनिकली डेड’ हो चुके हैं. यानी ऐसा, शख़्स जिसका शरीर कोई हरक़त नहीं करता. बस दिमाग चलता रहता है.

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जनाब, हिन्दी फिल्मों में ‘सितारे’ बहुत हुए हैं. पर कुछ चंद हुए, जिन्हें ‘महा-सितारा’ (सुपर-स्टार) होने का दर्ज़ा मिला. इसी तरह ‘नायक’ खूब हुए. मगर सिर्फ़ एक हैं, जिन्हें ‘महानायक’ का ख़िताब मिला. इनका नाम है, अमिताभ श्रीवास्तव. इन्हें लोग अमिताभ ‘बच्चन’ के नाम से जानते हैं. क्योंकि इनके पिता ‘महाकवि’ हरिवंश राय श्रीवास्तव ने अपना तख़ल्लुस (उपनाम) ‘बच्चन’ रखा हुआ था, जो आगे उनकी और उनके परिवार की पहचान बन गया. तो जनाब, ये जो ‘महानायक’ का ख़िताब अमिताभ बच्चन साहब को मिला, वह उन्हें हिन्दुस्तान की अवाम ने दिया है. उनके चाहने वालों ने. इसका एहसास शायद उन्हें भी तब तक नहीं रहा होगा, जब तक उनके साथ वह हादसा न हुआ. हादसा, जिसमें उनकी जान पर बन आई. बल्कि बन क्या आई, कुछ वक़्त के लिए तो उनकी सांसें थम ही गई थीं. लेकिन फिर दुआओं ने असर दिखाया. उनकी दोबारा पैदाइश हुई.

यह 26 जुलाई 1982 की बात है. बेंगलुरू के यूनिवर्सिटी कैंपस में अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘कुली’ की शूटिंग चल रही थी. फिल्मकार मनमोहन देसाई की इस फिल्म में एक सीन के दौरान अमिताभ बच्चन को अपने साथी अदाकार पुनीत इस्सर के साथ मार-पीट करनी थी. वही पुनीत, महाभारत सीरियल में जो ‘दुर्योधन’ बने थे. बड़ी मज़बूत क़द-काठी के आदमी हैं. तो, फिल्म के सीन में उनका घूंसा खाकर अमिताभ साहब को गिर जाना था. पीछे लोहे की टेबल रखी थी. उस पर. तय सिलसिले के मुताबिक, डायरेक्टर ने लाइट, कैमरा, एक्शन कहा और लड़ाई शुरू हो गई. और जैसे ही दोनों लोहे की टेबल के पास पहुंचे पुनीत इस्सर ने घूंसा मारा. अमिताभ बच्चन गिरे. लेकिन पता नहीं क्या हुआ. उनसे अंदाज़ा लगाने में ग़लती हुई या उनका संतुलन बिगड़ा. जैसे ही गिरे लोहे की टेबल का कोने वाला हिस्सा उनकी आंतों को चीरते हुए गहरे तक उनके पेट में जा घुसा.

लहूलुहान अमिताभ साहब के गिरते ही सैट में हड़कंप मच गया. आनन-फ़ानन में एंबुलेंस बुलाई गई. शहर के सबसे अच्छे अस्पतालों में गिने जाने वाले सेंट फिलोमिना अस्पताल में उन्हें दाख़िल कराया गया. अंदर भी खून काफ़ी बह चुका था. डॉक्टरों ने अगले चार-पांच दिनों तक ज़रूरत के मुताबिक उनके कई ऑपरेशन किए. लेकिन अमिताभ बच्चन किसी तरह के ऑपरेशन, इलाज, दवा वग़ैरा पर ज़वाबी हरकत नहीं कर रहे थे. नब्ज़ डूब रही थी. नसों में खून का दौड़ना रुक गया था कुछ देर के लिए. वे कोमा में चले गए. तब उन्हें वेंटिलेटर पर रखने के बाद डॉक्टरों को मज़बूरन कहना पड़ा कि अमिताभ बच्चन ‘क्लीनिकली डेड’ हो चुके हैं. यानी ऐसा, शख़्स जिसका शरीर कोई हरक़त नहीं करता. बस दिमाग चलता रहता है, जो उसके बे-जान से ज़िस्म के ज़िंदा होने का ए’लान करता रहता है. जनाब, ये ख़बर आनी थी कि पूरा देश ही सन्न रह गया उसे सुनकर.

