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Opinion: रामपुर उपचुनाव और गुजरात में बीजेपी की जीत बताती है कि अल्पसंख्यकों का पीएम मोदी पर भरोसा बढ़ा है

रामपुर में कमल खिलना न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि देश के राजनैतिक मिजाज़ को प्रदर्शित करने वाला रहा। इसी रणनीति और मोदी के समावेशी विकास कार्यक्रमों को सलीके से लोगों को बताने, समझाने का नतीजा रहा कि उन तबकों में भी स्वीकार्यता हुई जो अब तक भाजपा से दूर थे और कुछ ही महीनों के दौरान रामपुर में भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष, लोकसभा उप-चुनाव और अब विधानसभा उप-चुनाव में शानदार जीत हासिल की।

रामपुर विधानसभा उप-चुनाव में भाजपा की जीत अप्रत्याशित है। खासकर ऐसे इलाके में जहां अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या 65 फीसदी के करीब है। एक ऐसी सीट जो 1980 से लेकर 2022 तक समाजवादी पार्टी नेता आजम खान और उनके परीवार की जागीर रही है। आजम खान ने खुद 1980-1993 तक अलग अलग पार्टियों से लड़ कर रामपुर सीट पर जीते। 2002 से अब तक रामपुर सीट लगातार उनके या फिर उनके परिवार के पास रही। बीजेपी ने चुनावी इतिहास में यहां कभी जीत नही दर्ज की थी। आजम खान को 2019 की अपनी स्पीच के लिए कोर्ट ने दोषी पाया तो रामपुर में उपचुनाव हुए। चुनाव में बीजेपी ने आजम खान के उम्मीदवार असीम राजा के खिलाफ उतारा पूर्व विघायक के बेटे आकाश सक्सेना को।

चुनाव के दिन मतदान का प्रतिशत खासा कम था जो लगभघ 40 फीसदी तक जा पहुंचा। आजम खान और अखिलेश यादव आरोप लगाते रहे की लोगो को पोलिंग बुथो तक नहीं पहुंचने दिया गया और लोगों को मारा गया लेकिन बीजेपी का मानना है कि ये अल्पसख्यक मतदाताओं की उदासीनता है उन तमाम दलों के लिए जो तुष्टिकरण की राजनीतित करते हैं। दूसरे पीएम मोदी की जन कल्याण योजनाओं का लाभ अब लोगों तक पहुंचना शुरु हो गया है। जन कल्याण का लाभ आखिरी मील तक पहुंचाने में पीएम मोदी की कोशिशों ने अल्पसंख्यकों के पिछड़े समुदायों को जागरुक कर दिया है। खासकर पसमांदा मुसमानों का का तबका जो विकास की राह में पिछड़ गया है। इस लिए अनुमान लगाया जा रहा है कि या तो अल्पसंख्यकों ने वोट नहीं डाले या फिर कुछ प्रतिशत बीजेपी को चले गये। कुल डाले गए वोटों का 62 फीसदी बीजेपी की मिला और असीम राजा को मिले 36.16 फीसदी वोट।

इस जीत में पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी की अनूठी “खिचड़ी पंचायत” ने मुस्लिम बहुल क्षेत्र रामपुर में भाजपा के जायके को स्वादिष्ट बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। आजादी के बाद अब तक इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का जीतना तो दूर सम्मान जनक वोट भी मुश्किल से मिलता रहा। इस बार भी इस भाजपा विरोधी गढ़ में भाजपा की खिचड़ी पकाना लोहे के चने चबाने जैसा था। बीजेपी और नक़वी ने पार्टी की परम्परागत रणनीति से हट कर गांव-गांव में खिचड़ी पंचायतों का आयोजन किया। बिना मंच और भाषणबाज़ी के लोगों के साथ जमीन पर बैठकर उनकी बातें सुनीं। खास बात ये कि ज्यादा सुनी और अपनी कम सुनाई।

अधिकांश खिचड़ी पंचायतें मुस्लिम, दलित, पिछड़े गांवों और क्षेत्रों में आयोजित की गई। जानकारी के लिए बता दें कि 1998 में पहली बार रामपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर जीतने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले पहले मुस्लिम प्रत्याशी मुख्तार अब्बास नक़वी और भाजपाइयों का यह अन्दाज लोगों को खूब भाया। 1998 से लगातार नकवी रामपुर के साथ सकारात्मक सक्रियता बनाए हुए हैं। इसलिए लोगों के साथ बैठे, साथ ही खिचड़ी बनायी और साथ ही सरल-सहज भाषा में मोदी-योगी के धरातल पर हो रहे विकास कार्य के बारे में लोगों को समझया।

माना जा रहा है कि रामपुर में कमल खिलना न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि देश के राजनैतिक मिजाज़ को प्रदर्शित करने वाला रहा। इसी रणनीति और मोदी के समावेशी विकास कार्यक्रमों को सलीके से लोगों को बताने, समझाने का नतीजा रहा कि उन तबकों में भी स्वीकार्यता हुई जो अब तक भाजपा से दूर थे और कुछ ही महीनों के दौरान रामपुर में भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष, लोकसभा उप-चुनाव और अब विधानसभा उप-चुनाव में शानदार जीत हासिल की। रामपुर की खिचड़ी पंचायतों की सफलता से उत्साहित भाजपा, प्रदेश एवं देश के अन्य स्थानों पर भी खिचड़ी पंचायतों जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सम्पर्क, संवाद की योजना पर अमल कर सकती है।

उधर गुजरात में भी अल्पसंख्यकों ने अपनी रहनुमा पार्टियों को जोर का झटका दिया है। कुछ रामपुर जैसे संदेश गुजरात से भी मिले हैं। आजादी के बाद से ही कांग्रेस का गढ मानी जाने अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है। दरियापुर-शाहपुर सीट, मंगरोल, वाकानेर जैसे मुस्लिम इलाकों में बीजेपी का उम्मीदवार जीता। जबकि कांग्रेस कॆ सिर्फ एक जमालपुर खडिया सीट पर जीत मिली। इस गुजरात में भी पीएम मोदी की योजनाओं का ही असर रहा है कि सबके व्यापार और काम धंधे फल फुल रहे हैं। कभी दंगों के कारण जानी जाने वाले इलाकों में सभी पक्ष दंगों का नाम भूल चुके है। कानून का राज चलता है और विकास की योजनाओ का लाभ हर लाभार्थी तक सीधा पहुंचता है, पहले की तरह सिर्फ कागजों पर नहीं।

तभी तो बीजपी कह रही है कि अब सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का मॉडल ही देश में चलेगा। अब अल्पसंख्यकों के स्वयंभूव रहनुमा बन कर रिझाना आसान नहीं होगा क्योंकि अब विकास और जन कल्याण योजनओं का लाभ सबको चाहिए। इसी को जन जन तक पहुंचाने मे पीएम मोदी सफल हो रहे हैं।

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