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बिज़नेस

आधे से कम किराये में ‘राजधानी’ का सफर, वंदेभारत जैसी स्पीड, बिजनेस नहीं सेवा करती है रेलवे

भारतीय रेलवे बिजनेस नहीं सेवा करती है. उसका मकसद लाभ कमाना नहीं है. इसी कारण तो वह जहां एक तरफ राजधानी और वंदेभारत जैसी ट्रेनें चलाती है तो दूसरी तरफ समाज के निचले तबके के लिए ऐसी ही स्पीड वाली अन्य ट्रेनें भी चलाती है जिसमें किराया इनकी तुलना में करीब 40 फीसदी है.

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भारतीय रेलवे का मकसद देश के नागरिकों की सेवा करना है. यही कारण है कि यह कई तरह की सेवाएं संचालित करती है. इन सेवाओं का मकसद समाज के अलग-अलग वर्ग की जरूरतों को पूरा करना है. वह उच्च मध्यवर्ग के लिए वंदेभारत और राजधानी जैसी ट्रेनें संचालित करती है. वहीं अमीर कारोबारी वर्ग के लिए अहमदाबाद से मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन चलाने का भी काम चल रहा है. इसी तरह सुपर फास्ट और मेल, पैसेंजर, ईएमयू, डीएमयू, इंटरसिटी जैसे तरह-तरह की ट्रेनें चलाई जाती हैं. इन सभी सेवाओं का मकसद हर एक अलग वर्ग की जरूरत को पूरा करना है.

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इन जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ अपने नागरिकों को कम पैसे में बेहतरीन सेवाएं देना भी रेलवे का काम है. भारत सरकार के इस विभाग पर यह भी दबाव रहता है कि वह समाज के गरीब वर्ग तक यथासंभव उच्च वर्ग के लिए बनाई गई सुविधाएं को कम पैसे में उपलब्ध करवाए. इसी कॉन्सेप्ट के तहत रेलवे ने करीब दो दशक पहले ‘गरीबों की राजधानी’ कहलाने वाली एक ट्रेन सेवा शुरू की. इन ट्रेनों में राजधानी तो क्या सामान्य एक्सप्रेस ट्रेनों से भी करीब 30 फीसदी कम किराया लगता है. इतना ही नहीं ये ट्रेनें स्पीड और समय पर गंतव्य तक पहुंचाने के मामले में राजधानी और वंदेभारत जैसी ट्रेनों को टक्कर देती हैं. हम बात कर रहे हैं गरीब रथ एक्सप्रेस ट्रेनों की. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि ये ट्रेनें स्पीड और टाइम एकुरेसी के मामले में राजधानी और वंदेभारत को टक्कर देती हैं.

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दरअसल, गरीब रथ ट्रेनों की शुरुआत वर्ष 2005 में की गई थी. ये पूरी तरह एयरकंडिशन्ड ट्रेनें हैं. इन्हें नो फ्रिल्स (No-frills) एयर कंडिशन्ड ट्रेन कहा जाता है. नो फ्रिल्स का मतलब यह है कि इन ट्रेनों में वे चीजें नहीं हैं जिन्हें लगाना अनिवार्य हो. इस तरह इसके किराये को कम रखने में सहायता मिलती है. आज देश भर के 26 मार्गों पर ये ट्रेनें चल रही हैं. इनकी सेवाएं शानदार हैं. इस ट्रेन सेवा की शुरुआत बिहार के सहरसा से पंजाब के अमृतसर के बीच सबसे पहले हुई थी.

राजधानी जैसी स्पीड
गरीब रथ ट्रेनों की अधिकतम स्पीड 130 किमी प्रति घंटा तय की गई है. इस मामले में ये ट्रेनें राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों को टक्कर देती है. राजधानी ट्रेनों की भी अधिकतम स्पीड 130-140 किमी प्रति घंटे की है. इतना ही नहीं देश की पहली सेमी हाईस्पीड ट्रेन वंदेभारत को भी यह टक्कर देती है. वंदे भारत ट्रेन की दिल्ली-भोपाल रूट पर अधिकतम स्पीड 160 किमी तय की गई है वहीं अन्य मार्गों पर इसकी अधिकतम स्पीड 130 किमी के आसपास ही है. इस ट्रेन की स्पीड का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि दिल्ली से पटना के बीच राजधानी ट्रेनें 11:30 से 11:55 घंटे का समय लेती हैं वहीं गरीब रथ 12:30 घंटे में पहुंचाती है.

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राजधानी की तुलना में आधे से भी कम किराया
इस ट्रेन में राजधानी ट्रेनों की तुलना में करीब 40 फीसदी किराया लगता है. उदाहरण के लिए आप दिल्ली से पटना के बीच चलने वाली राजधानी ट्रेन में थर्ड एसी का किराया करीब 2500 रुपये है. वहीं गरीब रथ में इन दोनों शहरों के बीच का किराया मात्र 950 रुपये है. जहां तक यात्रा में समय लगने की बात है तो इन दोनों ट्रेनों की स्पीड करीब-करीब सेम है. लेकिन, गरीब रथ के बिहार में प्रवेश करने के बाद स्टॉपेज ज्यादा हैं इस कारण यात्रा समय में मामूली बढ़ोतरी हो जाती है.

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यहां से खर्च निकालती है रेलवे
आपके दिमाग में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इतनी कम कीमत में एसी कोच में सफर कराने वाली रेलवे संचालन खर्च कैसे निकालती है. दरअसल, जैसा कि हमने ऊपर ही बताया है कि गरीब रथ ट्रेनों को ‘नो फ्रिल्स’ कैटगरी में रखा गया है. यानी इन ट्रेनों में ऐसी कोई साजसज्जा या सुविधा नहीं दी जाती जो बेहद जरूरी न हो. इसी कारण इसमें राजधानी की तरह टिकट की कीमत में खाने-पीने का खर्चा शामिल नहीं है. फिर इस ट्रेन में यात्रियों को कंबल-चादर भी नहीं दिए जाते. इसके लिए यात्रियों को सफर के दौरान भुगतान करना पड़ता है. इसके साथ ही इस ट्रेन की सीटें राजधानी जैसी आरामदायक नहीं हैं. इसके एक थर्ड एसी कोच में 78 बर्थ हैं वहीं राजधानी एक्सप्रेस के थर्ड एसी कोच में केवल 64 यात्रियों के सोने की व्यवस्था होती है. यानी गरीब रथ के एक कोच में राजधानी की तुलना में 14 बर्थ ज्यादा होते हैं.

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