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अमिताभ साहब के चाहने वाले तो बे-हाल ही हो गए. हिन्दुस्तान के क़रीब-क़रीब हर हिस्से में दुआओं का, प्रार्थनाओं का सिलसिला चल पड़ा. मंदिर, गुरुद्वारा, गिरिजाघर, मस्जिद. ऐसी कोई जगह नहीं थी, जहां अमिताभ बच्चन की सलामती की दुआएं करने के लिए हाथ ऊपर वाले की तरफ़ न उठे हों. लोग बिना जूते-चप्पलों के मीलों दूर पैदल चल-चलकर सिद्ध स्थानों पर जाते और मन्नत मांगते. बस एक कि किसी भी तरह उनके चहीते सितारे के ज़िस्म में जान लौटा दे. बताते हैं, उन दिनों में लोगों के कान रेडियो, टीवी पर लगे रहते थे. यह ख़बर सुनने के लिए कि अमिताभ बच्चन की हालत अब कैसी है. सुबह-सुबह घर में अख़बार आते ही निग़ाहें उस पर टिक जातीं. यह जानने की ग़रज़ से कहीं कोई ख़बर उनके बारे में अच्छी पढ़ने को मिल जाए. कहते हैं, हिन्दुस्तान के बाहर मुल्कों में भी अमिताभ साहब के चाहने वालों के हाल कुछ इसी तरह के हो रहे थे, उस वक़्त.

जनाब सोचिए, कि जब चाहने वालों का ये हाल हुआ तो घरवालों का कैसा रहा होगा. अमिताभ साहब को हादसे के पांचवें दिन बेंगलुरू से मुंबई ले आया गया था. वहां ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्हें दाख़िल कराया गया था. ख़ानदान के सभी लोग उनकी मिज़ाज-पुर्सी में घर और अस्पताल एक किए हुए थे. अमिताभ साहब के छोटे भाई अजिताभ लगातार अस्पताल में ड्यूटी बजा रहे थे. जनाब, कुछेक साल पहले बीते ज़माने की मशहूर अदाकारा सिम्मी ग्रेवाल के शो में बातचीत के लिए अमिताभ साहब पूरे परिवार के साथ आए थे. मतलब साथ में उनकी बेगम जया बच्चन, साहबज़ादे अभिषेक और बेटी श्वेता भी थीं. सभी ने शो के दौरान उस हादसे के वक़्त हुए तज़रबे साझा किए थे.

बच्चे तो दोनों ही छोटे थे उस वक़्त. श्वेता आठ और अभिषेक छह साल के थे. उन्हें तो ज़्यादा कुछ याद नहीं था. पर जया के लिए तो भूलने जैसा भी कुछ नहीं था. हर चीज याद की उन्होंने तब. जया ने बताया, ‘अभिषेक को उस वक़्त अस्थमा का बड़ा तेज दौरा पड़ा था, स्कूल में. वज़ह तो हमें ठीक-ठीक पता नहीं चली थी तब. लेकिन बाद में जब हालात ठीक हो गए, तो मैंने अपनी भतीजी से इस बारे में पूछा था. वह अभिषेक के बराबर ही है. उसी के स्कूल में पढ़ा करती थी. उसने बताया कि अभिषेक को उसकी कक्षा के किसी लड़के ने कहा था- तुम्हारे पिताजी मरने वाले हैं. इसके बाद उसे अस्थमा का दौरा पड़ा था.’ ऐसे ही जया वह मौका बताती हैं, जब मुंबई के डॉक्टरों ने अमिताभ साहब को ‘मरा हुआ सा’ (क्लीनिकली डेड) बता दिया था. उस वक़्त जया अस्पताल में नहीं थीं.

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जैसा कि वे बताती हैं, ‘मैं जब लौटी तो मेरे देवर ने कहा- अरे, आप कहां थीं. मैं कब से आपको ढूंढ रहा हूं. मैंने बताया कि घर गई थी. बच्चों को देखने के लिए. लेकिन उन्होंने मेरी बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया शायद. बोले- तुरंत चलिए मेरे साथ. इसके बाद हम भागे-भागे वहां गए, जहां अमित जी को रखा गया था. वहां पहुंचने के बाद देवर ने मुझे हौसला दिया और फिर बताया कि अमित जी कोमा में चले गए हैं. मेरे तो पैरों से ज़मीन ही खिसकने लगी. लेकिन मैंने ख़ुद से कहा- नहीं, ये नहीं हो सकता. ये मुमकिन नहीं है. मैं अपने हाथ में हनुमान चालीसा लिए हुए थी. तभी डॉक्टर दस्तूर (जो अमित जी का इलाज़ कर रहे थे) सामने से गुज़रे. उन्होंने मुझे देखा तो ठहरे. हौसला दिया. और बस, इतना कहा कि अब आप सबकी दुआएं ही कोई चमत्कार कर सकती हैं.’

