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मनोरंजन

बॉलीवुड के तौर तरीके पर भड़के महेश भट्ट, बोले, ‘अब फिल्में नहीं बन रहीं बल्कि व्यापार हो रहा’

मुकेश भट्ट (Mukesh Bhatt) ने अपने दो प्रोजेक्ट्स सीधे ओटीटी पर रिलीज की है. पहली थी ‘सड़क 2’ (Sadak 2) जिसे शुरू में थियेटर में रिलीज करना था लेकिन पैनडेमिक की वजह से डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज की गई. हाल ही में वेब सीरीज ‘रंजिश ही सही’ प्रोड्यूस किया है.

Mukesh Bhatt on Bollywood: बॉलिवुड फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पा रही हैं. एक-दो अपवाद जैसे ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ (Gangubai Kathiawadi), ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘भूल भुलैया 2’ को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर फिल्में कमाई कर पाने में नाकामयाब रही हैं. हाल ही में रिलीज हुई ‘सम्राट पृथ्वीराज’, ‘धाकड़’ ‘रनवे 34’  जैसी बड़े एक्टर्स की फिल्में भी नहीं चल पाई. बॉलीवुड को लेकर लगातार मंथन चल रहा है. फिल्मों की घिसी-पिटी कहानी से लेकर कई ऐसे मुद्दे हैं जिस पर रह रह कर फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज अपनी राय रख रहे हैं. फिल्ममेकर मुकेश भट्ट (Mukesh Bhatt) ने भी इस बदहाली की वजह बताई है.

बॉलीवुड के दिग्गज फिल्ममेकर महेश भट्ट के साथ मिलकर उनके छोटे भाई मुकेश भट्ट ‘विशेष फिल्म्स’ प्रोडक्शन कंपनी चलाते हैं. मुकेश ने ‘सड़क’, ‘गुलाम’, ‘राज’, ‘जहर’, ‘जन्नत’, ‘आशिकी 2’ जैसी कई सफल फिल्में बनाई हैं. हाल ही में मीडिया से बात करते हुए मुकेश ने हिंदी सिनेमा के बदलते माहौल पर खुलकर अपनी राय रखी.

कॉन्टेंट बदलिए नहीं तो पीछे रह जाएंगे
मुकेश भट्ट ने ‘बॉलीवुड हंगामा’ को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि कैसे महामारी ने सिनेमा के खेल को बदल दिया है, लेकिन हिंदी फिल्ममेकर इसे एडॉप्ट करने में असफल रहे हैं. उन्होंने कहा कि ‘अब कहानी बदलनी होगी. महामारी की वजह से ओटीटी फ्रंट पर आ गया है. दर्शक अब अच्छे कॉन्टेंट को लेकर जागरुक हो गए हैं. अब आप उन्हें वही कॉन्टेंट नहीं दे सकते जो पैनडेमिक से पहले दे रहे थे. हमें समय के साथ बदलना होगा. जेनरेशन बदल रहा है और अगर आप नहीं बदले तो पीछे रह जाएंगे. बॉलीवुड में अभी जो हो रहा है, वह ये है कि लोग सेटअप बना रहे हैं फिल्म नहीं. सेटअप काम नहीं आता फिल्में काम करती हैं.

ईमानदारी चली गई, व्यापार हो रहा
मुकेश भट्ट ने बॉलीवुड के मौजूदा हालात की कड़ी आलोचना करते हुए कहा ‘अब कोई फिल्म नहीं बना रहा है, सभी व्यापार कर रहे हैं. इतने में बना लो, इतने में बेचो और इतना पैसा अंदर करो. हम ऐसा कभी नहीं करते थे, हमें जो कहानी पसंद आती थी, उत्साहित करती थी तो कहते थे कि चलो बनाते हैं, वह ईमानदारी चली गई है’.

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