दक्षिण रेलवे के जनरल मैनेजर के निर्देश में 4 ट्रेनों की जोड़ियों में नई प्रणाली लागू करने की बात कही गई है. यह बदलाव कुछ प्रीमियम ट्रेनों में किया जा रहा है. खबरों के अनुसार, चालक इससे खुश नहीं हैं.
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नई दिल्ली. दक्षिण रेलवे ने कुछ प्रीमियम ट्रेनों में क्रू को लेकर ऐतिहासिक बदलाव की तैयारी कर ली है. अब ट्रेन का चालक या सह-चालक ट्रेन को शुरू से अंत तक लेकर जाएगा. इन्हें बीच में नहीं बदला जाएगा. इससे एक डर यह पैदा हो गया कि थके-हारे चालक ट्रेनों को ठीक से नहीं चला पाएंगे. उन्हें बीच में कुछ खाने-पीने या टॉयलेट वगैरह जाने का भी समय नहीं मिलेगा. हालांकि, जिन ट्रेनों में इस सिस्टम को लागू करने की तैयारी चल रही है उनका सफर 8-10 घंटे के अंदर का है.
यह प्रणाली वंदे भारत, तेजस और शताब्दी एक्सप्रेस में लागू की जाती है. खबरों के अनुसार, संबंधित जोन के जनरल मैनेजर की ओर से जारी निर्देश में ट्रेन संख्या 20665/20666, 20643/20644, 22671/22672, 12243/12244 में इसे लागू करने का प्रस्ताव रखा गया है.
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इससे पहले क्या था सिस्टम
अभी तक का सिस्टम यह है कि एक तय समय के बाद लोको पायलट को बदल दिया जाता था. रेलवे के सूत्रों के अनुसार, यह बदलाव दूरी के हिसाब से होता है. फिलहाल 400 से 450 किलोमीटर के बाद लोको पायलट को बदल दिया जाता है. लोको पायलट का कहना है कि इससे उनके ऊपर मानसिक दबाव बढ़ेगा. एक रिपोर्ट में लोको पायलट के बयान के हवाले से लिखा गया है, “ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सेक्शन में हर किलोमीटर पर 1 सिग्नल होता है. चेन्नई-विल्लुपुरम सेक्शन पर 170 से अधिक सिग्नल हैं. 110 मिनट में वंदे भारत के क्रू को 170 सिग्नल क्रॉस करने होते हैं. हर 38 सैकेंड में 1 सिग्नल पार करना होता है. जैसे-जैसे स्पीड बढ़ती है, क्रू पर मानसिक दबाव भी बढ़ता जाता है.”
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सुरक्षा को लेकर चिंता
लोको पायलट ने कहा कि काम के घंटों को इंसानी कार्यक्षमता और सहनशक्ति के हिसाब से तैयार किया जाता है और क्रू के काम में थोड़ी सी चूक दुर्घटना करा सकती है. उन्होंने कहा कि काम के पुराने तरीके में बदलाव इस काम की गंभीरता को ध्यान में रखे बिना नहीं किया जाना चाहिए. उनका कहना है कि काम के ज्यादा घंट केवल थकान बढ़ाएंगे और इससे इंसानी गलतियों की आशंका भी बढ़ती जाएगी.