नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने व प्रदूषण का स्तर कम करने के लिहाज से कोयला का उपयोग अब हाइड्रोजन बनाने में भी किया जाएगा। कोयला मंत्रालय ने इस महत्वाकांक्षी योजना को मंजूरी दे दी है। इस दिशा में रोडमैप तैयार करने के लिए मंत्रालय ने दो समितियों का गठन किया है। इनमें एक तो विभिन्न विभागों के अधिकारियों का टास्क फोर्स है जबकि दूसरी समिति विशेषज्ञों की है। इन समितियों को तीन महीने में रिपोर्ट बनाकर मंत्रालय को सौंपने का निर्देश दिया गया है।
ये होंगे टास्क फोर्स में
टास्क फोर्स का गठन अपर कोयला सचिव विनोद कुमार तिवारी की अध्यक्षता में किया गया है। इसमें इंडियन आयल कार्पोरेशन के पूर्व अध्यक्ष व एफआइपीआइ के महानिदेशक आरके मल्होत्रा, कोयला मंत्रालय के परियोजना सलाहकार, एमएनआरई, पी एंड एनजी, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी रहेंगे। कोल इंडिया, एनएलसीआइएल, आइओसीएल, सीएमपीडीआइ व स्टील अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड के निदेशक स्तर के अधिकारी भी रहेंगे। कोयला मंत्रालय के तकनीकी निदेशक पीयूष कुमार सदस्य सचिव होंगे।
टास्क फोर्स का मुख्य कार्य इस प्रकार होगा
प्रत्येक हितधारक मंत्रालयों की भूमिका की पहचान, हितधारक मंत्रालयों के साथ समन्वय, कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन प्राप्त करने की दिशा में गतिविधियों की निगरानी और उपयोग, उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उप समितियों का गठन करना, कोयला गैसीकरण मिशन और नीति आयोग के साथ समन्वय स्थापित करना।
यह है विशेषज्ञों की समिति
टास्क फोर्स के अलावा जो विशेषज्ञों की समिति गठित की गई है उसका नेतृत्व फेडरेशन आफ इंडियन पेट्रोलियम इंडस्ट्री (एफआइपीआइ) के महानिदेशक आरके मल्होत्रा करेंगे। सिमति में स्टील रिसर्च टेक्नोलाजी मिशन आफ इंडिया के निदेशक डा. मुकेश कुमार, आइआइटी दिल्ली के प्रो. केके पंत, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान सीएसआइआर देहरादून के डा. अंजन रे, इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड के निदेशक शामिल होंगे। कोयला मंत्रालय के तकनीकी निदेशक पीयूष कुमार इस समिति के भी सदस्य सचिव होंगे।
विशेषज्ञ समिति के कार्य
भारत में विशेषज्ञों की पहचान करना और सदस्यों के रूप में सहयोजित करना, डेस्क आधारित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी में प्रगति की समीक्षा करना, हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी में चल रही अनुसंधान परियोजनाओं का आकलन, विभिन्न राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के साथ समन्वय करना, कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन और उपयोग के लिए एक रोड मैप तैयार करना, इसमें आर्थिक व्यवहार्यता, पर्यावरणीय स्थिरता और नीति प्रवर्तकों की आवश्यकता का अध्ययन करना, कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन के कार्यान्वयन के लिए गतिविधियों की पहचान करना और उनका उपयोग सुनिश्चित करना, कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन के कार्यान्वयन में टास्क फोर्स की सहायता करना और उपयोग करना।
कोयला से बनेगा ब्राउन हाइड्रोजन
देश में फिलहाल 100 फीसद हाइड्रोजन जिनका इस्तेमाल किया जाता है वह प्राकृतिक हाइड्रोजन होता है। इसे ग्रे हाइड्रोजन कहते हैं। इसके अलावा नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में विश्व में ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता रहा है। कोयला से बने हाइड्रोजन को ब्राउन हाइड्रोजन कहा जाता है। यही बनाने की भी सरकार की योजना है। इसे वाहनों में ईंधन के रूप में उपयोग में लाया जा सकेगा। इसे नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में भंडारण किया जा सकेगा।
हाइड्रोजन का बड़ा भंडार बन सकता है कोयला
मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक विश्व स्तर पर, 73 मीट्रिक टन हाइड्रोजन का उपयोग रिफाइनिंग, अमोनिया बनाने और अन्य शुद्ध उपयोग के लिए किया जाता है। लगभग 42 मीट्रिक टन मेथनॉल, स्टील बनाने और अन्य मिश्रित उपयोगों के लिए उपयोग किया जाता है। कोयले से उत्पादित हाइड्रोजन की लागत क्रमशः इलेक्ट्रोलिसिस और प्राकृतिक गैस के माध्यम से हाइड्रोजन उत्पादन की तुलना में आयात के लिए सस्ती और कम संवेदनशील हो सकती है। कोयले से हाइड्रोजन के उत्पादन में उच्च उत्सर्जन के मामले में चुनौतियां होंगी और इसमें कार्बन कैप्चर यूजेज एंड स्टोरेज (सीसीयूएस) तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस तकनीक से कोयला से हाइड्रोजन बनाया जाए तो भारत में इसका व्यापक भंडारण किया जा सकता है।
