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महंगाई में लगेगा बिजली का ‘झटका’, मांग पूरी करने के लिए आयात होगा 7.6 करोड़ टन कोयला, कितने रुपये बढ़ेगा बिल?

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देश में भीषण गर्मी के बीच बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्‍त कोयले का उत्‍पादन नहीं हो पा रहा है. मानसून की वजह से भी कोयले का उत्‍पादन प्रभावित होगा और बिजली उत्‍पादन कंपनियों के पास इसकी कमी हो सकती है. इस कमी को पूरा करने के लिए कंपनियां बड़ी मात्रा में कोयला आयात करेंगी, जिसका असर उपभोक्‍ताओं के बिल पर भी दिखेगा.

हाइलाइट्स

कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) करीब 1.5 करोड़ टन कोयले का आयात करेगी.
9 जून को सबसे ज्‍यादा 211 गीगावाट की बिजली खपत देशभर में हुई.
बिजली उत्‍पादन कंपनियों को रोजाना 21 लाख टन कोयले की जरूरत पड़ती है.

नई दिल्‍ली. देश में बेतहाशा बढ़ती महंगाई के बीच अब बिजली का ‘झटका’ भी लग सकता है. भीषण गर्मी में बढ़ी बिजली की मांग पूरी करने के लिए सरकार 7.6 करोड़ टन कोयला आयात करने की तैयारी में है.

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दरअसल, देश के पावर प्‍लांट के पास घरेलू खदानों से आए कोयले की कमी हो गई है और मांग के अनुरूप बिजली का उत्‍पादन नहीं हो पा रहा है. माना जा रहा है कि मानसून की बारिश की वजह से अगस्‍त और सितंबर में कोयले का उत्‍पादन और प्रभावित होगा. ऐसे में मांग को पूरा करने के लिए सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) करीब 1.5 करोड़ टन कोयले का आयात करेगी.

इसके अलावा देश में बिजली उत्‍पादन की सबसे बड़ी कंपनी एनटीपीसी और दामोदर वैली कॉरपोरेशन (DVC) भी करीब 2.3 करोड़ टन कोयले के आयात की योजना बना रही है. साथ ही अन्‍य सरकार और निजी बिजली उत्‍पादन कंपनियां भी अपनी खपत पूरी करने के लिए 3.8 करोड़ टन कोयले का आयात कर सकती हैं. इस तरह साल 2022 में ही देश में करीब 7.6 करोड़ टन कोयले का आयात होगा, जो ग्‍लोबल मार्केट के रेट पर होना है.

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80 पैसे प्रति यूनिट तक बढ़ जाएगा बिल
कोयला आयात करने का सीधा मतलब है कि बिजली उत्‍पादन अब महंगा हो जाएगा. जाहिर है कि बिजली उत्‍पादन करने वाली कंपनियां इस बढ़ी लागत को उपभोक्‍ताओं से वसूलेंगी और उनके बिल पर बोझ बढ़ जाएगा. अनुमान है कि आने वाले दिनों में बिजली का प्रति यूनिट खर्च 50-80 पैसे बढ़ेगा. मामले से जुड़े दो सरकारी अधिकारियों का कहना है कि प्रति यूनिट खर्च में बढ़ोतरी इस बात पर निर्भर करेगी कि पावर स्‍टेशन समुद्री बंदरगाह से कितनी दूरी पर स्थित है. इसका मतलब है कि कोयले की बंदरगाहों से स्‍टेशन तक ढुलाई का खर्च भी कंपनियों की लागत में जुड़ेगा.

क्‍यों अपनाना पड़ा आयात का रास्‍ता
मामले से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि देश में गर्मी बढ़ने के साथ बिजली की खपत भी रिकॉर्ड स्‍तर तक पहुंच गई थी. इस साल देश में 60 लाख से ज्‍यादा एसी बिके हैं, जबकि 9 जून को सबसे ज्‍यादा 211 गीगावाट की बिजली खपत देशभर में हुई. वैसे तो मानसून के साथ इसमें कमी आई है, लेकिन 20 जुलाई को अधिकतम खपत 185.65 गीगावाट की रही. फिलहाल बिजली की मांग पूरी करने के लिए कंपनियों को रोजाना 21 लाख टन कोयले की जरूरत पड़ती है. अगस्‍त, सितंबर और अक्‍तूबर में कोयले का उत्‍पादन मानसून की वजह से प्रभावित होगा. लिहाजा कंपनियों को अपनी मांग पूरी करने के लिए आयात का रास्‍ता अपनाना पड़ रहा है.

कंपनियों का कहना है कि 15 अगस्‍त के बाद से ही कोयले की कमी शुरू हो जाएगी लेकिन उम्‍मीद है कि आयात के जरिये इसकी भरपाई हो सकेगी. इसके अलावा 15 अक्‍तूबर के बाद स्थितियां और अनुकूल हो जाएंगी, क्‍योंकि तब बिजली की खपत में कमी आ जाएगी और मानसून खत्‍म होने के बाद कोयले का उत्‍पादन भी बढ़ाया जा सकेगा.

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