MP Politics जाहिर है मिशन-2024 से पहले अगले साल मध्य प्रदेश में उत्तर प्रदेश की टक्कर का रोमांचक चुनावी शो होगा जिसका परिणाम कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों पर अपनी कम या ज्यादा छाया जरूर डालेगा।
इंदौर, सद्गुरु शरण। उत्तर प्रदेश के चुनाव समर की आक्रामकता चरम पर पहुंच चुकी है। यूं तो पंजाब और उत्तराखंड समेत चार अन्य राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, पर देश-दुनिया की दिलचस्पी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में है। वजह साफ है। राजनीतिक दलों और चुनाव विशेषज्ञों की धारणा है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का परिणाम वर्ष 2024 में प्रस्तावित अगले लोकसभा चुनाव के बारे में सभी राजनीतिक दलों, खासकर भाजपा और कांग्रेस को एक सबकनुमा संकेत देगा जिसके आधार पर इन दलों को अपने एजेंडा और रणनीति की समीक्षा करने का अवसर मिलेगा। वैसे अगले लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के रूप में एक और हाइ-प्रोफाइल चुनाव होगा जिसे लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा और कांग्रेस के लिए पूर्वाभ्यास का अवसर भी माना जाएगा।
यह तय है कि उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के मौजूदा चुनाव खत्म होते ही चुनावी राजनीति का केंद्र मध्य प्रदेश में शिफ्ट हो जाएगा, यद्यपि अगले महीने 10 मार्च को पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के वक्त मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव करीब डेढ़ वर्ष दूर होगा। हां, यह जरूर है कि इन राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम से मध्य प्रदेश चुनाव की पृष्ठभूमि तो तैयार हो ही जाएगी। इसे मध्य प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस नेताओं की भाषा और शारीरिक भाषा से महसूस किया जा सकता है। इसे पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की गत दिवस पार्टी के गुटबाज नेताओं को इस लताड़ से भी समझा जा सकता है कि कांग्रेस इस बार हारी तो फिर भविष्य में जीतना मुश्किल होगा।
मध्य प्रदेश के भाजपा और कांग्रेस नेता उत्तर प्रदेश के चुनाव समर पर स्वाभाविक रूप से टकटकी लगाए हुए हैं, यद्यपि दोनों राज्यों के सामाजिक ताने-बाने, नेतृत्व, राजनीतिक परिस्थितियों और दोनों राष्ट्रीय दलों के सीधे मुकाबले के समीकरणों में भारी अंतर है। उत्तर प्रदेश में खुद प्रियंका गांधी की अति-सक्रियता के बावजूद चुनाव में कांग्रेस अधिकतर सीटों पर मुख्य मुकाबले में आने के लिए संघर्ष कर रही है, जबकि मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच ही सीधा मुकाबला होगा।
वर्ष 2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को पछाड़ कर राजनीतिक अनुमानकारों को चौंका दिया था और कमल नाथ के नेतृत्व में सरकार भी बना ली थी। यह अलग बात है कि कांग्रेस इस जनादेश का सम्मान नहीं रख सकी। गठन के करीब 15 महीने के बाद दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायकों की बगावत के परिणामस्वरूप सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा फिर सत्तासीन हो गई। सत्ता संभालने के बाद शिवराज सिंह जिस तरह जनता के बीच जाकर संवाद कर रहे हैं, उसका साफ संकेत है कि उन्होंने वर्ष 2018 के चुनाव परिणाम को एक बड़े सबक के रूप में लिया है।
भाजपा सरकार जनजाति और अनुसूचित जातियों के लिए एक के बाद एक जिस तरह लोकप्रिय फैसले कर रही है, उसे भी पिछले चुनाव का सबक और अगले चुनाव की रणनीति माना जा रहा है। इसके अलावा शिवराज सिंह किसानों और महिलाओं के बीच भी अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए एड़ी -चोटी का जोर लगा रहे हैं। इसी तरह कांग्रेस भी जनजातियों के बीच सक्रियता बढ़ाने के साथ ही बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को धार देने में लगी है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमान कमल नाथ और दिग्विजय सिंह जैसे दो बड़े नेताओं के हाथ में है जिन्हें राज्य की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के साथ ही चुनावी राजनीति की भी गहरी समझ है।
उत्तर प्रदेश के मुकाबले मध्य प्रदेश के चुनावी समीकरणों में सबसे बड़ा अंतर यह है कि यहां मुस्लिम फैक्टर या जाति-आधारित वोटबैंक के बजाय विकास ही बड़ा मुद्दा होगा। पिछले चुनाव में कांग्रेस के लिए सत्ता का द्वार खोलने में किसानों की कर्ज माफी के वादे की अहम भूमिका थी, यद्यपि 15 महीने के कार्यकाल में तत्कालीन कांग्रेस सरकार अपना वादा पूरा नहीं कर सकी। जाहिर है कि अगले चुनाव में कांग्रेस को किसानों के सामने अपनी इस वादाखिलाफी पर सफाई देनी होगी।
भाजपा इस मुद्दे पर आक्रामक होगी। इसकी तैयारी करते हुए शिवराज सिंह सरकार ने किसानों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं, यद्यपि यह नहीं कहा जा सकता कि किसान या अन्य सामाजिक वर्ग भाजपा सरकार से पूरी तरह संतुष्ट हैं। पेट्रोल-डीजल और अन्य उपभोक्ता सामग्री की कीमतों में महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे भाजपा नेतृत्व का कड़ा इम्तिहान लेंगे। मध्य प्रदेश का चुनाव अभी दूर है। भाजपा और कांग्रेस को मार्च में उत्तर प्रदेश चुनाव के परिणाम के रूप में मतदाताओं के मूड की बानगी भी मिल जाएगी। इसके आधार पर दोनों दल चुनाव तैयारी कर रोडमैप तैयार करेंगे। दोनों दल यूपी के चुनाव अभियान से अपने लिए सबक और नुस्खे तलाश रहे होंगे। जाहिर है, मिशन-2024 से पहले अगले साल मध्य प्रदेश में यूपी की टक्कर का रोमांचक चुनावी शो होगा जिसका परिणाम कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों पर अपनी कम या ज्यादा छाया जरूर डालेगा।