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Pilibhit Case: बस से उतारकर 10 लोगों का किया एनकाउंटर, 31 साल बाद 43 पुलिसकर्मियों को मिली सजा, जानें पूरा मामला

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डीएनए हिंदी: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1991 पीलीभीत फर्जी मुठभेड़ मामले में 43 पुलिसकर्मियों को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को सात साल के सश्रम कारावास (rigorous imprisonment) में बदल दिया है. इस फर्जी मुठभेड़ में 10 सिखों को आतंकवादी बताकर उनकी हत्या कर दी गई थी. हाई कोर्ट ने लोअर कोर्ट की ओर से  पुलिसकर्मियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत सुनाई गई सजा को दरकिनार कर दिया.

हाई कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यह केस भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 303 के अपवाद 3 के तहत आता है तो गैर इरादतन हत्या का मामला बनता है. अगर अपराधी लोक सेवक होने या लोक सेवक की सहायता करने के कारण किसी ऐसे कार्य द्वारा मृत्यु कारित करता है जिसे वह विधिसम्मत समझता है, तो यह अपवाद की श्रेणी में आता है. हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने निर्देश दिया कि दोषी अपनी जेल की सजा काटेंगे. सभी दोषियों पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है.

BI की स्पेशल कोर्ट ने सुनाई थी उम्रकैद की सजा

लखनऊ की एक स्पेशल CBI कोर्ट ने 4 अप्रैल, 2016 को पीएसी के 47 जवानों को दोषी ठहराते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. जवानों ने इस अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. कोर्ट में अपील के लंबित रहने के दौरान चार आरोपियों की मौत हो गई थी. 

न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने कहा, ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित 4 अप्रैल, 2016 को 43 पीएसीकर्मियों को दी गई सजा रद्द की जाती है. यह अदालत अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 304 (भाग 1) के तहत दोषी ठहराती है और प्रत्येक को 10 हजार रुपये जुर्माने के साथ सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाती है. कोर्ट ने इस साल 29 अगस्त को मामले की सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रख लिया था.

खूंखार अपराधी होने की वजह से नहीं मिलता पुलिस को हत्या का अधिकार

हाई कोर्ट ने कहा, पुलिस का यह कर्तव्य नहीं है कि वे आरोपी को केवल इसलिए मार दें क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है. पुलिस को आरोपी को गिरफ्तार करना होगा और अदालत में पेश करना होगा. अदालत ने कहा कि पुलिस ने उन्हें कानून द्वारा प्रदान की गई शक्ति से अधिक सक्रियता दिखाई, जो 10 सिखों की मौत का कारण बना.

बस से उतारकर हुई थी 10 सिखों की हत्या

पीएसी के जवानों ने 12 जुलाई 1991 को उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में तीर्थ यात्रा पर सिखों को ले जा रही एक बस को रोक लिया था. कथित मुठभेड़ में उसमें सवार 10 यात्रियों की मौत हो गई थी. इस दौरान गायब हुए बच्चे का आज तक पता नहीं चल सका है.

सीबीआई की जांच में कहा गया था कि 57 जवानों ने फर्जी एनकाउंटर किया था. सीबीआई की पूछताछ के दौरान 10 आरोपियों की मौत हो गई थी. CBI की विशेष अदालत ने 4 अप्रैल, 2016 को 47 आरोपियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.सभी दोषियों ने विशेष सीबीआई अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. अब हाई कोर्ट ने जवानों की सजा कम करते हुए 7 साल की सजा सुना दी है. (PTI और IANS इनपुट के साथ)

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