ख़ुद अमिताभ साहब ने बताया, ‘बेंगलुरू में जो ऑपरेशन हुए, वे इमरजेंसी में किए गए थे. इसके बाद जब हम मुंबई आए तो यहां फिर ऑपरेशन किया गया. आंतों में गहरे घाव हो चुके थे. उन्हें ठीक करने के लिए. लेकिन इस ऑपरेशन से पहले मुझे बेहोश करने के लिए जो दवा दी गई थी, उसका असर तय वक़्त के बाद भी ख़त्म नहीं हुआ. ऑपरेशन पूरा हो जाने के बाद भी मुझे होश नहीं आया. क़रीब 12 से 14 घंटे तक यही आलम रहा.’ जनाब, ये एक अगस्त की बात है. उससे आगे की कहानी जया बताती हैं, ‘जब डॉक्टर हताश  हो गए तो मेरे सामने भगवान का आसरा रह गया था. लेकिन आंखों से आंसुओं की झर-झर यूं थी कि हनुमान चालीसा में लिखा क्या है, वह भी दिखाई नहीं दे रहा था. पढ़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन पढ़ा नहीं जा रहा था. बार-बार मेरी निग़ाह अमित जी की तरफ़ चली जाती. वहां डॉक्टर अपनी तरफ़ से बीच-बीच में लगातार कोशिशें करते जाते थे.’

‘डॉक्टर अमित जी के सीने को दबा-दबाकर उनके दिल की धड़कनें शुरू करने की कोशिश कर रहे थे. दवाइयां, इंजेक्शन वग़ैरा दिए जा रहे थे. लेकिन तमाम कोशिशों का भी जब कोई असर न दिखा तो उन्होंने हार मान ली. कि तभी मेरी नज़र अमित जी के पैरों की तरफ़ पड़ी. उनमें मुझे हरकत होती दिखाई दी. मैं एकदम से बोल पड़ी- उनका पैरा हिला. अभी-अभी. उनका पैर हिला है. डॉक्टर और नर्सें भागकर उनके पास गए. फिर उन्होंने अपनी कोशिशें शुरू कीं और इस तरह धीरे-धीरे अमित जी के ज़िस्म में जान लौटी.’ जनाब, यह तारीख़ थी दो अगस्त की. आज इतने सालों बाद भी अमिताभ साहब इस तारीख़ को अपने दूसरे जन्मदिन की तरह याद किया करते हैं. उनके चाहने वाले इस तारीख़ को उन्हें ‘पुनर्जन्म की बधाइयां’ दिया करते हैं. और अमिताभ साहब सोशल मीडिया पर अक्सर उस हादसे और उसके बाद हुए इलाज़ वग़ैरा की यादें साझा किया करते हैं.

ऐसे ही एक मौके पर उन्होंने बताया था, ‘पूरे दो महीने अस्पताल में रहना पड़ा. इस दौरान जब उन डॉक्टरों, नर्सों ने पहली बार मुझे मेरे पैरों पर खड़ा किया तो लगा जैसे उनमें जान ही नहीं है. पैर बुरी तरह कांप रहे थे. पहली बार तो मैं खड़े होते ही ज़मीन पर गिर पड़ा. मुझे धीरे-धीरे फिर पैरों पर चलना सिखाया गया. जिस तरह किसी बच्चे को सिखाया जाता है, वैसे ही. अस्पताल में जो मरम्मत मेरे ज़िस्म की हुई थी, उसके बाद मैं अब पहले की तरह बिल्कुल नहीं रहा था. आगे भी नहीं रह सकता था. ज़िस्म का 75 फ़ीसद हिस्सा ख़त्म हो चुका था. बदला जा चुका था. चेहरा पहले की तरह नहीं रहा था. बाल पहले जैसे नहीं रहे थे. मुझे अब अपने इसी सच के साथ रहना था. मैं इसके सामने हार मान सकता था. घुटने टेक सकता था. या आगे चलते रहने का रास्ता चुन सकता था. मैंने अपने लिए दूसरा रास्ता चुना. लगातार चलते रहने का. चलते जाने का.’

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जनाब, उस हादसे से उबरने के बाद आख़िर वह तारीख़ भी आई, जब अस्पताल में ख़ुद के बल खड़े होने के लिए जूझने वाले अमिताभ पैरों से चलकर घर पहुंचे. तारीख़ 24 सितंबर 1982 की. अमिताभ बच्चन अपनी सफ़ेद एंबेसडर कार से अपने घर पहुंचे. बाहर माता-पिता, परिवार, खानदान के लोग उनकी अगवानी के लिए खड़े थे. जनाब, उस दौर का एक छोटा सा वीडियो दो-तीन साल पहले सोशल मीडिया पर आया था. उसमें कुर्ता-पायजामा पहने अमिताभ साहब कार से उतरते दिख रहे हैं. घर के बाहर शहइनाई और नगाड़े वालों को बिठाया गया है शायद. वीडियो में उन लोगों की ज़ानिब से बजाई जाने वाली ‘मंगल-धुन’ सुनाई दे रही है. शॉल ओढ़े हुए अमिताभ साहब कार से उतरकर सबसे पहले पिता के पैर छूते हैं. उन्हें देर तक गले लगाते हैं. फिर मां (तेजी बच्चन) के पैर छूते हैं. उन्हें गले लगाते हैं. बच्चों को गले लगाते हैं. आगे बढ़ते जाते हैं. ‘सुपर-सितारा नायक’ अमिताभ ‘महानायक’ होते जाते हैं.

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