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दिल्ली की सड़कों पर फिर क्यों उतर रहे किसान, पिछले आंदोलन से कैसे है अलग, अब क्या हैं मांगें?

Kisan Andolan: देश की राजधानी दिल्ली की दहलीज पर एक बार फिर अन्नदाता दस्तक दे चुके हैं. पड़ोसी राज्यों के किसान एक बार फिर राजधानी की सड़कों पर उतर आए हैं.

नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर अन्नदाता दस्तक देने को तैयार हैं. दिल्ली की दहलीज पर अपना विशाल विरोध प्रदर्शन खत्म करने के करीब दो साल से कुछ अधिक समय बाद हजारों किसान एक बार फिर दिल्ली कूच करने को तैयार हैं. ‘दिल्ली चलो’ मार्च रोकने के लिए चंडीगढ़ में सोमवार रात किसान नेताओं की केंद्रीय मंत्रियों के साथ पांच घंटे से अधिक समय तक बैठक हुई, जो बेनतीजा रही. अब आज यानी मंगलवार को किसान मंगलवार से ‘दिल्ली मार्च’ शुरू करेंगे.

इस बार का किसान आंदोलन पिछली बार के आंदोलन से काफी अलग है. साल 2020-21 के आंदोलन की तुलना में इस बार किसानों की मांगें और नेतृत्व दोनों अलग हैं. पिछली बार का किसान आंदोलन कृषि कानूनों के खिलाफ था, जिसके दौरान किसान केंद्र सरकार को अपने कृषि सुधार एजेंडे को वापस लेने के लिए मजबूर करने के अपने मुख्य लक्ष्य में सफल रहे थे.

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इस बार क्या है किसानों की मुख्य मांग
पिछली बार जहां कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन था, तो इस बार किसान फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाले कानून को बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं. किसान चाहते हैं कि सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दी जाए. किसानों के 12-सूत्रीय एजेंडे में मुख्य मांग सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए एक कानून बनाना और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसल की कीमतों का निर्धारण करना है.

सबकुछ पंजाब से हो रहा
इस बार किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के बैनर तले 250 से अधिक किसान संघ और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक), जो अन्य 150 यूनियनों का एक मंच है, ने आह्वान किया है. यह विरोध प्रदर्शन पंजाब से कॉर्डिनेट किया जा रहा है. दोनों किसान मोर्चों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो साल पहले किसानों से किए गए वादों की याद दिलाने के लिए दिसंबर 2023 के अंत में ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया था. किसानों का आज यानी मंगलवार को दिल्ली मार्च करने का कार्यक्रम है. ट्रैक्टर-ट्रॉलियां आगे बढ़ रही हैं और उन्हें रोकने के लिए बैरिकेड्स, कीलें और भारी पुलिस उपकरण तैनात किए गए हैं.

इस बार किसके बैनर तले आंदोलन?
इस बार किसान आंदोलन का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) कर रहा है. संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) एक गुट है, जो जुलाई 2022 में मूल संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से अलग हो गया था. इसके समन्वयक पंजाब स्थित भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) सिधुपुर फार्म यूनियन के अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल हैं, जो मुख्य संगठन के नेतृत्व के साथ मतभेद के बाद एसकेएम से अलग हो गए. मौजूदा विरोध प्रदर्शन में दूसरा संगठन केएमएम का गठन पंजाब स्थित यूनियन किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) के संयोजक सरवन सिंह पंढेर द्वारा किया गया था. केएमएससी 2020-21 में कृषि कानूनों के खिलाफ मुख्य विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं हुआ और इसके बजाय कुंडली में दिल्ली सीमा पर एक अलग मंच स्थापित किया था.

