गहलतोत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जिन विधायकों को राजनीतिक नियुक्तियां दी गई है, उन्हें मंत्री जैसी सुविधाएं नहीं दी जाएंगी। गहलोत सरकार ने हाल ही में विभिन्न बोर्ड, निगम और आयोग में 44 राजनीतिक नियुक्तियां दी है। इनमें 11 विधायकों को विभिन्न बोर्ड, निगम और आयोग का अध्यक्ष बनाया है। इन विधायकों ने पायलट कैंप की बगावत के समय गहलोत सरकार को सियासी संकट से उबारने में मदद की थी। राज्य सरकार का कहना है कि कानूनी राय लेने के बाद की विधायकों को नियुक्तियां दी गई है। किसी विधायक को मंत्री स्तर का कोई दर्जा नहीं दिया गया है। विधायक के अलावा किसी तरह का लाभ नहीं दिया गया है। भाजपा द्वारा राजनीति नियुक्तियों को कोर्ट में चुनौती देने की घोषणा के बाद राज्य सरकार ने यह स्पष्टीकरण दिया है।
कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी के बीच सीएम गहलोत ने निकाली गली
संवैधानिक व्यवस्था में इन नियुक्तियों को लाभ का पद माना जाता है। ऐसे में इन नियुक्तियों पर अंकुश लगा रहेगा। भाजपा ने इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए कोर्ट में चुनौती देने की एलान कर दिया है। भाजपा के उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि बोर्ड, निगम और आयोगों में नियुक्तियां संविधान के खिलाफ है। राजेंद्र राठौड़ का कहना है कि ऐसे पदों पर विधायकों की नियुक्तियों पूर्व में भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आ चुके हैं। विधायकों के ऐसे नियुक्तियों में अलग से पद मानकर लाभ की सुविधान नहीं दी जा सकती। सीएम गहलोत के सलाहकार संयम लोढा का कहना है कि कानून राय लेने के बाद की विधायकों को नियुक्तियां दी गई है। किसी विधायक को मंत्री स्तर का कोई दर्जा नहीं दिया गया है। विधायक के अलावा किसी तरह का लाभ नहीं दिया गया है। सीएम गहलोत ने सियासी संकट में मदद करने वाले बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायक एवं निर्दलीय विधायकों को विभिन्न बोर्ड, आयोग एवं निगमों का अध्यक्ष बनाया है। विधायक महादेव सिंह खंडेला, रफीक खान, दीपचंद खैरिया, मेवाराम जैन, खिलाड़ीलाल बैरवा,हाकम अली खान, लाखन मीणा, जोगिंद्र सिंह अवाना, कृष्णा पूनिया, लक्ष्मण मीणा और रमीला खड़िया को राजनीतिक पदों पर नियुक्त किया है।
यह कहता है कानून
संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ए) तथा अनुच्छेद 119 (1) (ए) में लाभ के पद का उल्लेख किया गया है। किंतु लाभ के पद को परिभाषित नहीं किया गया है। अनुच्छेद 102 (1) (ए) के अंतर्गत संसद सदस्यों के लिए तथा अनुच्छेद 191 (1) (ए) के तहत राज्य विधानसभा के सदस्यों के लिए ऐसे किसी अन्य पद को धारण करने की मनाही है। जहां वेतन , भत्ते या अन्य दूसरी तरह के सरकारी लाभ मिलते हो। इस तरह के लाभ की मात्रा का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अगर कोई सांसद और विधायक किसी लाभ के पद पर आसीन पाया जाता है तो संसद या संबंधित विधानसभा में उसकी सदस्यता को अयोग्य करार दिया जा सकता है। केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार किसी भी विधायक द्वारा सरकार में ऐसे लाभ केल पद को हासिल नहीं किया जा सकता। जिसमें सरकारी भत्ते या अन्य शक्तियां मिलती है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (ए) में भी सांसदों व विधायकों को लाभ का पद धारण करने की मनाही है।