All for Joomla All for Webmasters
मनोरंजन

Dasvi Review: अभिषेक बच्चन ने फिर किया ‘दसवीं’ में एक बड़ा एक्सपेरिमेंट, या तो इस पार या उस पार

Dasvi Movie Review: बॉलीवुड एक्टर अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘दसवीं’ की फिल्म रिलीज हो गई है. मूवी में अभिषेक के साथ निम्रत कौर और यामी गौतम जैसे सितारे नजर आएंगे. अगर आप ये फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं तो ये रिव्यू जरूर पढ़ें.

  • अभिषेक बच्चन की ‘दसवीं’ हुई रिलीज
  • जानें कैसी है फिल्म 
  • मूवी देखने से पहले पढ़ें ये रिव्यू

कास्ट: अभिषेक बच्चन, निम्रत कौर, यामी गौतम, मनु ऋषि, अरुण कुशवाह, दानिश हुसैन आदि

निर्देशक:  तुषार जलोटा

स्टार रेटिंग: 3

कहां देख सकते हैं: नेटफ्लिक्स पर

नई दिल्ली: ‘मेरे बेटे, बेटे होने से मेरे उत्तराधिकारी नहीं होंगे, जो मेरे उत्तराधिकारी होंगे, वो मेरे बेटे होंगे’. अभिषेक बच्चन की मूवी ‘दसवीं’ की रिलीज से ठीक एक दिन पहले अमिताभ बच्चन ने अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की ये पंक्तियां लिखने के साथ ही लिखा कि, ‘Abhishek, my uttradhikari, my inheritor… my PRIDE… proud of you…’ आमतौर पर अभिषेक की हर मूवी को देखकर वो उनकी तारीफ करते हैं, लेकिन इस तरह की जबरदस्त तारीफ ‘गुरु’ जैसी गिनती की फिल्मों को ही मिली है. लेकिन इससे आप ये ना मान लें कि ‘दसवीं’ गुरु होने जा रही है, लेकिन ये जरूर तय है कि अभिषेक ने इस मूवी में उसी तरह का रिस्क लिया है, या कह सकते हैं कि बड़ा एक्सपेरिमेंट किया है.

अभिषेक ने बोली ठेठ हरियाणवी

इस मूवी के डायरेक्टर तुषार जलोटा अब तक जिन फिल्मों में बतौर सेकंड यूनिट डायरेक्टर जुड़े रहे यानी ‘बरफी’, ‘रामलीला’, ‘पद्मावत’ में एक खास बात थी कि ये तीनों ही एक खास किस्म के माहौल में रची बसी थीं, एक खास किस्म की भाषा उसके पात्र बोलते थे, तो जब तुषार ने अपनी मूवी डायरेक्ट करने की सोची तो भी आइडिया उसी तरह का लिया कि एक खास किस्म के माहौल में हो, तो उनकी मूवी हरियाणा के चौधराहट वाले माहौल में बनी है. सोचिए अभिषेक बच्चन को आप ठेठ हरियाणवी बोलते देखेंगे, तो कैसा लगेगा. अभिषेक के लिए भी ये आसान नहीं रहा होगा और दिलचस्प बात है कि ‘गुरु’ के किरदार की तरह अभिषेक इस रोल में भी पूरी तरह घुस गए हैं, हालांकि दर्शकों को शुरुआत में ये आसानी से पचता नहीं है, लेकिन फिर सामान्य हो जाता है.

राजनैतिक परिवारों से प्रेरित है फिल्म

कहानी देश के दो बड़े राजनैतिक परिवारों से प्रेरित लगती है और उन्हें जोड़कर एक नई व तीसरी कहानी ही रच दी गई है ताकि विवादों से बचा जाए. एक कहानी ओमप्रकाश चौटाला की और दूसरी लालू यादव- राबड़ी देवी की. हालांकि, मूवी में बैकग्राउंड हरियाणा का लिया गया है. डायरेक्टर ने इसके लिए ‘एयरलिफ्ट’, ‘कहानी’, ‘D-डे’ जैसी सुपरहिट मूवीज की लेखक जोड़ी सुरेश नैयर और रितेश शाह को जिम्मेदारी सौंपी. ‘पिंक’ के डायलॉग्स के लिए तो रितेश की काफी तारीफ भी हुई थी.

ऐसी है फिल्म की कहानी

‘दसवीं’ की कहानी है एक ऐसे अगूंठा छाप चौधरी गंगाराम (अभिषेक बच्चन) की, जो हरित प्रदेश का मुख्यमंत्री है, लेकिन दस्तखत करने की जगह पर पांच छोटे-छोटे विराम खींचकर एक फुलस्टॉप उनके ऊपर लगा देता है. बावजूद इसके उसे जीतना आता है, जाति की राजनीति आती है, सारे जोड़-तोड़ और हथकंडे आते हैं. लेकिन एक भर्ती घोटाले में उसका नाम आते ही उसको जेल जाना पड़ता है और उसकी जगह उसकी पत्नी विमला चौधरी (निम्रत कौर) को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है.