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इस बार के आंदोलन में नहीं है संयुक्त किसान मोर्चा
पिछली बार का आंदोलन समाप्त होने के बाद केएमएससी यानी किसान मजदूर संघर्ष समिति ने अपना आधार बढ़ाना शुरू कर दिया और जनवरी के अंत में केएमएम के गठन की घोषणा की, जिसमें पूरे भारत से 100 से अधिक यूनियनें शामिल थीं. एसकेएम यानी संयुक्त किसान मोर्चा भारत के 500 से अधिक किसान संघों का प्रमुख निकाय है, जिसने कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-21 आंदोलन का नेतृत्व किया था, मगर इस बार के आंदोलन में वह शामिल नहीं है. एसकेएम ने 16 फरवरी को ग्रामीण भारत बंद का अपना आह्वान किया है. जबकि एसकेएम दिल्ली चलो आंदोलन का हिस्सा नहीं है. इस किसान मोर्चा ने सोमवार शाम एक बयान जारी कर कहा कि भाग लेने वाले किसानों का कोई दमन नहीं होना चाहिए. बीकेयू उगराहां ने भी एक बयान जारी कर मार्च को रोकने के हरियाणा सरकार के कदमों की आलोचना की.

इस बार और क्या-क्या हैं मांगें?-
-किसानों और मजदूरों की पूर्ण कर्ज माफी.
-भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का कार्यान्वयन, जिसमें अधिग्रहण से पहले किसानों से लिखित सहमति और कलेक्टर दर से चार गुना मुआवजा देने का प्रावधान है.-
-अक्टूबर 2021 में लखीमपुर खीरी हत्याकांड के अपराधियों को सजा.
-भारत को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से हट जाना चाहिए और सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगा देनी चाहिए.
-किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन.
-दिल्ली विरोध प्रदर्शन के दौरान मरने वाले किसानों के लिए मुआवजा, जिसमें परिवार के एक सदस्य के लिए नौकरी शामिल है.
-बिजली संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए.
-मनरेगा के तहत प्रति वर्ष 200 (100 के बजाय) दिनों का रोजगार, 700 रुपये की दैनिक मजदूरी और योजना को खेती से जोड़ा जाना चाहिए.
-नकली बीज, कीटनाशक, उर्वरक बनाने वाली कंपनियों पर सख्त दंड और जुर्माना; बीज की गुणवत्ता में सुधार.
-मिर्च और हल्दी जैसे मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन.

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कल रात हुई 5 घंटे की बैठक
बता दें कि ‘दिल्ली चलो’ मार्च रोकने के लिए सोमवार रात किसान नेताओं की केंद्रीय मंत्रियों के साथ पांच घंटे से अधिक समय तक चली बैठक बेनतीजा रही. किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि हमें नहीं लगता कि सरकार हमारी किसी भी मांग पर गंभीर है. हमें नहीं लगता कि वे हमारी मांगों को पूरा करना चाहते हैं… हम आज यानी मंगलवार सुबह 10 बजे दिल्ली की ओर मार्च करेंगे. वहीं, खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल के साथ बैठक में शामिल हुए केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि अधिकांश मुद्दों पर सहमति बन गई है और सरकार ने प्रस्ताव रखा है कि शेष मुद्दों को एक समिति के गठन के माध्यम से सुलझाया जाए.

बैठक में क्या-क्या हुआ
सूत्रों ने बताया कि ऐसा समझा जाता है कि बैठक में केंद्र सरकार ने 2020-21 के आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने पर सहमति जताई है. हालांकि, सूत्रों ने कहा कि किसान नेता फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाले कानून को बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं. खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल और कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने सेक्टर 26 में महात्मा गांधी राज्य लोक प्रशासन संस्थान में किसान नेताओं के साथ दूसरे दौर की बैठक की. संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल और किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर समेत अन्य लोग शाम करीब साढ़े छह बजे शुरू हुई बैठक में शामिल थे. समझा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्रियों ने पिछले आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने पर भी सहमति जताई है.

दिल्ली में आंदोलन रोकने को क्या तैयारी?
इससे पहले, दिल्ली पुलिस ने किसानों के मार्च के कारण व्यापक पैमाने पर तनाव और ‘‘सामाजिक अशांति’’ पैदा होने की आशंका के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में एक महीने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी है. वाहनों को शहर में प्रवेश करने से रोकने के लिए दिल्ली की सीमाओं पर कंक्रीट के अवरोधक और सड़क पर बिछाए जाने वाले लोहे के नुकीले अवरोधक लगाकर किलेबंदी कर दी गयी है. इन उपायों से सोमवार को सुबह दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों में यातायात की आवाजाही पर असर पड़ा जिससे यात्रियों को असुविधा हुई.

