All for Joomla All for Webmasters
बिज़नेस

बैंकों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए RBI जारी करेगा नई गाइडलाइंस, जानें- EMI और लोन के टेन्योर में कैसे होती है हेरफेर?

RBI

लोन देने की प्रॉसेस को अधिक रीलायबल बनाने के लिए, RBI बैंकों के लिए EMI अमाउंट और होम लोन (Loan Tenure) तय करते समय पालन करने के लिए गाइडलाइंस पेश करने की तैयारी कर रहा है.

होम लोन (Home Loan) के क्षेत्र में, समान मासिक किस्त (EMI) और होम लोन (Loan Tenure) अक्सर शक के दायरे में होते हैं. बॉरोअर्स (Borrowers) अक्सर बैंकों द्वारा किए गए मनमाने फैसलों से कन्फ्यूज रहते हैं, जिससे फाइनेंशियल अनिश्चितताएं और असंतोष पैदा होता है. इसको ट्रांसपैरेंट और स्टैंडर्ड बनाए जाने की जरूरत को पहचानते हुए, RBI होम लोन (Home Loan) के लिए EMI और टेन्योर तय करते समय बैंकों की मनमानी पर अंकुश लगाने के मकसद से नई गाइडलांस लेकर आ रहा है.

ये भी पढ़ें– OMG! लिफ्ट में चढ़ते ही फंस गए दो बुजुर्ग सहित पांच लोग, गार्ड भी नहीं खोल पाए गेट

होम लोन (Home Loan) के लिए अप्लाई करने वाले लंबे समय से इस बात से कन्फ्यूज हैं कि बैंक लोंस के लिए EMI और टेन्योर कैसे तय करते हैं. समान फाइनेंशियल प्रोफ़ाइल वाले बॉरोअर्स (Borrowers) को अलग-अलग बैंकों से अलग-अलग EMI और टेन्योर के प्रस्ताव प्राप्त हो सकते हैं, जिससे वे ऐसी मिसमैच के पीछे के तर्क पर सवाल उठा सकते हैं. इस मिसमैच ने लोन देने की प्रॉसेस में ट्रांसपैरेंसी और लेंडर्स (Lenders) के लाभ उठाए जाने की संभावना के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं.

RBI का रीएक्शन और प्रस्तावित गाइडलाइंस

इन चिंताओं को दूर करने और लोन देने की प्रॉसेस को अधिक रीलायबल बनाने के लिए, RBI बैंकों के लिए EMI अमाउंट और होम लोन (Loan Tenure) (तय करते समय पालन करने के लिए गाइडलाइंस पेश करने की तैयारी कर रहा है. इन गाइडलाइंस से एक स्टैंडर्ड और ट्रांसपैरेंट एप्रोच के महत्व पर जोर देने की उम्मीद है जिसमें बॉरोअर की फाइनेंशियल कैपेसिटी, करेंट मार्केट कंडीशंस और रेगुलेटर की बातों को ध्यान में रखा जा सकता है.

ये भी पढ़ें– Share Market: LIC समेत इन कंपनियों के शेयरों में आई तेजी, सेंसेक्स और निफ्टी उछाल के साथ कर रहे हैं कारोबार

RBI गाइडलाइंस की मुख्य बातें क्या हो सकती हैं?

ट्रांसपैरेंसी और कांटीन्यूटी

आगामी गाइडलाइंस से यह उम्मीद की जा रही है कि बैंक EMI और होम लोन (Loan Tenure) का कैलकुलेशन कैसे करते हैं, इसमें हाई लेवल की ट्रांसपैरेंसी और स्थिरता अनिवार्य की जा सकती है. बैंकों को उन फैक्टर्स को स्पष्ट रूप से बताना पड़ेगा कि जो उनके फैसले लेने की प्रॉसेस को प्रभावित करते हैं और बॉरोअर्स (Borrowers) को इस बात की बेहतर समझ प्रदान करते हैं कि उनकी लोन शर्तें कैसे तय की जाती हैं.

बॉरोअर की फाइनेंशियल कैपेसिटी का सही मूल्यांकन

RBI की गाइडलाइंस बैंकों को बॉरोअर्स की फाइनेंशियल कैपेसिटी का सही मूल्यांकन करने की आवश्यकता पर जोर दे सकती हैं. इस मूल्यांकन में बॉरोअर्स की इनकम, एक्सपेंस, क्रेडिट हिस्ट्री और जरूरी फाइनेंशियल सिग्नल्स का कांप्रीहेंसिव एनलिसिस शामिल हो सकता है.

ये भी पढ़ें–  बदमाशों ने 2 बम फेंके, फायरिंग की… फिर यूपी पुलिस ने कर दिया एनकाउंटर! 5 क्रिमिनल अरेस्ट

मार्केट कंडीशंस और इंटरेस्ट रेट्स

नई गाइडलाइंस के मुताबिक, बैंकों को लोन की शर्तें तय करते समय करेंट मार्केट कंडीशंस और इंटरेस्ट रेट्स पर भी विचार करना पड़ सकता है. इससे उन स्थितियों को रोकने में मदद मिल सकती है, जहां इकोनॉमिक कंडीशन में अचानक बदलाव के कारण बॉरोअर्स (Borrowers) को EMI में बदलाव का सामना करना पड़ता है.

फ्लेक्जिबिलिटी और कस्टमाइजेशन

स्थिरता को बढ़ावा देते हुए, RBI के गाइडलाइन बॉरोअर्स (Borrowers) को कुछ हद तक फ्लेक्जिबल और कस्टमाइजेशन प्रदान करने के महत्व को भी पहचान सकते हैं. बैंकों को EMI और टेन्योर ऑप्शंस की एक रेंज की पेशकश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे बॉरोअर्स (Borrowers) को उनकी पर्सनल प्रायरिटीज और फाइनेंशियल कैपेसिटीज के अनुरूप शर्तें चुनने की अनुमति मिल सकती है.

ये भी पढ़ें–  Gadar 2 Review: 22 साल बाद क्या पर्दे पर फिर से मेचगा गदर, जानें कैसा है पब्लिक रिएक्शन

पीरियाडिक रीव्यू और एडजस्टमेंट

गाइडलाइन में यह सिफारिश की जा सकती है कि बैंक समय-समय पर बॉरोअर्स (Borrowers) की फाइनेंशियल कंडीशंस या मार्केट कंडीशंस में बदलाव के जवाब में लोन शर्तों की रीव्यू और एडजस्टमेंट करें.

Source :
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय

To Top