गंगाराम की जेल में बढ़ती है परेशानी

इधर जेल में ऐश की जिंदगी काट रहे और बेल का जुगाड़ कर रहे गंगाराम के लिए तब दिक्कत हो जाती है, जब जेल अधीक्षक बनकर आ जाती है वो ईमानदार पुलिस ऑफिसर यानी यामी गौतम, जिसे एक बार अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज करने की वजह से गंगाराम चौधरी ने ट्रांसफर करवाया था. वो जेल में गंगाराम की सारी ऐश बंद करवाकर कुर्सी बनाने के काम में लगा देती है, इधर गंगाराम की पत्नी को सत्ता का नशा चढ़ते ही उसके रंग-ढंग बदल जाते हैं और वो नहीं चाहती कि पति जेल से कभी बाहर आए.

जेल में पढ़ाई करेगा गंगाराम

ऐसे में गंगाराम जेल से ही दसवीं परीक्षा पास करने का मन बनाता है, ताकि काम से बचा जा सके और भावुक होकर बोल देता है कि ‘दसवीं पास नहीं कर पाया तो दोबारा सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा’. लेकिन उसकी पत्नी पूरी कोशिश करती है कि वो दसवीं पास ना कर पाए. इधर गंगाराम की जेल में कुछ कैदी मदद करते हैं, उसे पढ़ाते हैं ताकि वो दसवीं पास कर ले. आगे की कहानी इसी पर है कि क्या वो दसवीं पास कर पाएगा?  क्या वो जेल से बाहर आ पाएगा? क्या वो पत्नी से बदला लेगा? क्या जेल अधीक्षक को सबक सिखा पाएगा? क्या वो फिर से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बन पाएगा? 

दिखता है राइटर्स का काम 

आपको शायद इनके जवाब आसान लगें लेकिन कहानी के दोनों लेखक और निर्देशक यहां पीएम मोदी बन गए हैं, यानी जैसा आप सोचेंगे वैसा नहीं होगा, जिसे आप मुख्यमंत्री समझते हैं कि उसके नाम का ऐलान होना चाहिए, लेकिन मोदीजी नहीं करते हैं. वैसा ही इन तीनों ने भी दर्शकों के मन से खेलने की कोशिश की है, कई जगह आपके अनुमान गलत साबित होंगे.

फिल्म में कॉमेडी का तड़का

फिर भी ये मूवी बहुत दिमाग लगाकर देखने लायक नहीं है, दिमाग लगाएंगे तो जान जाएंगे कि एक आम पुलिस इंस्पेक्टर कभी जेलर की जगह नहीं ले सकता, ज्यूशियल पुलिस ही अलग होती है. सो इन सबमें दिमाग ना लगाएं और हलके भाव से मूवी देखें. डायरेक्टर ने तमाम सीन्स ऐसे रचे हैं, घंटी और जेलर जैसे तमाम किरदार ऐसे जोड़े हैं, जिससे फिल्म का कॉमेडी फ्लेवर बना रहे, हालांकि कहीं कहीं ज्यादा सीरियस लगने लगती है. तमाम चुटीले डायलॉग्स आपको मूवी देखते देखते हसाएंगे भी. हरियाणवी में ये और भी अच्छे लगेंगे, कई जगह ये मूवी या सींस बनावटी भी लग सकते हैं.

दिमाग लगाने की नहीं पड़ेगी जरूरत

हालांकि इस मूवी में आपको अभिषेक बच्चन को लाला लाजपत राय को लाठियों से बचाकर ले जाते, डांडी मार्च में गांधीजी के साथ भाग लेते, अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद को बचाकर निकालने की कोशिश करते, नेताजी बोस का ड्राइवर बनकर उनको वेश बदलकर घर से निकालते भी देखेंगे. मूवी में कुछ केमिकल लोचा भी है. इसलिए ये मूवी उन लोगों को काफी पसंद आएगी जो हलके-फुलके मनोरंजन के लिए निश्छल भाव से मूवी देखते हैं, लेकिन जो लोग ज्यादा दिमाग लगाएंगे, वो इसे खारिज भी कर सकते हैं.

अभिषेक-निम्रत ने किया बेहतरीन काम

अभिषेक तो इस मूवी में कमाल हैं ही, निम्रत कौर ने भी कम मेहनत नहीं की है, यामी गौतम के हिस्से में भी दमदार रोल आया है. मनु ऋषि हमेशा की तरह अपने छोटे रोल मे भी प्रभाव छोड़ जाते हैं, अरुण कुशवाह को आपने छोटे पर्दे पर काफी कॉमेडी-मिमिक्री करते देखा होगा, बड़े पर्दे पर भी अपना असर छोड़ गए हैं. सचिन-जिगर का म्यूजिक मूवी की जरूरत के मुताबिक औसत रहा है, हालांकि मूवी की एडिटिंग कमाल की है. अगर अभिषेक बच्चन फैन हैं तो ये मूवी जरूर देखें, अगर नहीं हैं तो छोड़ भी सकते हैं. लेकिन पारिवारिक माहौल में देखने के लिए एक अच्छा टाइमपास है.

Source :
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय

To Top