हरियामा सीमा पर कैसी व्यवस्था
हरियाणा के प्राधिकारियों ने 13 फरवरी को किसानों के प्रस्तावित ‘दिल्ली चलो’ मार्च को रोकने के लिए अंबाला, जींद, फतेहाबाद और कुरुक्षेत्र में कई स्थानों पर पंजाब के साथ लगती राज्य की सीमा पर कंक्रीट के अवरोधक और लोहे की कील और कंटीले तार लगाकर किलेबंदी कर दी है. हरियाणा सरकार ने भी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत 15 जिलों में प्रतिबंध लगा दिए हैं। इन जिलों में पांच या अधिक लोगों के एकत्र होने पर रोक लगा दी गई है और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन करने या ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ मार्च निकालने पर प्रतिबंध है. प्रस्तावित मार्च के मद्देनजर हरियाणा पुलिस को अलर्ट पर रखते हुए राज्य प्राधिकारियों ने सड़कों पर कंक्रीट के अवरोधक एवं कंटीले तार लगाए गए हैं और दंगा-रोधी वाहन तैनात किए हैं. पुलिस ने जींद, फतेहाबाद, कुरूक्षेत्र और सिरसा जिलों में पंजाब के साथ लगती हरियाणा की सीमा पर भी व्यापक इंतजाम किए हैं. अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद, हिसार, फतेहाबाद और सिरसा में इंटरनेट सेवाएं और बड़ी संख्या में एसएमएस करने की सुविधा 13 फरवरी तक निलंबित कर दी गई है.

दिल्ली में पुलिस सख्त
दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा की ओर से सोमवार को जारी आदेश में किसी भी प्रकार की रैली या जुलूस निकालने तथा सड़कों एवं मार्गों को अवरुद्ध करने पर रोक लगा दी है. दिल्ली पुलिस के आदेश के तहत ट्रैक्टर रैलियों के राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं को पार करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने के लिए हरियाणा की सीमा से लगती ग्रामीण सड़कों को भी सील कर दिया है. दिल्ली-रोहतक और दिल्ली-बहादुरगढ़ मार्गों पर अर्द्धसैनिक बलों की भारी तैनाती की गई है. दिल्ली में जारी एक परामर्श के अनुसार, सोमवार से सिंघू सीमा पर वाणिज्यिक वाहनों के लिए यातायात पाबंदियां लागू की गयी हैं. मंगलवार से सभी प्रकार के वाहनों पर पाबंदियां लागू होंगी. विरोध-प्रदर्शन के मद्देनजर दिल्ली पुलिस ने 5,000 से अधिक सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया है जबकि सड़कों को अवरुद्ध करने के लिए क्रेन और अन्य भारी वाहनों को तैनात किया गया है. अधिकारियों ने बताया कि किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश करने से रोकने के लिए कई सुरक्षा अवरोधक लगाए गए हैं. सड़कों पर कंटीले अवरोधक बिछाए गए हैं ताकि अगर प्रदर्शनकारी वाहनों पर सवार होकर शहर में प्रवेश करने की कोशिश करें तो उनके वाहनों के टायर पंक्चर हो जाएं.

अदालत भी पहुंचा मामला
वहीं, किसान संगठनों के दिल्ली मार्च के मद्देनजर सीमाएं सील करने और मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाने के हरियाणा सरकार के फैसले के खिलाफ सोमवार को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है. याचिकाकर्ता उदय प्रताप सिंह ने अदालत से किसानों के विरोध प्रदर्शन के खिलाफ हरियाणा और पंजाब की सरकारों और केंद्र की सभी कार्रवाइयों पर रोक लगाने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इन कदमों से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है और ये “असंवैधानिक” हैं. इस मामले पर आज यानी मंगलवार को सुनवाई होने की उम्मीद है.

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