Air Pollution in India: दुनिया के सभी देशों में से, भारत को वायु प्रदूषण से सबसे अधिक स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि भारत के नागरिक हवा में बड़ी संख्या में मौजूद प्रदूषकों से प्रभावित होते हैं. रिपोर्ट जो मुख्य रूप से सैटेलाइट PM2.5 डेटा पर आधारित है, उसके मुताबिक 2013 के बाद से, दुनिया के प्रदूषण में 59.1% वृद्धि भारत से हुई है.
नई दिल्ली: चीन अपने यहां वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने में सक्षम हुआ है, जबकि इस मामले में भारत लगातार पीछे है, जिससे औसत भारतीय नागरिक की जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) लगभग 5.3 वर्ष कम हो रही है. इसकी तुलना में, एक औसत चीनी नागरिक की जीवन प्रत्याशा में सुधार हुआ है. वर्ष 2013 में एक आम चीनी नागरिक की जीवन प्रत्याशा सामान्य से 4.7 साल कम थी, जे घटकर अब 2.5 हो गई है. यानी चीन में लाइफ एक्सपेक्टेंसी में 2.2 साल का सुधार हुआ है.
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यह वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए चीन द्वारा लागू प्रभावी नीतियों के कारण संभव हुआ है. 2021 तक के आंकड़ों के एक नए विश्लेषण से इस बारे में पता चला है. शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (EPIC) की मंगलवार को जारी वार्षिक वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के प्रदूषण में भारी गिरावट के बिना, वैश्विक औसत प्रदूषण 2013 (शोधकर्ताओं द्वारा चयनित आधार वर्ष) से 2021 तक थोड़ा बढ़ गया होता.
प्रदूषण के कारण भारत में नागरिकों को गंभीर स्वास्थ्य जोखिम
दुनिया के सभी देशों में से, भारत को वायु प्रदूषण से सबसे अधिक स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि भारत के नागरिक हवा में बड़ी संख्या में मौजूद प्रदूषकों से प्रभावित होते हैं. रिपोर्ट जो मुख्य रूप से सैटेलाइट PM2.5 डेटा पर आधारित है, उसके मुताबिक 2013 के बाद से, दुनिया के प्रदूषण में 59.1% वृद्धि भारत से हुई है. 2021 के PM2.5 डेटा के अनुसार, भारत में प्रदूषण 2020 में 56.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) से बढ़कर 2021 में 58.7µg/m3 हो गया है- जो WHO के दिशा निर्देश 5µg/m3 से 10 गुना अधिक है.
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भारत में सबसे प्रदूषित क्षेत्र उत्तरी मैदान या सिंधु-गंगा के मैदान
भारत में सबसे प्रदूषित क्षेत्र उत्तरी मैदान या सिंधु-गंगा के मैदान हैं, जहां देश की 38.9% आबादी रहती है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन में प्रदूषण के स्तर में गिरावट 2013 से धीरे-धीरे शुरू हुई. चीन में अकेले 2013 से 2021 के बीच प्रदूषण का स्तर 42.3% और 2020 से 2021 के बीच 5.3% गिर गया. जबकि दुनिया में सबसे प्रदूषित मेगासिटी दिल्ली में 2021 में वार्षिक औसत PM2.5 प्रदूषण 126.5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जो डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देश से 25 गुना से अधिक है. बीजिंग में वार्षिक औसत PM2.5 प्रदूषण 37.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया.
चीन के 3 बड़े शहरों में प्रदूषण में भारी कमी आई, लेकिन कैसे?
बीजिंग प्रांत के बड़े हिस्से में प्रदूषण में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई, जो केवल 8 वर्षों में 56.2% कम हो गई. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चीन में प्रदूषण में भारी गिरावट के बिना, वैश्विक औसत प्रदूषण 2013 से 2021 तक थोड़ा बढ़ गया होता. इन वायु गुणवत्ता सुधारों के कारण, औसत चीनी नागरिक 2.2 साल अधिक जीने की उम्मीद कर सकते हैं.’ रिपोर्ट में कहा गया है कि सख्त सार्वजनिक नीतियों के कारण चीन को प्रदूषण कम करने में इतनी सफलता मिली है. अपनी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता कार्य योजना में निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, चीन की सरकार ने बीजिंग, शंघाई और ग्वांग्झू जैसे बड़े शहरों में सड़क पर कारों की संख्या को प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया.
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रिपोर्ट के मुताबिक चीन द्वारा प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए उठाए गए अन्य कदमों में औद्योगिक क्षेत्रों में लोहा और इस्पात बनाने की क्षमता कम की गई. बीजिंग-तियानजिन-हेबै, पर्ल नदी डेल्टा और यांग्त्जी नदी डेल्टा क्षेत्रों में नए कोयला संयंत्रों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और मौजूदा संयंत्रों को अपने उत्सर्जन को कम करने या प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करने के लिए बाध्य किया गया. भारत ने भी 2019 में प्रदूषण के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और 2024 तक 2017 की तुलना में PM2.5 प्रदूषण के स्तर को 20 से 30% तक कम करने के लक्ष्य के साथ अपना नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम शुरू किया.
भारत ने भी प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई के लिए कमर कसी है
भारत ने 2022 में अपने एनसीएपी लक्ष्य को नया रूप दिया, जिसका लक्ष्य 2026 तक 131 शहरों (वे शहर जो 5 वर्षों तक वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर सके) में PM2.5 प्रदूषण के स्तर में 40% की कमी हासिल करना है. रिपोर्ट के मुताबिक 131 शहरों के लिए इस तरह की कमी हासिल करने और बनाए रखने से भारत की राष्ट्रीय औसत जीवन प्रत्याशा 7.9 महीने और दिल्ली के निवासियों के लिए 4.4 साल बढ़ जाएगी. AQLI के नवीनतम 2021 डेटा से पता चलता है कि WHO दिशानिर्देश को पूरा करने के लिए वैश्विक PM2.5 वायु प्रदूषण को स्थायी रूप से कम करने से वैश्विक स्तर पर औसत मानव जीवन प्रत्याशा में 2.3 वर्ष का इजाफा होगा.
रिपोर्ट में मिल्टन फ्रीडमैन के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और ईपीआईसी के निदेशक माइकल ग्रीनस्टोन और ईपीआईसी में वायु गुणवत्ता कार्यक्रम के निदेशक क्रिस्टा हसनकोफ ने लिखा है, ‘यह डेटा दर्शाता है कि सूक्ष्म कण वायु प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा बाहरी खतरा बना हुआ है. फिर भी, पूरे इतिहास में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, जापान और, हाल ही में, चीन जैसे देश मजबूत नीतियों के बाद परिवर्तन के लिए लगातार सार्वजनिक आह्वान के कारण वायु प्रदूषण को काफी हद तक कम करने में सक्षम रहे हैं. उन कार्रवाइयों की नींव में सामान्य तत्व थे: राजनीतिक इच्छाशक्ति, मानवीय और वित्तीय संसाधन, जिन्होंने एक-दूसरे को मजबूत किया.’