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धर्म

4 फायदों के लिए मंगलवार को पढ़ें बजरंग बाण, तेहि के कारज शकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान

Bajrang Baan Benefits: मंगलवार हो या फिर शनिवार, ​पवनपुत्र वीर हनुमान जी की पूजा दोनों ही दिन होती है. हर मंगलवार और शनिवार को आप पूजा के समय बजरंग बाण का पाठ करें. जो प्रेमपूर्वक हनुमान जी का नाम भजता है, उसके कार्य सिद्ध होते हैं.

मंगलवार हो या फिर शनिवार, ​पवनपुत्र वीर हनुमान जी की पूजा दोनों ही दिन होती है. मंगलवार के दिन वीर बजरंगबली जी का जन्म हुआ था, इसलिए हर मंगलवार को हनुमान जी की विशेष पूजा-अर्चना होती है. हर मंगलवार और शनिवार को आप पूजा के समय बजरंग बाण का पाठ करें. पाठ से पूर्व हनुमान जी की विधिपूर्वक पूजा करें और उनको प्रिय भोग लगाएं. फिर पाठ प्रारंभ करें.

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तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव का कहना है कि बजरंग बाण में लोगों की समस्याओं का समाधान भी बताया गया है. पहले ही दोहे में लिखा है कि जो व्यक्ति विनयपूर्वक, प्रेम पूर्व​क हनुमान जी की प्रार्थना करता है, वीर बजरंगबली उसके कार्यों को सफल बना देते हैं. उसका कार्य उसके लिए शुभ होता है. यही भाव अंतिम दोहे में भी है, जिसमें कहा गया है कि जो प्रेमपूर्वक हनुमान जी का नाम भजता है, उसके कार्य सिद्ध होते हैं.

यदि आप धूप जलाकर बजरंग बाण का पाठ करते हैं तो आपको कोई रोग नहीं लगेगा. चैपाई में लिखा है कि धूप देय अरु जपै हमेशा, ताके तनु नहिं रहे कलेशा.

जो भी व्यक्ति मन से बजरंग बाण का पाठ करता है, उसके प्राणों की रक्षा स्वयं हनुमान जी करते हैं. वे उस पर कभी कोई संकट नहीं आने देते हैं. इसकी एक चौपाई है- पाठ करै बजरंग बाण की, हनुमत रक्षा करैं प्राण की.

बजरंग बाण का पाठ करने से व्यक्ति नकारात्मक प्रभावों से दूर रहता है. उस व्यक्ति पर नकारात्मक शक्तियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. बजरंग बाण में लिखा है कि यह बजरंग बाण जो जापै, तेहि ते भूत प्रेत सब कांपै.

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बजरंग बाण
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

चौपाई
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।
जनके काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।

जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर यमकातर तोरा।

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर मह भई।

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दुख करहु निपाता।

जय गिरिधर जय जय सुखसागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले।

गदा बज्र लै बैरिहि मारो। महारज प्रभु दास उबारो।
ओंकार हुंकार महाबीर धावो। वज्र गदा हनु बिलम्ब न लावो।

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।
सत्य होहु हरि शपथ पायके। राम दूत धरु मारु जायके।

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा।
पूजा जप त​प नेम अचारा। नहिं जानत हौं दा तुम्हारा।

वन उपवन मग ​गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।
पांय परौं कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।

जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता।
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रति पालक।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मारीमर।
इन्हें मारु तोहिं सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।

जनक सुता हरिदास कहावो। ताकी सपथ विलंब न लावो।
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुख नाशा।

चरण-शरण कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।
उठु-उठु चलु तोहिं राम दोहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई।

ओम चं चं चं चं चपल चलंता। ओम हनु हनु हनु हनु हनुमंता।
ओम हं हं हांक देत कपि चंचल। ओम सं सं सहमि पराने खल दल।

अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होत आनंद हमारो।
यहि बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहो फिर कौन उबारे।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करैं प्राण की।
यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब कांपै।

धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तनु नहिं रहे कलेशा।

दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज शकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

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