All for Joomla All for Webmasters
समाचार

इनके तो रोम-रोम में राम समाए हैं, मंदिर-मूर्ति की जरूरत नहीं, हर कोई राम है

कहते हैं भगवान राम का नाम सभी दुखों से पार लगा देता है. हमारे देश में एक ऐसा समाज भी है, जो अपने पूरे शरीर पर राम का नाम गुदवा लेता है. चलिए जानते हैं उनके बारे में.

ये भी पढ़ें– Karwa Chauth 2023: करवा चौथ पर बाजार में खूब है भीड़, देश भर में बिक्री के आंकड़े जानेंगे तो मुंह खुले रह जाएंगे

‘रामा रामा रटते रटते, बीती रे उमरिया’, ‘पायो जी मैंने राम रतन धन पायो’, ‘राम नाम सिमरो, बनो रे बड़े भागी’ जी हां भगवान राम का नाम है कुछ ऐसा कि यह सभी दुखों से पार लगा देता है. कहते हैं राम कण-कण में समाए हैं. कण-कण में समाने वाले राम अगर किसी के मन में न समा पाएं तो यह राम का नहीं, उस व्यक्ति का ही दोष है. कण-कण में समाने वाले राम अपने भक्तों के रोम-रोम में समा जाते हैं. देश में एक ऐसा समाज भी है, जिसके रोम-रोम असल में राम समाए हैं. हम बात कर रहे हैं रामनामी समाज की. रामनामी समाज के लोग अपने शरीर के हर हिस्से में राम-राम लिखवाते हैं. यही नहीं उनके कपड़ों पर भी हर जगह राम का नाम होता है. चलिए जानते हैं ऐसा क्यों होता है.

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Assembly Election 2023) का प्रचार जोर-शोर से हो रहा है. पहले चरण में 7 नवंबर 2023 को दक्षिण छत्तीसगढ़ की 20 सीटों पर मतदान होगा. दूसरे चरण में उत्तर छत्तीसगढ़ की 70 सीटों के लिए 17 नवंबर को मतदान होगा. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के प्रचार की है तो ऐसे में छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज की बात न हो यह कैसे हो सकता है. रामनामी संप्रदाय के लिए राम का नाम एक धार्मिक या राजनीतिक नारा नहीं बल्कि उनकी संस्कृति का हिस्सा है.

राम नाम का टैटू

रामनामी समाज के लोग अपने पूरे शरीर पर ‘राम-राम’ का पर्मानेंट टैटू करवाते हैं. इनके पूरे शरीर पर जहां देखें वहां राम नाम एक लयबद्ध तरीके से लिखा दिखता है. यह लोग जो कपड़ने पहनते हैं उन पर भी राम-राम लिखा रहता है. देश और दुनिया में एक दूसरे का अभिवादन हेलो, हाय, नमस्कार आदि शब्दों से किया जाता है. लेकिन इस समुदाय के लोग एक-दूसरे से मिलते हैं तो राम-राम कहकर ही. हालांकि, देश के कई अन्य हिस्सों में भी राम-राम अभिवादन का एक तरीका है.

अपने-अपने नहीं यहां हर कोई राम है

मशहूर कवि कुमार विश्वास पिछले काफी समय से ‘अपने-अपने राम’ नाम से एक कार्यक्रम कर रहे हैं. लेकिन इन लोगों के तो जीवन का हिस्सा हैं राम. यहां लोगों के नाम तक नहीं लिए जाते, बल्कि सभी एक-दूसरे को राम कहकर पुकारते हैं. बड़ी बात यह है कि इनके राम अयोध्या के राजा राम नहीं हैं, न ही मंदिरों में रखी राम की मूर्तियों के प्रति इनका मोह है. बल्कि इनका राम हर मनुष्य में है, पेड़-पौधों, जीव-जंतु और पूरी प्रकृति में समाया हुआ है.

ये भी पढ़ें–  टाटा की बड़ी जीत! ममता सरकार को देना होगा 766 करोड़ हर्जाना, जानें क्या था पूरा मामला

कितनी पुरानी परंपरा

रामनामी समाज की अपने पूरे शरीर पर राम-राम लिखवाने की परंपरा बहुत पुरानी नहीं है. बल्कि इसकी शुरुआत 1890 में यानी आज से करीब 133 साल पहले हुई थी. कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में जांजगीर-चांपा जिले एक एक गांव चारपारा में इस परंपरा की शुरुआत हुई थी. यहां के एक दलित युवक परशुराम ने 1890 में यह परंपरा शुरू की थी.

कैसे शुरू हुई परंपरा

कहा जाता है कि दलित समुदाय का होने के कारण 20 वर्षीय परशुराम को मंदिर में आने से रोक दिया गया था. इस घटना के बाद उन्होंने अपने माते पर राम गुदवा लिया था. हालांकि, कुछ जानकार इसे 15वीं सदी के भक्ति आंदोलन से जोड़कर भी देखते हैं.

कोई भी बन सकता है रामनामी

भले ही यह माना जाता हो कि दलित समुदाय ने रामनामी समाज की शुरुआत की, लेकिन आज कोई भी रामनामी बन सकता है. किसी भी धर्म, वर्ण, लिंग या जाति का व्यक्ति चाहे तो रामनामी समाज के सदस्य के रूप में दीक्षित हो सकता है. इस समाज के लोगों के जीवन, रहन-सहन और बातचीत में हर जगह राम-नाम समाया हुआ है. इस समाज के लोगों के लिए शरीर पर राम-नाम गुदवाना बहुत ही जरूरी है.

यहां भी अलग-अलग वर्ग

शरीर के किसी भी हिस्से पर राम नाम लिखवाने वालों को रामनामी कहा जाता है. कुछ लोग माथे पर एक जगह राम-राम लिखवाते हैं और उन्हें शिरोमणी कहा जाता है. जो लोग पूरे माथे पर राम-राम लिखवाते हैं उन्हें सर्वांग रामनामी कहते हैं. जिन लोगों के शरीर के हर हिस्से पर राम नाम लिखा होता है, उन्हें पूर्ण नखसिख रामनामी पुकारा जाता है.

रामनामी समुदाय की परंपराएं

रामनामी समुदाय के लोग शराब का सेवन नहीं करते हैं और न ही धूम्रपान करते हैं. उनके लिए हर रोज राम नाम जपना भी अनिवार्य है. उनके शरीर पर तो राम नाम गुदा ही होता है, वे ऐसी शॉल ओढ़ते हैं, जिस पर राम नाम प्रिंट होता है. रामनामी समुदाय के लोग सिर पर एक ताज जैसा पहनते हैं, जो मोरपंख से बना होता है.

ये भी पढ़ें– Mukesh Ambani: रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अंबानी को तीसरी बार मिली धमकी, 200 करोड़ के बाद अब मांगे 400 करोड़

रामनामी समुदाय के लोग देश में अब गिने-चुने रह गए हैं. इन लोगों की आबादी मुख्यतौर पर छत्तीसगढ़ में महानदी के किनारे के आसपास ही है. कुछ लोग महाराष्ट्र और ओडिशा के बॉर्डर इलाके में भी रहते हैं. माना जाता है इनकी संख्या 20 हजार से 1 लाख के बीच है. समाज के युवा अब कई कारणों से पूरे शरीर पर राम-राम गुदवाने से परहेज भी करने लगे हैं.

Source :
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय

To Top