जयपुर। राजस्थान सरकार द्वारा पिछले दिनों विधानसभा में पारित किया गया बाल विवाह रजिस्ट्रेशन विधेयक विवादों में फंस गया है। इस विधेयक के तहत अब राज्य में बाल विवाह का रजिस्ट्रेशन कराया जा सकेगा। इस विधेयक का राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीआरसी) ने विरोध किया है। एनसीपीआरसी के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो का कहना है कि इस कानून को किसी भी हालत में लागू नहीं होने दिया जाएगा। आयोग के विशेषज्ञ इस कानून का विधिक रूप से अध्ययन कर रहे हैं। यह बच्चों के अधिकारों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बने कानूनों का उल्लंघन हैं। राजस्थान सरकार का यह कानून चाइल्ड मैरिज एक्ट और पाक्सो एक्ट का उल्लंघन करता है। आयोग जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट जाएगा। उधर, भाजपा भी इस विधेयक के विरोध में है। राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष ममता शर्मा ने भी विधेयक पर आपत्ति जताई है।
यह विधेयक विधानसभा में हुआ पारित
राज्य विधानसभा में शुक्रवार को राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन संशोधन विधेयक पारित किया गया। इसके तहत बाल विवाह का रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक होगा। विधेयक में प्रावधान है कि शादी के वक्त लड़की की उम्र 18 साल से कम और और लड़के की उम्र 21 साल से कम है तो उनके माता-पिता को 30 दिन के भीतर इसकी सूचना रजिस्ट्रेशन अधिकारी को देनी होगी। बाल विवाह के मामले में लड़के और लड़की के माता-पिता तय प्रपत्र में जानकारी देंगे। इस पर बाल विवाह का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा।
सरकार ने कहा, रजिस्ट्रेशन का मतलब वैधता देना नहीं
बाल विवाह का रजिस्ट्रेशन विधेयक पारित होने के बाद से ही भाजपा इसका विरोध कर रही है। पहले विधानसभा में और अब बाहर भाजपा नेता इस विधेयक को गलत बता रहे हैं। भाजपा विधायक दल के नेता गुलाब चंद कटारिया, उप नेता राजेंद्र राठौड़ और महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुमन शर्मा का कहना है कि रजिस्ट्रेशन का मतलब बाल विवाह को वैध मानने जैसा है। यह बाल विवाह रोकने के लिए बने शारदा एक्ट का उल्लंघन है। वहीं, संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल का कहना है कि बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन का मतलब उन्हें वैधता देना नहीं है। बाल विवाह कराने वालों के खिलाफ रजिस्ट्रेशन के बाद भी कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में सीमा बनाम अश्वनी कुमार के मामले में फैसला देते हुए निर्देश दिए थे कि सभी तरह के विवाहों का रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य है।