नई दिल्ली: अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है और उसकी करेंसी डॉलर की पहचान एक ग्लोबल करेंसी के रूप में है। करीब 80 साल से पूरी दुनिया में डॉलर का डंका बज रहा है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में यह दुनियाभर में स्वीकार्य है। साथ ही दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों के पास जो विदेशी मुद्रा भंडार यानी फॉरेक्स रिजर्व है, उसमें बहुत बड़ा हिस्सा डॉलर का है। वैसे तो यूरो दुनिया की दूसरी बड़ी करेंसी है लेकिन यह डॉलर के मुकाबले कहीं नहीं है। डॉलर अमेरिका की मजबूती और उसकी अर्थव्यवस्था की ताकत का प्रतीक है। लेकिन हाल के वर्षों में डॉलर का वैश्विक व्यापार पर कब्जा कुछ हद तक हाल के वर्षों में ढीला हो गया है। इसकी वजह यह है कि बैंकों, कंपनियों और निवेशकों ने यूरो तथा चीन की करेंसी युआन की ओर रुख किया है।
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इसका कारण यह है कि डॉलर के दबदबे से पूरी दुनिया परेशान है। एपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक नाइजीरिया में कपड़ों की दुकान चलाने वाले किंग्सले ओडफे के पास अब कोई ग्राहक नहीं है। इस कारण उन्हें तीन कर्मचारियों को नौकरी से निकालना पड़ा है। उनकी समस्या की सबसे बड़ी वजह है नाइजीरियाई मुद्रा नाइरा के मुकाबले अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना। इससे कपड़ों और अन्य विदेशी सामानों की कीमत स्थानीय उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर हो गई है। दो साल पहले की तुलना में आयातित कपड़ों के एक बैग की कीमत तीन गुना महंगी हो गई है। इन दिनों इसकी कीमत लगभग 350,000 नाइरा, या 450 अमेरिकी डॉलर है। ओडफे ने कहा, ‘अब कोई बिक्री नहीं है। लोगों को पहले खाना चाहिए, फिर कपड़े खरीदने के बारे में सोचेंगे।’
तंग है दुनिया
विकासशील दुनिया में कई देश ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में अमेरिका के दबदबे से तंग आ चुके हैं। खासकर डॉलर की ताकत से वे परेशान हैं। वे अगले सप्ताह ब्रिक्स देशों के पास अपनी शिकायत दर्ज करने की तैयारी में हैं। ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। यह ग्रुप दूसरे उभरते बाजारों वाले देशों के साथ दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में मिलेगा।
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ब्रिक्स का गठन 2009 में शुरू हुआ था। 20 से अधिक देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। इनमें सऊदी अरब, ईरान और वेनेजुएला शामिल हैं। साल 2015 में ब्रिक्स देशों ने न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना की थी। इसे अमेरिका और यूरोपीय-प्रभुत्व वाले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का विकल्प माना जा रहा है।
लेकिन डॉलर के बारे में शिकायत करना आसान है लेकिन इसकी जगह लेना कतई आसान है। डॉलर वैश्विक व्यापार में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है। पहले भी इसे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। ब्रिक्स देश कई बार अपनी करेंसी शुरू करने का दावा कर चुके हैं लेकिन अब तक इस बारे में कोई ठोस प्रस्ताव सामने नहीं आया है। हालांकि, उभरते बाजारों ने अपनी करेंसी में व्यापार का विस्तार करने पर चर्चा की है ताकि वे डॉलर पर निर्भरता को कम कर सकें। जून में ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में, दक्षिण अफ्रीका की Naledi Pandor ने कहा कि ब्लॉक का नया विकास बैंक डॉलर और यूरो का विकल्प खोजेगा। इस दौरान रूस और चीन के विदेश मंत्री भी उनके साथ थे। ये दोनों देश दुनिया में अमेरिका के दबदबे को कम करना चाहते हैं।
आसान नहीं है रास्ता
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डॉलर की कमियां स्पष्ट हैं, तो इसके विकल्प नहीं हैं। दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोध फेलो और अंतरराष्ट्रीय वित्त में एक वकील डेनियल ब्रैडलो ने कहा, ‘अंत में, अगर आप अपनी रिजर्व को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो आपको इसे डॉलर में रखना होगा। आपको डॉलर में उधार लेने की आवश्यकता होगी। हर कोई इस समस्या को देख सकता है, लेकिन अगर कोई विकल्प होता, तो लोग इसका इस्तेमाल करते।’ टफ्ट्स विश्वविद्यालय के फ्लेचर स्कूल ऑफ ग्लोबल अफेयर्स के वरिष्ठ फेलो मिहाएला पापा ने कहा कि डॉलर के विकल्पों में से कोई भी अपना दबदबा नहीं बना पाया। लगता नहीं है कि ब्रिक्स की करेंसी रातोंरात कोई कमाल कर पाएगी। इसके लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी।