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बेहद कठिन नियमों वाली होती है कांवड़ यात्रा, भगवान शिव होते हैं प्रसन्न

Sawan And Kanwar Yatra : सावन के साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरूआत हो चुकी है. कठिन नियमों के साथ इस कांवड यात्रा को भक्त करते हैं. कांवड़ यात्रा तीन तरह की होती है. जिसमें दांडी कांवड़ यात्रा सबसे कठिन होती है.

Sawan And Kanwar Yatra : सावन के साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरूआत हो चुकी है. कठिन नियमों के साथ इस कांवड यात्रा को भक्त करते हैं. कांवड़ यात्रा तीन तरह की होती है. जिसमें दांडी कांवड़ यात्रा सबसे कठिन होती है.

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कांवड़ यात्रा 

कांवड़ यात्रा एक पवित्र और बेहद ही कठिन यात्रा होती है. इस यात्रा के दौरान भक्त पवित्र स्थानों से गंगाजल लेकर आते हैं . ज्यादातर लोग गंगाजल गौमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार से गंगाजल को लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं. . कांवड़ बांस से बनी हुई होती है. इसके दोनों छोरों पर घड़े बंधे होते हैं जिसमें गंगाजल होता है.  घड़ों को गंगाजल से भरकर कांवड़ यात्रा को नंगे पैर पैदल पूरा किया जाता है.  लोग भक्तों को आराम देने के लिए विश्राम स्थल भी बनाते हैं और इनके खाने पीने का इतंजाम भी करते हैं.

कांवड़ यात्रा के कठोर नियम
कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया अपनी कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकता है. इसके अलावा बिना नहाए हुए कावड़ को छूना पूरी तरह से वर्जित है. कांवड़ को किसी पेड़ के नीचे भी नहीं रख सकते हैं. कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़िया मांस, मदिरा या किसी प्रकार का तामसिक भोजन नहीं कर सकते.

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कांवड़ यात्रा के प्रकार
कांवड़ यात्रा तीन प्रकार की होती है. पहली सामान्य कांवड़ यात्रा इसमें कांवड़िया अपनी जरूरत के हिसाब से और थकान के मुताबिक जगह-जगह रुककर आराम करते हैं. और फिर आगे बढ़ते हैं.  दूसरी डाक कांवड़ इस यात्रा में कांवड़िया जब तक भगवान शिव का जलाभिषेक नहीं कर लेता है तब तक लगातार चलते ही रहते हैं. और तीसरी सबसे कठिन माने जाने वाली दांडी कांवड़ यात्रा.  इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िया गंगा के किनारे से लेकर जहां पर भी उसे भगवान शिव का जलाभिषेक करना है वहां तक दंड करते हुए जाते हैं. इस कांवड यात्रा को पूरा करने में एक महीने या फिर इससे ज्यादा का समय लग जाता है.

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