Shani stotram path benefits: शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि देव की पूजा का है. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को पूजा के समय शनि स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही फलदायी माना जाता है. इस पाठ को करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं.
शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि देव की पूजा का है. शनिवार को शनि देव को प्रसन्न करने के लिए अनेक उपाय किए जाते हैं ताकि उनकी वक्र दृष्टि से राहत मिले. जिन पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की दशा चल रही होती है, वे भी कष्टों से राहत चाहते हैं. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को पूजा के समय शनि स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही फलदायी माना जाता है. इस पाठ को करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं. उनके कष्टों को दूर करके जीवन में सुख और शांति प्रदान करते हैं.
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श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी बताते हैं कि राजा दशरथ के राज्य में जब अकाल पड़ गया था, तब उन्होंने शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि स्तोत्रम की रचना की थी. शनि स्तोत्रम का पाठ करने से शनि देव बहुत खुश हुए थे और राजा दशरथ की मनोकामना पूर्ण कर दी थी. जो भी व्यक्ति शनि स्तोत्रम का पाठ पूरे मन से शुद्धता के साथ करता है, उसकी रक्षा शनि देव करते हैं. वे उस भक्त का अहित नहीं होने देते हैं.
शनि स्तोत्रम संस्कृत में लिखा गया है, लेकिन आप इसे रोज पढ़ेंगे तो आपके लिए यह पाठ आसान हो जाएगा. यदि आप शनि स्तोत्रम को पढ़ने में सहज नहीं हैं तो शनि स्तोत्रम के ऑडियो या वीडियो को सुन या देखकर के याद कर सकते हैं. फिर हर शनिवार को इसे पढ़ें. यदि आप पर शनि की महादशा साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव है तो आप रोज पूजा के समय शनि स्तोत्रम का पाठ करें. निश्चित रूप से आपको इसका लाभ प्राप्त हो सकेगा.
शनि स्तोत्रम
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।
शनि देव की जय! शनि महाराज की जय! जय जय शनि देव!