बाजार में लगातार आ रहे आईपीओ को देखकर सेबी के कान खड़े हो गए हैं. पता चला है कि कुछ कंपनियां आईपीओ के नियमों में हेराफेरी कर रही हैं, ताकि बाजार से जुटाए पैसे का कहीं और इस्तेमाल किया जा सके. सेबी ने अब सख्त एक्शन लेना शुरू कर दिया है.
शेयर मार्केट कभी तेजी से झूमने लगता है तो कभी गिरावट के गोते खाने लगता है. बाजार में तमाम अनिश्चताओं के बाद भी आईपीओ लाने वाली कंपनियां की तादाद बढ़ती जा रही है. बाजार से कमाई का कोई भी मौका गंवाने के मूड़ में नहीं हैं ये कंपनियां. इसलिए आए दिन बाजार में कोई ना कोई आईपीओ लॉन्च हो रहा है. उधर, बाजार में नए-नए आईपीओ आने के चलते बाजार नियामक सेबी हेडमास्टर की भूमिका में आ गया है. सेबी ने आईपीओ लाने के नियमों में कुछ सख्ती की है. कंपनियों के कागजों की बारीक निगरानी की जा रही है. इसका नतीजा है कि सेबी ने पिछले कुछ समय में छह कंपनियों के आईपीओ आवेदन को रद्द कर दिया है.
ये भी पढ़ें- Apeejay Surrendra Park: लिस्टिंग पर 21% रिटर्न, अब क्या हो स्ट्रैटेजी? स्टॉक बेचें या बने रहें
जानकार बताते हैं कि सेबी बाजार पर सख्त निगाह रखे हुए है, खासकर नए आईपीओ लाने वाली कंपनियों पर. जैसे एग्जाम के समय स्टूडेंट के एग्जाम पेपर की बड़ी बारीकाई से जांच की जाती है, उसी तरह सेबी भी आईपीओ आवेदनों की गहनता से जांच कर रही है. कागजों में कुछ भी खामी पाए जाने पर एप्लीकेशन को फौरन रिजेक्ट कर दिया जाता है. सेबी का कहना है कि बाजार से पैसा जुटाने के चक्कर में कंपनियां लोगों को गुमराह कर रही हैं.
जानकारी के मुताबिक पिछले साल 2023 में 57 आईपीओ बाजार में आए थे, जबकि उससे एक साल पहले 2022 में 40 आईपीओ लॉन्च हुए. और साल भी एक-डेढ़ महीने के भीतर 8 आईपीओ आ चुके हैं और लगभग 40 आईपीओ लाइन में हैं.
ये भी पढ़ें- Vibhor Tubes IPO: सब्सक्रिप्शन के लिए खुला विभोर ट्यूब्स का IPO, जानें- क्या है GMP और अन्य डिटेल्स?
सेबी ने अपनी जांच में पाया कि कंपनियां बिना किसी ठोस कारण के आईपीओ ला रही हैं. आईपीओ लाने के बारे में कंपनियों से पूछताछ भी की गई तो कोई ठोस कारण नहीं मिला. सेबी का कहना है कि किसी भी कंपनी के पास आईपीओ लाने का ठोस कारण होना चाहिए. सेबी ने बताया कि अधिकांश आईपीओ केवल कंपनियों के कर्ज का भुगतान करने, पूंजीगत खर्चों और कॉरोपोरेट खर्चों को पूरा करने के लिए लाए जा रहे हैं.
सेबी के नियम कहते हैं कि पूंजीगत खर्चों, कर्ज चुकाने और कॉरपोरेट खर्चों के लिए आईपीओ का पैसा लगाने के लिए अलग-अलग नियम हैं. कंपनियां इन नियमों में हेराफेरी कर रही हैं. सेबी ने जब खर्चों को पाटने का पूरा हिसाब मांगा तो कुछ कंपनियां खर्चों के हिसाब का सही जवाब नहीं दे पाईं.
ये भी पढ़ें- रेलवे स्टॉक्स गिरावट के बाद बने बुलेट ट्रेन, शेयरों में आया बंपर उछाल
सेबी के सूत्र बताते हैं कि कुछ कंपनियों का कहना है कि वे आईपीओ से मिले पैसे का इस्तेमाल कंपनी का कर्ज उतारने के लिए करेंगी. कर्ज चुकाने के लिए पैसा का इस्तेमाल करने पर लॉक-इन पीरियड 18 महीने का होता है. जबकि पूंजीगत खर्चों के लिए अलग समयावधि होती है. कंपनियां खेल इसी में करती हैं कि वे कहती तो हैं कि उन्हें कर्ज चुकाना है. लेकिन उस पैसे का इस्तेमाल पूंजीगत खर्चों को निपटाने के लिए होता है.
सेबी को जब यह खेल पता चला तो वह कंपनियों से कर्ज चुकाने का पूरा विवरण मांग रही है. सेबी के सख्ताई से कई आईपीओ एप्लीकेशन रद्द की जा चुकी हैं.