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Chhath Puja Special: पूरे परिवार के साथ यहां मौजूद हैं भगवान भास्कर, सफेद रोग वाले को यहां मिलती है मुक्ति

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गया शहर में विरंचिनारायण के नाम से सुविख्यात ब्राह्मणीघाट स्थित भगवान भास्कर की अद्भुत आदमकद प्रतिमा स्थापित है. शालिग्राम पत्थर की यह प्रतिमा दर्शनीय के साथ-साथ साधनीय भी है. लगभग सात फीट की सांगोपांग सूर्य की मूर्ति अपने पूरे परिवार के साथ यहां अतिप्राचीन काल से विराजमान है.

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कुंदन कुमार/गया. छठ महापर्व की तैयारी जोरों पर है. इसमें भगवान भास्कर का खासा महत्व है. ऐसे में गया शहर में विरंचिनारायण के नाम से सुविख्यात ब्राह्मणीघाट स्थित भगवान भास्कर की अद्भुत आदमकद प्रतिमा स्थापित है. शालिग्राम पत्थर की यह प्रतिमा दर्शनीय के साथ-साथ साधनीय भी है. लगभग सात फीट की सांगोपांग सूर्य की मूर्ति अपने पूरे परिवार के साथ यहां अतिप्राचीन काल से विराजमान है. जहां भगवान सूर्य के दोनों पुत्रों शनि और यम के साथ ही सूर्यपत्नी संज्ञा, सारथी अरुण के साथ सात घोड़े और एक चक्के के रथ पर विराजमान हैं. मुख्य प्रतिमा के ऊपर दोनों ओर अंधकार को भगाने वाली दो देवी उषा और प्रत्युषा की भी प्रतिमा साथ में विराजमान हैं.

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ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान सूर्य की उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि ब्रह्मा जी ने भगवान सूर्य की उपासना के लिए फल्गु नदी के किनारे 7 फीट ऊंची 2 फीट 6 इंच चौड़ी प्रतिमा स्थापित की थी. छठ पर्व में यहां छठ व्रतियों की काफी भीड़ होती है. इस तरह की प्रतिमा पूरे भारतवर्ष में बहुत कम देखने को मिलती है. इस प्रतिमा में भगवान सूर्य अपने परिवार और सारथी के साथ सात घोड़ों वाले रथ पर सवार हैं. कहा जाता है कि सफेद दाग वाले लोग यहां इनके अराधना में संलग्न होते हैं, तो उन्हें इस रोग से मुक्ति मिलती है.

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प्रथम सत्युगकाल में गयासुर ने की थी स्थापना
शास्त्रीय और पौराणिक आधारों को यदि माने तो इस मंदिर का निर्माण और विग्रह की स्थापना प्रथम सत्युगकाल में गयासुर द्वारा की गई थी. मंदिर के पुजारी आचार्य मनोज कुमार मिश्र का कहना है कि साधक अपनी किसी भी प्रकार की मनोकामना को लेकर अनुष्ठान संपन्न करता है. तत्काल उसकी मनोकामना पूर्ण होती है. इनकी आराधना से पूर्ण शांति मिलती है. जिनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं वे भी कार्तिक और चैत्र मास में संपन्न होनेवाले छठ व्रत और माघ मास की शुक्ल सप्तमी को विशेष पूजा अर्चना और भगवान सूर्य का सविधि श्रृंगार कर आशीर्वाद लेते हैं. पूरा मगध क्षेत्र ही सूर्योपासना का केंद्र माना जाता है. किंतु इनमें गया की महत्ता कुछ अलग है. इन्होंने बताया जिनके घर में दरिद्रता हो वह सूर्य की अराधना करें उनके घर से दरिद्रता खत्म हो जाती है.

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