रुद्रप्रयाग जिले के केदारघाटी में बाबा केदार का सुंदर और भव्य मंदिर है. केदारनाथ मंदिर कत्युरी शैली में बना है. इस शैली के मंदिर में पत्थरों और देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की अच्छी नक्काशी देखने को मिलती है. कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंशीय जन्मेजय ने करवाया था. यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है और आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था
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रुद्रप्रयाग. विश्व प्रसिद्ध ग्यारहवां ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ धाम है. हर वर्ष यहां लाखों भक्त भगवान के दर्शन करने पहुंचते हैं. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के केदारघाटी में बाबा केदार का सुंदर और भव्य मंदिर है. केदारनाथ मंदिर कत्युरी शैली में बना है. इस शैली के मंदिर में पत्थरों और देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की अच्छी नक्काशी देखने को मिलती है. कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंशीय जन्मेजय ने करवाया था. यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है और आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव हत्या के पाप का पश्चाताप करने के लिए भगवान शिव की खोज में केदारघाटी की ओर चल पड़े थे. भगवान शिव पांडवों को दोषी मानते हुए उनसे मिलना नहीं चाहते थे, इसलिए जब पांडव यहां पहुंचे, तो भगवान शिव पशुओं के बीच चले गए ताकि उन्हें कोई पहचान न सके. पांडवों को आकाशवाणी से पता चल गया कि पशुओं के झुंड में भोले शंकर हैं. इसलिए शिव को ढूंढने के लिए भीम दो पहाड़ों के बीच पैर फैलाकर खड़े हो गए. तब सभी जानवर भीम के पैरों के नीचे से चले गये. लेकिन, शिव जी ऐसा नहीं करते, जिससे पांडव भगवान शिव को पहचान जाते हैं.
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भीम बैल रूपी शिव के पास जैसे ही गये तो वो अंतर्ध्यान होकर जमीन में धंसने लगे. यह देख भीम ने बैल रूपी शिव का कूबड़ (पृष्ठ भाग) को पकड़ लिया, जो यहां एक शिला के रूप में विराजमान हो गया. केदारनाथ धाम में इसलिए भगवान शंकर के पृष्ठ भाग की पूजा होती है और अग्र भाग की पूजा नेपाल में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर में होती है.
केदारनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी शिवशंकर बताते हैं कि सतयुग में यहां नर और नारायण ऋषि ने भगवान शंकर की तपस्या की थी. उसी का पुण्य फल प्रसाद है कि भगवान शिव ज्योतिर्लिंग स्वरूप में केदारधाम में प्रकट हुए. जो भी भक्त बाबा केदार के दर्शन करते हैं, उनके रोग, दोष, पाप सभी नष्ट हो जाते हैं. सर्दियों में ठंड और बर्फबारी को देखते हुए कपाट बंद कर दिए जाते हैं. तब ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में बाबा केदार पूजे जाते हैं.
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कैसे पहुंचे यहां
केदारनाथ की यात्रा सही मायने में हरिद्वार या ऋषिकेश से आरंभ होती है. हरिद्वार देश के सभी बड़े और प्रमुख शहरों से रेल के द्वारा जुड़ा हुआ है. हरिद्वार तक ट्रेन से आया जा सकता है. यहां से आगे जाने के लिए टैक्सी बुक किया जा सकता है. बस से भी केदारनाथ धाम तक पहुंच सकते हैं.