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भगवत गीता के इन श्लोकों से दूर करें बोर्ड एग्जाम के रिजल्ट का डर, मन में आएंगे पॉजिटिव विचार

Bhagavad Gita Slokas For Students: भगवत गीता दुनिया में सबसे अधिक पढ़े जाने वाले आध्यात्मिक और दार्शनिक ग्रंथों में से है. श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं. उनके मुख से निकली गीता में ऐसे कई श्लोक हैं, जो जीवन दर्शन कराते हैं. अगर आपका बच्चा भी बोर्ड परीक्षा के नतीजों से डरा हुआ है, तो भगवत गीता के इन श्लोकों से मोटिवेट करें. 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

श्लोक का अर्थ: 

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हमें अपने कर्म को पूरा करने पर ही अधिकार है, लेकिन उसके फलों पर नहीं, इसलिए कर्म को फल की प्राप्ति के उद्देश्य से मत करो.

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । 

तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥

श्लोक का अर्थ:

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जिसने अपनी बुद्धि को भगवान् के साथ युक्त कर दिया है, वह इस द्वन्द्वमय लोक में ही शुभ और अशुभ कर्म इन दोनों का त्याग कर देता है, इसलिए समत्व बुद्धिरूप योग के लिए प्रयत्न करें, क्योंकि यही कर्म का कौशल है. 

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् ।

तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाजोति न कामकामी ॥

श्लोक का अर्थ:

जिस प्रकार से समुद्र उसमें निरंतर मिलने वाली नदियों के जल के प्रवाह से विक्षुब्ध नहीं होता, उसी प्रकार से ज्ञानी अपने चारों ओर इन्द्रियों के विषयों के आवेग के पश्चात भी शांत रहता है, न कि उस मनुष्य की भांति जो कामनाओं को तुष्ट करने के प्रयास में लगा रहता है.

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् । 

कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै: ।।

श्लोक का अर्थ:

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निःसंदेह कोई भी मनुष्य क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता, क्योंकि सभी मनुष्य प्रकृति से उत्पन्न गुणों के जरिए असहाय रूप से कर्म करने के लिए बाध्य होते हैं. 

कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।

इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।।

श्लोक का अर्थ:

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शरीर से निष्क्रिय होकर कहीं भी नहीं पहुंचा जा सकता. जो बिना आसक्ति के मन से इंद्रियों को वश में करके अपने कर्म का फल भगवान को अर्पित करता है, वह किसी भी बंधन में नहीं फंसता है. 

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