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चीन में कोरोना ब्‍लास्‍ट देख भारत ने चलाया एक और ‘हथ‍ियार’, समझ‍िए नेजल वैक्‍सीन से कैसे होगा बच्‍चों-मह‍िलाओं को फायदा

corona

दुनियाभर में कोरोना मामले अचानक बढ़े हैं। चीन में हड़कंप मचा है। इसे देख सरकार ने गुरुवार को बड़ा कदम उठाया। उसने नेजल वैक्‍सीन (Nasal Vaccine Approval) को मंजूरी दी है। यह वैक्‍सीन नाक के जरिये दी जाती है। केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री मनसुख मांडविया ने बताया है कि इसे पूरी तरह से भारत में विकसित किया गया है। उन्‍होंने इसे वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि करार दिया है। अभी तक देश में जो भी वैक्‍सीन उपलब्‍ध हैं, उन्‍हें सूई से दिया जाता है। सरकार की मंजूरी के बाद पहली बार नाक के जरिये वैक्‍सीन देने का रास्‍ता खुलेगा। इसने मन में कई तरह के सवाल भी उठाए हैं। मसलन, इस तरह से वैक्‍सीन देने की क्‍यों जरूरत है? नेजल वैक्‍सीन कितनी असरदार होगी? इसे देने का तरीका क्‍या होगा? आइए, यहां इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं।

नेजल वैक्‍सीन क्‍या है?

नेजल वैक्‍सीन नाक के जरिये दी जाती है। इस तरह वैक्‍सीन नाक के रास्‍ते शरीर में जाती है। इन्‍हें नेजल या इंट्रानेजल वैक्‍सीन कहते हैं। कोरोना वायरस अमूमन नाक से एंट्री करता है। इसका फायदा यह होगा कि जिन टिश्‍यूज से पैथोजेन का सामना होगा, उन्‍हीं टिश्‍यूज में इम्‍यून रेस्‍पांस ट्रिगर करेगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह असरदार हो सकता है। नेजल वैक्‍सीन स्‍प्रे करके नाक में दी जाती है।

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नेजल वैक्‍सीन की क्‍यों पड़ी है जरूरत?

मौजूद सभी वैक्‍सीन इंजेक्‍शन से दिए जाते हैं। इनमें चुभन होती है। जहां सूई लगती है, बाद में वहां कुछ दिन थोड़ा दर्द भी रहता है। नेजल वैक्‍सीन में इस तरह की चुभन नहीं होगी। इससे वैक्‍सीन हेजिटेंसी को कम किया जा सकता है। इसका एक और बड़ा फायदा यह है कि इससे बड़े पैमाने पर वैक्‍सीन तैयार की जा सकती है। इसे लोगों को देना भी आसान होगा। इसके लिए किसी एक्‍सपर्ट की जरूरत नहीं होगी। लोग चिकित्‍सीय परामर्श से अपने आप इसे ले सकते हैं। इससे मेडिकल इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर पर बोझ कम होगा।

कैसे दूसरी वैक्‍सीनों से अलग है नेजल वैक्‍सीन?

सूई से दी जाने वाली वैक्‍सीन इंट्रामस्‍कुलर होती हैं। इस तरह की वैक्‍सीन में कमजोर म्‍यूकोसल रेस्‍पॉन्‍स होता है। दूसरी बड़ी बात यह है कि इसे देने के लिए एक्‍सपर्ट्स की जरूरत पड़ती है। इसके चलते हेल्‍थ इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर पर खर्च और बोझ बढ़ता है। नेजल वैक्‍सीन को बड़े पैमाने पर देना आसान है। इसमें इन्‍फ्लुएंजा वैक्‍सीन में इस्‍तेमाल होने वाली तकनीक का इस्‍तेमाल होता है।

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कितनी असरदार होगी नेजल वैक्‍सीन?

नेजल वैक्‍सीन बनाने वाली तकनीक कम है। फ्लू के लिए बनी नेजल वैक्‍सीन बच्‍चों पर तो असरदार होती है। लेकिन, वयस्‍कों में कमजोर पड़ जाती है। नेजल स्‍प्रे से दवा की बहुत कम मात्रा शरीर में जाती है। हालांकि, इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे बड़ी आबादी तक बहुत आसानी से दिया जा सकता है। इसके लिए किसी बड़े तामझाम की जरूरत नहीं होगी।

क्‍या कहते हैं अध्‍ययन?

इसे लेकर काफी अध्‍ययन किया जा चुका है। चूहों के एक ग्रुप को इंजेक्‍शन के जरिये वैक्‍सीन दी गई। फिर SARS-CoV-2 से एक्‍सपोज कराने के बाद फेफड़ो में कोई वायरस नहीं मिला। लेकिन, वायरल आरएनए का कुछ हिस्‍सा जरूर पाया गया। इसकी तुलना में जिन चूहों को नाक से वैक्‍सीन दी गई थी, उनके फेफड़ों में इतना वायरल आरएनए नहीं था जिसे मापा जा सके। अध्‍ययन बताते हैं कि नेजल वैक्‍सीन IgC और म्‍यूकोसल IgA डिफेंडर्स को भी बढ़ावा देती है। ये वैक्‍सीन के असरदार होने में मददगार हैं।

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