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SC-ST को प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, शर्तों को कम करने से किया इनकार

Reservation in Promotion: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लोगों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए मानदंड निर्धारित करने से इनकार किया और इस काम को राज्यों पर छोड़ा.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के मुद्दे पर बड़ा सुनाया. कोर्ट ने एससी-एसटी को आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया और कहा कि कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने से पहले क्वॉन्टेटिव डेटा जुटाने करने के लिए बाध्य है.

3 जजों की बेंच ने सुनाया फैसला

एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने के मुद्दे पर जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय पीठ फैसला सुनाया. इससे पहले जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने  सुनवाई के बाद 26 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

Reservation in promotion: Supreme Court says state governments ought to collect quantifiable data before granting reservation in promotion to SC/ST employees; further added that it cannot lay down new yardstick after Constitution bench decisions

— ANI (@ANI) January 28, 2022

इस मामले पर केंद्र सरकार की दलील

इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ से कहा था कि यह सत्य है कि देश की आजादी के 75 साल बाद भी अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के लोगों को अगड़े वर्गों के समान मेधा के स्तर पर नहीं लाया गया है.

‘SC-ST के लिए उच्च पद हासिल करना मुश्किल’

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी थी एससी और एसटी समुदाय के लोगों के लिए ग्रुप ‘ए’ श्रेणी की नौकरियों में उच्चतर पद हासिल करना कहीं अधिक मुश्किल है और वक्त आ गया है कि रिक्तियों (Vacancies) को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट को एससी, एसटी और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए कुछ ठोस आधार देना चाहिए.

पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों पर छोड़ा था फैसला

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के मुद्दे को फिर से खोलने से मना किया था और कहा था कि वह इस मुद्दे को को फिर से नहीं खोलेगा, क्योंकि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं.
(इनपुट- न्यूज एजेंसी भाषा)

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