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TDS और TCS में क्या है अंतर? कब काटे जाते हैं? ITR फाइल करने से पहले समझ लें

नई दिल्ली. क्या आप जानते हैं TDS और TCS के बीच क्या अंतर होता है. किसको कौन से भरना होता है. आज हम आपको इसी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं. टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स (Tax deduction at source- TDS) और टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (Tax collection at source- TCS) टैक्स वसूल करने के दो तरीके हैं. TDS का मतलब स्रोत पर कटौती है. TCS का मतलब स्रोत पर टैक्स कलेक्शन से है. दोनों ही मामलों में रिटर्न फाइल करने की जरूरत होती है. हम आपको इनके बारे में बता रहे हैं.

बता दें कि आयकर विभाग ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की अंतिम डेट अनाउंस कर दी गई है और कुछ आइटीआर फॉर्म भी ऑनलाइन, ऑफलाइन उपलब्ध कराए जा चुके हैं. यदि तय डेट के भीतर आइटीआर फाइल करने से चूके तो आयकर विभाग मोटा जुर्माना लगा सकता है. आयकर विभाग के अनुसार वेतनभोगी व्यक्तियों और जिन करदाताओं के खातों का ऑडिट करने की आवश्यकता नहीं है उनके लिए 31 जुलाई 2023 अंतिम तिथि घोषित की गई है. इस तिथि तक टैक्सपेयर्स ऑनलाइन या ऑफलाइन तरीके से आइटीआर फाइल कर सकते हैं.

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क्या होता है TDS?
अगर किसी की कोई आय होती है तो उस आय से टैक्स काटकर अगर व्यक्ति को बाकी रकम दी जाए तो टैक्स के रूप में काटी गई रकम को टीडीएस कहते हैं. सरकार टीडीएस के जरिए टैक्स जुटाती है. यह अलग-अलग तरह के आय स्रोतों पर काटा जाता है जैसे सैलरी, किसी निवेश पर मिले ब्याज या कमीशन आदि पर. पेमेंट करने वाले व्‍यक्ति या संस्था (कंपनी) पर टीडीएस भरने की जिम्‍मेदारी होती है. अगर आपकी सैलरी से कटा TDS आपकी कुल टैक्स देनदारी से ज्यादा है तो वह ITR Filing के जरिए वापस कर दिया जाता है.

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क्या होता है TCS?
TCS टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स होता है. इसका मतलब स्रोत पर एकत्रित टैक्स (इनकम से इकट्ठा किया गया टैक्स) होता है. यह टैक्स कुछ खास प्रकार की वस्तुओं के सौदे पर लगता है. जैसे शराब, तेंदू पत्ता, इमारती लकड़ी, स्क्रैप, मिनरल्स वगैरह. सामान की कीमत लेते वक्त, उसमें टैक्स का पैसा भी जोड़कर ले लिया जाता है और सरकार के पास जमा कर दिया जाता है. वसूलने के बाद इसे जमा करने का काम सेलर या दुकानदार का ही होता है. इनकम टैक्स एक्ट की धारा 206C में इसे कंट्रोल किया जाता है.

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