चंद्रयान-3 की अभूतपूर्व सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो जापान के साथ चंद्रमा के ध्रुवों पर पानी की तलाश करने का काम करेगा. इसरो और जापानी स्पेस एजेंसी जाक्सा के एक संयुक्त अभियान में जहां रॉकेट और रोवर जापान का होगा वहीं लैंडर भारत का इसरो प्रदान करेगा. इसके अभियान में ध्रुवों एक बेस के लिए उपयुक्त जमीन की तलाश के साथ ही कुछ नई तकनीकों पर भी काम होगा.
अंतरिक्ष के वैश्विक पटल पर चंद्रमा के लिए भेजे गए रूस के लूना-25 की नाकामी के बाद भारत के चंद्रयान-3 की सफलता ने हालात बदल दिए हैं. इसरो की सफलता ने दुनिया में अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में नई जान फूंक दी है. इसके साथ ही अब भारत के इसरो में भी नए उत्साह का संचार हुआ है. अब चंद्रमा के लिए होने वाले अन्वेषण और अभियानों को भी बल मिलेगा. चंद्रयान अभियान के लैंडिंग के दौरान भारत के लिए एक और बड़ी खबर आई है कि भारत और जापान मिलकर चंद्रमा के ध्रुवों पर पानी की उपस्थिति की पड़ताल करेंगे. इसमें रॉकेट और रोवर जापान का जबकि लैंडर इसरो का होगा.
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एक संयुक्त अभियान
हाल ही में इसरो प्रमुख एस सोमनाथ और जापान की नेशनल एस्ट्रोनॉमिकल ऑबजर्वेटरी के डायरेक्टर जनरल और जापान की नेशनल स्पेस पॉलिसी की कैबिनेट कमेटी के वाइस चेयर साकू सूनेका ने एक मीटिंग के बाद यह ऐलान किया था. ध्रुवों पर पानी की यह पड़ताल ज्वाइंट लूनार पोलर एक्सप्लोरर (ल्यूपेक्स) अभियान के जरिए की जाएगी.
क्या होगा इस अभियान का मकसद
ल्यूपेक्स का प्रक्षेपण अगले कुछ सालों में होगा लेकिन इसकी तारीख अभी तय नहीं की गई है. इस सहयोग का मुख्य लक्ष्य चंद्रमा पर पानी केस्रोतों की तलाश के अलावा, चंद्रमा के ध्रुवों पर एक बेस बनाने के लिए उचित जमीन तलाश करने के साथ ही वाहन समर्थन और लंबे समय तक उपकरणों के कायम रखने की तकनीकों पर भी काम होगा.
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चंद्रमा पर गतिविधियों के संचालन के लिए
दोनों देशों का दूरगामी लक्ष्य चंद्रमा पर ऐसा बेस बनाने के लिए माहौल तैयार करने का प्रयास होगा जिससे वहां पर संधारणीय गतिविधियों को संचालन किया जा सके. इस अभियान को भारत के चंद्रमा के लिए किए जा रहे अन्वेषण के लिए एक बड़ा अहम कदम माना जा सकता है. गौर करने वाली बात यह है कि इस अभियान के लिए पिछले कुछ सालों से मंथन चल रहा था.
चंद्रमा के ध्रुवों पर पानी की तलाश में भारत और जापान आपस में सहयोग करेंगे. (तस्वीर: ISRO)
पानी के स्वरूप और आंकड़े
जाक्सा के वेबसाइट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में अवलोकित आंकड़ों के विश्लेषण ने सुझाया है कि चंद्रमा के ध्रुवीय इलाकों में पानी की मौजूदगी है और जाक्सा इसरो के साथ सहयोग कर अंतरराष्ट्रीय संयुक्त अभियान का नियोजन कर रहा है जिसका मकसद चंद्रमा पर मौजूद पानी के प्रारूप और मात्रा के आंकड़े हासिल करना है.
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संधारणीय अंतरिंक्ष अन्वेषण
जाक्सा का कहना है कि इस अभियान के जरिए उसका मकसद इसरो के सहयोग से जाक्सा संधारणीय अंतरिक्ष विकास के क्षेत्र में एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए योगदान देना चाहता है जिसके जरिए भविष्य में संधारणीय अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए संसाधनों का समुचित सदुपयोग सुनिश्चित किया जा सके.
चंद्रमा पर पानी की मात्रा कितनी इसका सही अनुमान होना बहुत जरूरी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
कितना पानी ले जाने की होगी जरूरत?
चंद्रमा के ध्रुवीय इलाकों में उपयोग किए जा सकने वाले पानी की मात्रा आदि को समझने कर ल्यूपेक्स यह गणना करने में मदद करेगा कि हमें भविष्य में मानव अभियानों के लिए कितना ऑक्सीजन और हाइड्रोजन चंद्रमा पर ले जाना होगा और कितना स्थानीय संसाधन के तौर पर काम आ सकता है.
इस अभियान में रोवर में सौर सेल की एक पतली फिल्म लगाई जाएगी और साथ ही अल्ट्रा हाई एनर्जी के घनत्व वाली बैटरी लगाई जाएंगी जिनसे चंद्रमा के अंधेरे वाले हिस्सों और अंधेरे के समय में ऊर्जा स्रोत के तौर पर उपयोग में लाया जा सकेगा. चंद्रमा पर ज्यादा मात्रा में पानी का मिलना काफी मददगार साबित होगा.