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प्रॉपर्टी नॉलेज : सेल डीड और लीज डीड में क्‍या है फर्क? मकान-प्‍लाट की कौन सी डीड कराना फायदे का सौदा

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Property Knowledge- प्रॉपर्टी के मालिकाना हक का हस्‍तांतरण करने के कई तरीके देश में प्रचलित है. हालांकि, सेल डीड को रजिस्‍टर्ड कराकर संपत्ति बेचने या खरीदने को ही सबसे अच्‍छा रास्‍ता माना जाता है.

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नई दिल्ली. प्रॉपर्टी का हस्‍तांतरण कई तरीके से हो सकता है. किसी घर, मकान, दुकान या प्‍लॉट को आप सेल डीड, लीज डीड, गिफ्ट डीड या फिर पॉवर अटार्नी के द्वारा खरीद सकते हैं. अगर आप कोई जमीन सेल डीड की जमीन खरीदते हैं तो आप उसके मालिक आने वाले पूर्ण समय के लिए बन जाते हैं. वहीं, अगर लीज डीड के माध्‍यम से कोई संपत्ति लेते हैं तो आपको एक निर्धारित समय के लिए ही मालिकाना हक मिलता है. जैसे 10 साल या 99 साल.

अगर हम सरल शब्‍दों में कहे तो सेल डीडी वह डॉक्‍यूमेंट है जिसके द्वारा किसी संपत्ति का मालिकाना हक विक्रेता से क्रेता के पास चला जाता है. सेल डीड स्टांप पेपर पर लिखी जाती है. इसमें मालिकाना हक पूरी तरह ट्रांसफर होता है. साथ ही स्थानीय उप-पंजीयक कार्यालय में रजिस्ट्रेशन इसका रजिस्‍ट्रेशन भी होता है. सेल डीड के रजिस्‍ट्रेशन के बाद प्रॉपर्टी का दाखिल खारिज भी होता है.

लीज डीड

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प्रॉपर्टी खरीदने का एक तरीका लीज डीड भी. इसमें प्रॉपर्टी कुछ वर्षों से लेकर 99 साल तक के लिए लीज ली जाती है. इस तरह हुए प्रॉपर्टी हस्‍तांतरण में प्रॉपर्टी के सभी अधिकार को क्रेता को मिल जाते हैं, लेकिन वे मिलते एक निर्धारित समय के लिए ही हैं. पुराने समय में लीज डीड का प्रचलन बहुत ज्‍यादा था. कई बार सरकारें लीज वाली प्रॉपर्टी को सेल डीड वाली प्रॉपर्टी बनाने के लिए ऑफर निकालती हैं. इसमें प्रति वर्ग फुट या फिर प्रति यार्ड के हिसाब से शुल्क देकर प्रॉपर्टी की रजिस्‍ट्री कराई जाने का प्रावधान होता है.

सेल डीड कराएं या लीज डीड
किसी भी तरह की प्रॉपर्टी खरीदने पर उसके मालिकाना हक को विक्रेता से क्रेता के पक्ष में ट्रांसफर करवाने का सर्वोत्‍म तरीका सेल डीड ही है. क्रेता और विक्रेता मिलकर तहसील में जमीन खरीदने और बेचने के लिए सेल डीड तैयार करवाते हैं. यह एक तरह से दोनों पार्टियों (क्रेता-विक्रेता) द्वारा किये गए समझौते का कानूनी विलेख होता है. जो संपत्ति के सौदे को दर्शाता है. इसमें क्रेता-विक्रेता की समस्त जानकारी, संबंधित जमीन, नक्शा, गवाह, स्टांप आदि होते हैं. इसके जरिए ही विक्रेता क्रेता को जमीन का अंतिम कब्जा देता है.

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सेल डीड जब रजिस्‍टर्ड हो जाती है तो बिक्री समझौता पूरा हो जाता है. सेल डीड को पंजीकृत कराना बहुत जरुरी है. जब तक सेल डीड पंजीकृत नहीं होती है, तब तक खरीदार कानूनन प्रॉपर्टी का सही मालिक नहीं बन सकता है. सेल डीड पंजीकृत होते और दाखिल-खारिज होते ही खरीदार संपत्ति का सदा के लिए स्‍वामी बन जाता है. वहीं, लीज डीड में कराकर कोई भी व्‍यक्ति किसी संपत्ति का सदा के लिए मालिक नहीं बन पाता. उसे केवल निर्धारित समय के लिए ही उस संपत्ति के इस्‍तेमाल का हक मिलता है.

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