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Crude Oil Price Hike: रूस-यूक्रेन तनाव के बीच कच्चे तेल की कीमतें आसमान पर, मौजूदा संकट का भारत पर भी होगा असर

Crude Oil Price Hike: रूस -यूक्रेन तनाव के बीच कच्चे तेल की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं. मौजूदा संकट का भारत पर भी असर होगा. कोविड महामारी का प्रकोप कम होने के साथ ही देश में पेट्रोल, डीजल और अन्य प्रकार के ईंधन की मांग जोर पकड़ने लगी है.

Crude Oil Price Hike: रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमत अब आसमान छू रही है. बुधवार को, ब्रेंट-इंडेक्स्ड पर कच्चे तेल की कीमतें 94 से 95 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रही हैं. कच्चे तेल की कीमतें अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई है. रूस कच्चे तेल की दुनिया के शीर्ष उत्पादकों में से एक है और इसके खिलाफ कोई भी पश्चिमी प्रतिबंध वैश्विक आपूर्ति को मुश्किल में डाल देगा.

मौजूदा संकट भारत के लिए भी महत्व रखता है, क्योंकि वह अपनी कच्चे तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है. कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से घरेलू कीमतों में तेजी आ सकती है, जिससे मुद्रास्फीति (Inflation) बढ़ सकती है. 

ब्रोकरेज हाउस आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने कहा कि पूर्वी यूक्रेन में दो अलग-अलग क्षेत्रों में रूस की ओर से सैनिकों को आदेश दिए जाने के बाद रूस और पश्चिम के बीच तनाव बढ़ने से कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई है. 

ब्रोकरेज फर्म ने कहा कि कीमतों में और तेजी इस पर आधारित है कि ईरान के परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने से बाजार में और तेल आ सकता है.

मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस के प्रबंध निदेशक माइकल टेलर ने एक नोट में कहा, “संघर्ष की स्थिति में तेल और तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की वैश्विक कीमतें तेजी से बढ़ने की संभावना है, जो एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपेक्षाकृत कुछ निर्यातकों के लिए सकारात्मक होगा और काफी अधिक संख्या में शुद्ध ऊर्जा आयातकों (नेट एनर्जी इम्पोर्टर्स)के लिए यह नकारात्मक होगा.”

टेलर ने कहा कि हालांकि, परेशानियों को कम करने वाला एक कारक यह है कि कई एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में एलएनजी के लिए दीर्घकालिक आपूर्ति अनुबंध हैं जो हाजिर कीमतों या स्पॉट प्राइस में उतार-चढ़ाव के प्रभाव को सीमित करेंगे.

बता दें, कोविड महामारी का प्रकोप कम होने के साथ ही देश में पेट्रोल, डीजल और अन्य प्रकार के ईंधन की मांग जोर पकड़ने लगी है. अगर देश में खपत बढ़ती है तो इससे सीधे तौर पर देश का आयात बढ़ेगा. इसके कारण बजट भी गड़बड़ा सकता है और राजकोषीय घाटा बेकाबू हो सकता है.

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