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लता जी के पार्थिव शरीर पर शाहरुख ने फूंका, हिंदू अंतिम संस्कार में फातिहा पढ़ना कितना जायज?

रविवार को मुंबई के शिवाजी पार्क में शाहरुख खान अपनी मैनेजर पूजा ददलानी के साथ लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे, जहां उन्होंने इस्लाम धर्म के मुताबिक पहले दुआ पढ़ी और इसके बाद उन्होंने अपना मास्क नीचे करके उनके पार्थिव शरीर पर मुंह से फूंका. 

  • लता जी के पार्थिव शरीर पर शाहरुख ने पढ़ा फातिहा
  • बस तीन चीजों में सीमित थी लता जी की दुनिया 
  • 80 सालों तक भारत लता जी के गानों के साथ जिया

ई दिल्ली: लता मंगेशकर की मृत्यु पर एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण धार्मिक विवाद चल रहा है. रविवार को मुंबई के शिवाजी पार्क में शाहरुख खान अपनी मैनेजर पूजा ददलानी के साथ लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे, जहां उन्होंने इस्लाम धर्म के मुताबिक पहले दुआ पढ़ी और इसके बाद उन्होंने अपना मास्क नीचे करके उनके पार्थिव शरीर पर मुंह से फूंका. फिर पार्थिव शरीर के चारों तरफ परिक्रमा भी लगाई. इस्लाम धर्म में ये दुआओं को असरदार करने का एक तरीका होता है. लेकिन हमारे देश के बहुत सारे लोग ये आरोप लगाने लगे कि शाहरुख खान ने फूंका नहीं, थूका है. लेकिन ये सच नहीं है.

शाहरुख ने पढ़ा फातिहा

यहां हम सबसे पहले एक बात स्पष्ट कर दें कि शाहरुख खान ने लता मंगेशकर के पार्थिव शरीर पर थूका नहीं था, जैसा कि कुछ लोगों द्वारा कहा जा रहा है. दरअसल, इस्लाम धर्म में जो हदीस हैं, उनमें फातिहा का जिक्र किया गया है, जिसका मतलब होता है, दुआ पढ़ना. फातिहा, अलग-अलग मौकों पर पढ़ी जा सकती है. जैसे किसी के लिए अगर दुआ मांगनी हो. कोई शुभ अवसर हो या किसी का खराब स्वास्थ्य हो. इसके अलावा किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर भी इस्लाम में फातिहा पढ़ने का जिक्र किया गया है और इस्लाम धर्म में ये भी उल्लेख मिलता है कि दुआ पढ़ने के बाद, अपने मुंह से उस चीज या व्यक्ति पर फूंक मारनी चाहिए, ताकि दुआ का असर उस व्यक्ति तक पहुंच सके. आप कह सकते हैं कि ये एक प्रार्थना का तरीका है.

इस्लाम में महत्वपूर्ण है हदीस का मतलब

इस्लाम धर्म में कुरान के बाद हदीस को सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ माना गया है. इसमें बताया गया है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब ने अपना जीवन कैसे व्यतीत किया और उनके वैचारिक सिद्धांत क्या थे. अनेकों हदीस में इस बात का उल्लेख मिलता है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब, कुरान की आयतें पढ़ने के बाद अपने हाथों पर अपने मुंह से हवा फूंकते थे और ऐसा वो सम्पन्नता और अच्छाई के लिए करते थे.

हिंदू अंतिम संस्कार में इस्लाम विधि को अपनाना कितना जायज?

हालांकि शाहरुख खान ने कल जो कुछ भी किया, वो अच्छे मन से किया. वो भी लताजी का उतना ही सम्मान करते हैं, जितना हम और आप करते हैं. हालांकि यहां एक सवाल ये भी है कि, लताजी हिन्दू थीं और उनका अंतिम संस्कार हिन्दू मान्यताओं के अनुसार किया गया. फिर शाहरुख खान का उनके पार्थिव शरीर पर इस्लाम धर्म के मुताबिक दुआ पढ़ना कितना सही है? ये एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब आपको ना तो लोकतंत्र में मिलेगा, ना संविधान के किसी अनुच्छेद में मिलेगा और ना ही समाज में आप इस सवाल का जवाब ढूंढ सकते हैं. इसका जवाब केवल इंसानियत में छिपा है.

मोहम्मद रफी के जनाजे में शामिल थे सब धर्म के लोग

31 जुलाई 1980 को जब मशहूर गायक मोहम्मद रफी का देहांत हुआ था, तब उनके अंतिम दर्शन के लिए लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए थे और इन लोगों में कितने हिन्दू थे और कितने मुसलमान, इसका अन्दाजा कोई नहीं लगा सकता. लता मंगेशकर की तरह मोहम्मद रफी को चाहने वाले भी किसी एक धर्म के नहीं थे और इसे आप उनकी गायकी से भी समझ सकते हैं.

कितनी जायज हिंदू मुसलमान की बहस?

मोहम्मद रफी ने अपने करियर में कई भजन गाए, जो हिन्दुओं की आस्था का माध्यम बने. इनमें 1979 में आई फिल्म सुहाग का एक गाना काफी लोकप्रिय हुआ, जिसके बोले थे, ओ मां शेरोंवाली. इसके अलावा वर्ष 1952 में आई सुपरहिट फिल्म, बैजू बावरा में भी उन्होंने एक भजन गाया, जिसके बोल थे, मन तड़पत हरि दर्शन को आज. हमें लगता है कि जहां धर्मनिरपेक्षता का दुरुपयोग हो, जहां विभाजनकारी ताकतें हों, वहां धर्म पर बहस हो सकती है. लेकिन ऐसे मामलों में हिन्दू मुसलमान की बहस को जायज नहीं ठहराया जा सकता.

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