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भारत पर फिदा हुआ IMF, कहा- कर्ज तो चीन की तरह है लेकिन यहां रिस्क कम है

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IMF ने मीडियम टर्म में घाटे को कम करने वाली एक महत्वाकांक्षी राजकोषीय सशक्तीकरण योजना बनाने की सलाह दी है.

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अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) के एक सीनियर अफसर ने भारत को कर्ज रिस्क कम करने के लिए मीडियम टर्म में घाटे को कम करने वाली एक महत्वाकांक्षी राजकोषीय सशक्तीकरण योजना बनाने की सलाह दी है.

हालांकि, IMF में राजकोषीय मामलों के उपनिदेशक रुड डी मोइज ने कहा कि भारत पर चीन की तरह भारी कर्ज होने के बावजूद उस पर लोन से जुड़ा रिस्क अपने पड़ोसी देश की तुलना में कम है. मोइज ने पीटीआई-भाषा के साथ खास बातचीत में यह बात कही.

उन्होंने कहा कि भारत पर मौजूदा लोन बोझ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 81.9% है. चीन के मामले में यह अनुपात 83 % है और दोनों ही देश लगभग समान स्थिति में हैं. हालांकि, महामारी से पहले वर्ष 2019 में भारत का लोन जीडीपी का 75% था.

उन्होंने कहा कि भारत में राजकोषीय घाटा 2023 के लिए 8.8% रहने का अनुमान है.

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इसका एक बड़ा हिस्सा ब्याज पर होने वाले व्यय का है. वे अपने लोन पर बहुत अधिक ब्याज देते हैं जो जीडीपी का 5.4% है. प्राथमिक घाटा 3.4% होने से राजकोषीय घाटा 8.8% हो जाता है.

मोइज ने एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत का कर्ज चीन की तरह बढ़ने की आशंका नहीं है. इसके वर्ष 2028 में 1.5% की मामूली गिरावट के साथ 80.4% रहने का अनुमान है.

उन्होंने इसके लिए भारत में वृद्धि की ऊंची दर को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि उच्च वृद्धि का ताल्लुक जीडीपी के अनुपात में कर्ज से भी है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कुछ कारकों से रिस्क कम होते हैं जिनमें लंबी परिपक्वता अवधि वाले कर्ज भी शामिल हैं.

इसके साथ ही उन्होंने भारत में राज्यों के स्तर पर अधिक रिस्क होने का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ राज्यों पर बहुत अधिक कर्ज है और उन्हें ब्याज के भारी बोझ का सामना करना पड़ता है.

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IMF के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत को अपना कर्ज रिस्क कम करने के लिए मध्यम अवधि के लिए एक महत्वाकांक्षी राजकोषीय सशक्तिकरण योजना बनानी चाहिए जो कई उपायों से घाटा, खासकर प्राथमिक घाटे को कम करे.

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