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Old Pension Scheme: पुरानी पेंशन स्कीम से किसको राहत, किसको आफत, यहां समझिए

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पुरानी पेंशन व्यवस्था (Old Pension Scheme) में कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित पेंशन मिलती थी। अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव की सुगबुगाहट के बाद पुरानी पेंशन का सिस्टम फिर उछल गया है। पंजाब और झारखंड के दो राज्यों में पेंशन की पुरानी व्यवस्था फिर से शुरू की गई है। इस साल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पेंशन की पुरानी व्यवस्था (Old Pension Scheme) लागू होगी, जिसे विशेषज्ञों ने लुभावने कदम बताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि पेंशन सिस्टम जहां सरकार पर भारी बोझ डालती है, वहीं सरकार से विकास के संसाधनों को छीन लेती है। पुरानी पेंशन स्कीम (Old Pension Scheme) से किसको राहत है और किसको आफत है, आईए आपको बताते हैं।

1 जनवरी 2004 से एनपीएस स्कीम लागू

इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार 1 जनवरी 2004 के बाद सरकारी नौकरी शुरू करने वालों के लिए एनपीएस रिटायरमेंट स्कीम शुरू की गई है। इस समय दिल्ली और पॉडिंचेरी समेत 29 राज्यों में पेंशन स्कीम लागू है। पश्चिम बंगाल ने एनपीएस स्कीम को लागू करने से इनकार किया है। पश्चिम बंगाल में पुरानी पेंशन स्कीम लागू है। तमिलनाडु की अपनी स्कीम है। 4 गैर बीजेपी राज्यों, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब ने पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू की है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव से पहले कांग्रेस और आप ने चुनाव जीतने पर मतदाताओं को लुभाने के लिए पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने का वादा किया है। मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस ने मतदाताओं से पुरानी पेंशन व्यवस्था लाग करने का वादा किया है, हालांकि वहां चुनाव अभी एक साल बाद होने है। हरियाणा में भी पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने के लिए प्रदर्शन हो रहे हैं।

कर्मचारियों के लिए फायदेमंद

1. इस स्कीम में रिटायरमेंट के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है।

2.पुरानी पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है।

3. पुरानी पेंशन स्कीम में भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है।

3. इस स्कीम में 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है।

4. रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है।

5. पुरानी स्कीम में जनरल प्रोविडेंट फंड यानी GPF का प्रावधान है।

6. इसमें छह महीने बाद मिलने वाले DA का प्रावधान है।

सरकारी व्यवस्था के लिए ठीक नहीं

इसमें आखिरी सैलरी का 50 फीसदी रकम पेंशन के रूप में पेंशनरों को मिलती है। इसके अलावा कर्मचारी को डीए भी दिया जाता है। कर्मचारियों के योगदान की कोई जरूरत नहीं होती। मुद्रास्फीति के कारण बढ़ने वाले डीए और नए-नए पेंशन आयोग के गठन का लाभ पेंशनरों को मिलती है। इसमें कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद उचित वित्तीय सुरक्षा की गारंटी मिलती है। ओल्ड पेंशन स्कीम सरकारी व्यवस्था के लिए हानिकारक है। सैलरी की तरह पेंशन भी आम बजट से बाहर के फंड से दिया जाता है। मौजूदा आयकर दाताओं पर ही रिटायर्ड लोगों की पेंशन का बोझ पड़ रहा है। छोटे राज्यों, जैसे उत्तरपूर्वी राज्यों पर पेंशन का बोझ बढ़ता जा रहा है क्योंकि कुछ राज्यों राज्यों में बहुत से सरकारी लोग नौकरी में है। राज्यों की पेंशन से जुड़ी जिम्मेदारी भी काफी बढ़ गई है। एसबीआई के अध्ययन के अनुसार लंबे समय में पेंशन भोगियों में काफी तेज रफ्तार से बढ़ोतरी हुई है। 2022 में समाप्त हुई 12 साल की अवधि के लिए राज्यों की पेंशन संबंधी जिम्मेदारी और बोझ में सीएजीआर 34 फीसदी रहा था। इसी विश्लेषण से यह नतीजा निकलता है कि भविष्य की पेंशन संबंधी जिम्मेदारी निभाने में जीडीपी का करीब 13 फीसदी खर्च होगा।

एनपीएस सिस्टम क्या है

एनपीएस पारिभाषित योगदान स्कीम है, जिसे जनवरी 2004 में लागू किया गया। इसमें कर्मचारी का योगदान उसकी बेसिक सैलरी और डीए का 10 फीसदी कर्मचारियों को प्राप्त होता है। इतना ही योगदान राज्य सरकार भी देती है। 2019 में सरकार का योगदान इसमें 19 फीसदी कर दिया गया। 1 मई 2009 से एनपीएस स्कीम सभी के लिए लागू की गई। कर्मचारी अपनी कमाई की अवधि में रिटायरमेंट के लिए पैसे बचाते हैं। इसमें सरकार का योगदान लोगों में बचत की आदत को प्रोत्साहित करने के लिए टैक्स में छूट देने पर सीमित होता है। बजट पर पेंशन का कोई खास बोझ नहीं पड़ता है।

राज्यों की वित्तीय स्थिति के लिए सही नहीं पुरानी पेंशन स्कीम

सीएजी की एक डिवीजन लंबी अवधि के और अल्पकालिक प्रभावों का पता लगाने के लिए पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौटने से जुड़े विभिन्न पहलुओं को देख रहा है। अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि एनपीएस से पुरानी पेंशन योजना में वापस जाना राज्यों के वित्त के लिए विनाशकारी परिणाम ला सकता है।

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