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राजनीति

Varun Gandhi Pilibhit: राजनीतिक सूर्यास्त है! भाजपा उम्मीदवार के तौर पर आखिर क्यों फिट नहीं बैठे वरुण गांधी?

Pilibhit Lok Sabha Chunav: यूपी की वो लोकसभा सीट जहां से वरुण गांधी और मेनका गांधी दो दशक से ज्यादा समय से जीतते आ रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अचानक वरुण गांधी का टिकट काटकर पीलीभीत से जितिन प्रसाद को दे दिया. इसकी वजह क्या है?

News About Varun Gandhi: वैसे तो भाजपा ने कई सांसदों के टिकट काटे हैं लेकिन पीलीभीत से वरुण गांधी का नाम न होना सबसे ज्यादा चर्चा में है. नई कैंडिडेट लिस्ट में गाजियाबाद से वीके सिंह और बरेली से पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार समेत सात सांसदों के नाम नहीं हैं. पीलीभीत लोकसभा सीट पर वरुण गांधी की जगह यूपी के मंत्री जितिन प्रसाद को उतारा गया है. गौर करने वाली बात है कि पीलीभीत सीट 1996 से ही वरुण और उनकी मां मेनका गांधी के पास रही है. ऐसे में गली-नुक्कड़ से लेकर सोशल मीडिया पर वरुण गांधी हॉट टॉपिक बने हुए हैं. अब वह क्या करेंगे. क्या यह राजनीति सूर्यास्त जैसा है या वरुण अपने दांव से बाजी पलट देंगे?

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2014 से पहले की बात है

पूरे हालात को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. पीएम नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय पटल पर आने से एक साल पहले वरुण गांधी को भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था. वह पश्चिम बंगाल के प्रभारी भी थे. हालांकि उन्होंने संगठन के काम में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई. बंगाल के सह प्रभारी रहे सिद्धार्थ नाथ सिंह ही काम करते रहे. राहुल गांधी और अखिलेश यादव के खिलाफ उनकी लगातार टिप्पणियों के चलते 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी चूक पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया. हालांकि आगे वह भाजपा के लिए समस्याएं पैदा करने लगे.

तब वरुण गांधी की लगी होर्डिंग

भाजपा नेतृत्व के नाराजगी की एक वजह 2016 की एक घटना भी है, जब वरुण गांधी ने पार्टी के भीतर पोस्टर वॉर शुरू कर दिया. प्रयागराज में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से ठीक पहले शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तस्वीरों के साथ वरुण गांधी की बड़ी होर्डिंग लगाई गई थी. कुछ पोस्टरों पर लिखा था, ‘ना अपराध, ना भ्रष्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार’. 

रिपोर्टों की मानें तो ऐसी चर्चा चल पड़ी थी कि वरुण गांधी 2017 के यूपी चुनाव में खुद को भाजपा के अगले मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश कर रहे थे. बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व ने उन्हें अपनी राजनीतिक गतिविधियों को सुल्तानपुर तक ही सीमित रखने का निर्देश दिया. इसके बावजूद संजय गांधी और मेनका गांधी के बेटे की राजनीतिक गतिविधियों ने कई लोगों को चौंका दिया. 

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अपनों पर ही तंज

कुछ ही समय बाद वरुण गांधी ने एक आवासीय पहल की. उन्होंने गरीबों, मुसलमानों और पिछड़ी जातियों के लिए सांसद निधि से कई घर बनवाए. उन्होंने अपने निजी पैसे का भी इस्तेमाल कर लोगों के घर बनवाए. घर सौंपते हुए वह कहते, ‘मैं आशावादी हूं और लोगों की मदद करने में विश्वास करता हूं. वे (लोग) पुराने राजनीतिक तरीकों से तंग आ चुके हैं. आज के युवा केवल बयानबाजी नहीं बल्कि रिजल्ट में विश्वास करते हैं.’ कई लोगों ने इस तरह के बयान को वरुण का पार्टी के दूसरे साथियों के लिए तंज माना. 

कोरोना के समय यूपी सरकार को घेरा

हां, उन्होंने कोविड-19 पर अंकुश लगाने के लिए योगी आदित्यनाथ समेत राज्य सरकारों के नाइट कर्फ्यू लगाने के फैसले पर सवाल उठाए. उन्होंने लिखा, ‘रात में कर्फ्यू लगाना और दिन में रैलियों में लाखों लोगों को बुलाना- यह सामान्य जनमानस की समझ से परे है. यूपी की सीमित स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के मद्देनजर हमें ईमानदारी से तय करना पड़ेगा कि हमारी प्राथमिकता भयावह ओमिक्रॉन के प्रसार को रोकना है या चुनाव शक्ति प्रदर्शन.’ उन्होंने केंद्र और पार्टी के लिए असहज स्थितियां पैदा कीं.

कुछ समय बाद वरुण गांधी ने पार्टी पर फिर निशाना साधा. तब उन्होंने लखीमपुर खीरी में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी से संबंधित गाड़ियों से प्रदर्शनकारी किसानों को कुचलने का मुद्दा उठाया. इसमें चार किसानों की मौत हो गई थी. भाजपा नेतृत्व टेनी का बचाव कर रहा था लेकिन वरुण गांधी ने सोशल मीडिया पर जवाबदेही और दोषियों को न्याय के कठघरे में खड़ा करने का आह्वान किया. 

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राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाए गए

उसी साल अक्टूबर में वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी को 80 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटा दिया गया. इसे उनके पार्टी विरोधी रुख पर एक्शन समझा गया. 

पिछले साल सितंबर में वरुण गांधी ने फिर यूपी सरकार को घेरा. उन्होंने डिप्टी सीएम को लेटर लिखते हुए कहा था कि अमेठी में संजय गांधी अस्पताल की गहन जांच के बिना लाइसेंस निलंबित करना उन सभी लोगों के साथ अन्याय है जो न केवल प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं बल्कि आजीविका के लिए भी इस संस्थान पर निर्भर हैं. अस्पताल का नाम वरुण गांधी के पिता पर है, हालांकि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की चेयरपर्सन हैं जो अमेठी अस्पताल संचालित करता है. 

2019 का टिकट देते समय शायद भाजपा को लगा होगा कि वह अब पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा नहीं करेंगे लेकिन 2024 का टिकट काटकर भाजपा ने स्पष्ट संदेश दिया है कि अब और नहीं. वैसे, हाल के कुछ महीनों में वरुण गांधी लगातार मोदी सरकार के कार्यों की प्रशंसा कर रहे थे. 

अब क्या करेंगे वरुण गांधी?

1. कहा जा रहा है कि उनकी मां मेनका गांधी भाजपा नेतृत्व के इस फैसले से नाराज हैं. पार्टी ने मेनका को सुल्तानपुर से टिकट दिया है. वह जल्द ही पार्टी नेतृत्व से मुलाकात करने वाली हैं. अगर बात नहीं बनी तो वह अपनी उम्मीदवारी भी छोड़ सकती हैं. 

2. इसके अलावा कई तरह की चर्चाएं हैं. कहा जा रहा है कि वरुण गांधी नया प्रयोग कर सकते हैं. वह सपा या कांग्रेस में जाने के बजाय निर्दलीय पीलीभीत से चुनाव लड़ सकते हैं. उन्होंने पर्चे तो पहले ही खरीद लिए हैं. 

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