देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई (SBI) के ग्राहकों के लिए अच्छी खबर नहीं है। बैंक ने एक बार फिर लोन महंगा कर दिया है। बैंक ने मार्जिनल कॉस्ट पर आधारित फंड के लेंडिंग रेट (MCLR) में 20 बीपीएस की बढ़ोतरी कर दी। बढ़ी हुई दरें आज से लागू हो गई हैं। बैंक ने तीन महीने में तीसरी बार दरों में बढ़ोतरी की है। इस बढ़ोतरी के बाद ओवरनाइट से तीन महीने की अवधि के लिए एमसीएलआर रेट 7.15 फीसदी से बढ़कर 7.35 फीसदी हो गया है। इसी तहत छह महीने का एमसीएलआर रेट 7.45 फीसदी से बढ़कर 7.65 फीसदी हो गया है। एक और दो साल का रेट अब 7.7 फीसदी से बढ़कर 7.9 फीसदी और तीन साल का रेट 7.8 फीसदी से बढ़कर आठ फीसदी हो गया है।
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इससे पहले एसबीआई ने पिछले महीने भी एमसीएलआर रेट में 10 बेसिस अंक की बढ़ोतरी की थी। हाल में आरबीआई (RBI) ने महंगाई को काबू में रखने के लिए रेपो रेट में 50 बेसिस अंक की बढ़ोतरी की थी। रेपो रेट की दर अब 5.40 फीसदी हो गई है। केंद्रीय बैंक के रेपो रेट में भारी बढ़ोतरी के बाद कई बैंकों ने लोन लेना महंगा कर दिया है। एक हफ्ते पहले एचडीएफसी बैंक ने एमसीएलआर में पांच से 10 बेसिस अंक की बढ़ोतरी की थी। यह बढ़ोतरी आठ अगस्त से लागू हो गई है। इसी तरह आईडीएफसी फर्स्ट बैंक ने भी लेंडिंग रेट में 5 से 15 बीपीएस की बढ़ोतरी की है।
किन ग्राहकों पर होगा असर
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बैंक के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर उन ग्राहकों पर पड़ेगा जिन्होंने होम, ऑटो या पर्सनल लोन ले रखा है। इससे आने वाले महीनों में उनकी ईएमआई (EMI) बढ़ेगी। दिसंबर 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक बैंकों को लोन पोर्टफोलियो में एमसीएलआर लोन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा (53.1 फीसदी) थी। बैंकरों के मुताबिक एमसीएलआर में बढ़ोतरी आगे भी जारी रह सकती है क्योंकि रेपो रेट में बढ़ोतरी से बैंकों के लिए फंड्स की कॉस्ट बढ़ गई है। बैंक हर महीने लेंडिंग कॉस्ट की समीक्षा करते हैं और बढ़ी हुई लागत का बोझ ग्राहकों पर डालते हैं।
क्या होता है एमसीएलआर
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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2016 में MCLR सिस्टम को पेश किया था। यह किसी वित्तीय संस्थान यानी फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के लिए एक इंटरनल बेंचमार्क है। MCLR प्रोसेस में लोन के लिए मिनिमम ब्याज दर तय की जाती है। MCLR एक न्यूनतम ब्याज दर है, जिस पर बैंक उधार दे सकता है। आम भाषा में कहें तो मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट्स (MCLR) भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तय की गई एक पद्धति है जो कॉमर्शियल बैंक्स द्वारा ऋण पर ब्याज दर तय करने के लिए इस्तेमाल की जाती है।