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Dilip Kumar Vs Rajkumar: कहानी उस थप्पड़, ज‍िसके बाद सालों तक द‍िलीप कुमार ने राजकुमार के साथ नहीं क‍िया काम

Dilip Kumar Vs Rajkumar: द‍िलीप कुमार और राजकुमार, इन दोनों अभ‍िनेताओं ने ‘पैगाम’ फिल्‍म में एक-साथ काम क‍िया था. इस फिल्‍म में द‍िलीप कुमार छोटे भाई, जबकि राजकुमार बड़े भाई बने. लेकिन इस फिल्‍म में साथ काम करने दौरान कुछ ऐसा हुआ कि द‍िलीप साहब ने राजकुमार के साथ फिर कभी काम न करने का फैसला ले ल‍िया था.

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नई द‍िल्‍ली. हिंदी सिनेमा में न तो आज तक कोई दिलीप कुमार जैसा सम्पूर्ण अभिनेता हुआ है और ना ही राज कुमार जैसा सुपर कॉफ‍िडेंट एक्‍टर. दोनों की अपनी फैन फॉलोइंग आज तक बरकरार है. दोनों की अभिनय शैली में भी जमीन आसमान का अंतर भी था. जहां दिलीप कुमार मेथड एक्टिंग के चैंपियन थे वही राज कुमार को कैमरे और दर्शकों पर एहसान करने की आदत थी. लेकिन इन दोनों सितारों के बीच एक ऐसा हादसा हुआ, ज‍िसमें बाद इनके बीच एक-दो नहीं पूरे 36 सालों तक 36 का आंकड़ा बना रहा. वजह थी एक थप्‍पड़, वो भी सबके सामने. आइए बताते हैं कि वो क‍िस्‍सा क्‍या था.

‘पैगाम’ के सेट पर राजकुमार को वो ‘थप्‍पड़’
बहरहाल, दोनों ने एक साथ पहली बार 1959 में रामानंद सागर की एक फॅमिली ड्रामा फिल्म “पैगाम” में पहली बार साथ काम किया. इसमें एक दृश्य ऐसा था जिसमें दिलीप कुमार और राज कुमार के बीच बहस होती है और हाथापाई भी होती है. दिलीप कुमार इस समय एक बहुत बड़े स्टार बन चुके थे और राज कुमार तुलनात्मक रूप से नए थे लेकिन फिल्म में राज कुमार ने बड़े भाई का किरदार निभाया था और दिलीप कुमार ने छोटे भाई का. फिल्म की कहानी के हिसाब से राज कुमार को बड़े भाई होने के नाते छोटे भाई दिलीप कुमार को थप्पड़ मारना था. शूटिंग के दौरान राज कुमार ने दिलीप कुमार को ऐसा करारा हाथ रख कर दिया कि दिलीप कुमार सन्नाटे में आ गए. शूटिंग रुक गयी. दिलीप कुमार चोट से नहीं मगर राज कुमार की इस हरकत से इतना नाराज हुए कि इस फिल्म के बाद उन्होंने कभी राज कुमार के साथ काम नहीं करने का प्रण ले लिया. दोनों के बीच की ये नाराजगी दूर करने की ठानी शोमैन फिल्म मेकर सुभाष घई ने.

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सुभाष घई ने ठाना, बनाएंगे ‘सौदागर’
1990 के आस पास की बात है जब सुभाष घई अपने प्रिय लेखक सचिन भौमिक और कमलेश पण्डे के साथ बैठ कर सौदागर की कहानी लिख रहे थे. ज्ञात रहे कि इसके पहले सुभाष घई लगातार हिट पर हिट फिल्म बनाये जा रहे थे. कहानी लिखते समय कास्टिंग पर चर्चा होने लगी तो सुभाष घई जरा विद्रोही किस्म के निर्देशक हैं, उन्होंने कहा कि दिलीप साहब और राज कुमार को इन दो मित्रों की भूमिका में कास्ट करेंगे. सुभाष के जानने वाले हर शख्स को आयडिया अच्छा तो लगा लेकिन दिलीप कुमार और राज कुमार की आपसी कहानी को लेकर सबने सुभाष से कहा कि ये फिल्म कभी पूरी नहीं हो पायेगी. यहां सुभाष का शोमैन नेचर काम आया. उन्होंने भी ठान ली थी कि फिल्म लिखी ही दिलीप कुमार और राज कुमार को सोच के गयी थी तो कास्टिंग तो बदलेगी नहीं.

ड्राइवर से कहा, ‘गाड़ी स्‍टार्ट रखना’
सुभाष सबसे पहले पहुंचे दिलीप कुमार के घर. उनके साथ वो विधाता, हीरो और कर्मा में काम कर चुके थे तो वो आश्वस्त थे कि दिलीप साहब कहानी तो सुनेंगे ही. सुभाष ने उनके घर पूरी कहानी सुनाई और कहानी इतनी बढ़िया थी कि दिलीप कुमार मना नहीं कर पाए. उन्होंने बीच डिस्कशन में दो तीन बार सुभाष से पूछा भी कि दूसरा किरदार कौन निभाएगा. सुभाष बात को टाल कर कहानी सुनाते रहे. कहानी खत्म हुई, दिलीप कुमार की हां सुनी और सुभाष ने चैन की सांस ली. दिलीप साहब उन्हें बाहर छोड़ने आये. सुभाष ने ड्राइवर से कहा कि गाड़ी चालू कर ले और गियर में डाल ले. गाड़ी में बैठ कर सुभाष ने दिलीप कुमार से कहा कि दूसरे किरदार में वो राज कुमार को लेने वाले हैं और इस से पहले कि दिलीप साहब कुछ कहते, सुभाष की गाडी ये जा और वो जा. इसके बाद कुछ दिनों के लिए सुभाष अंतर्ध्यान हो गए.

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‘जानी, हमारे बाद कोई एक्‍टर है तो वो…’
अब बारी थी राज कुमार की. सुभाष की कहानी उन्होंने भी सुनी. सुन कर तुरंत हां कर दी लेकिन वही सवाल कि दूसरे दोस्त का किरदार कौन करेगा. सुभाष ने बड़ी हिचक के साथ कहा कि अभी कुछ तय नहीं है लेकिन दिलीप कुमार से बात करने का विचार है. राज कुमार के चेहरे के भाव बदलेंगे और अभी सुभाष को चुनिंदा गालियां देंगे इस डर से सुभाष चुपचाप बैठे रहे. राज कुमार ने कहा – जानी हमारे बाद अगर किसी को हम एक्टर मानते हैं तो वो हैं दिलीप कुमार. सुभाष घई के चेहरे पर क्या भाव आये ये तो सुभाष ही बता सकते हैं लेकिन उनके दिमाग में संभावनाओं की बुलेट ट्रेन चल पड़ी थी. राज कुमार के घर से लौट कर सुभाष ने तुरंत दिलीप साहब को राज कुमार से मुलाक़ात की बात बताई और इस तरह दिलीप कुमार और राज कुमार ने एक साथ एक फिल्म करने का फैसला लिया. 36 साल बाद दोनों आमने सामने थे. शूटिंग के समय दोनों को कैसे सुभाष घई ने संभाला वो एक अलग ही दास्तान है.

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