तेलंगाना और मेघालय समेत नौ राज्यों ने चुनिंदा अपराधों की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को दी गई आम सहमति वापस ले ली है.
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केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा को बताया कि दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम (डीएसपीई एक्ट) की धारा 6 के तहत किसी राज्य की सीमा के भीतर जांच के लिए सीबीआई को संबंधित राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी. सिंह ने बताया कि राज्यों ने कुछ खास तरह के अपराधों और कुछ विशेष श्रेणी के लोगों के खिलाफ जांच के लिए सीबीआई को एक आम सहमति दे रखी थी ताकि वह सीधे केस दर्ज कर जांच कर सके. हालांकि छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल, मेघालय, मिजोरम, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल ने सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले ली है.
गैर-भाजपा शासित राज्यों ने सीबीआई पर विपक्षी नेताओं को चुन-चुनकर निशाना बनाने का आरोप लगाया है.
आम सहमति वापस लेने से सीबीआई को उन मामलों की जांच में भी दिक्कत आ सकती है जिनका राष्ट्रीय महत्व है या अंतर-राज्यीय विस्तार है. यह देखना होगा कि सीबीआई इन चुनौतियों का किस प्रकार सामना करती है और प्रभावी ढंग से अपने कत्र्तव्य का निर्वहन करती है. नौ राज्यों के आम सहमति वापस लेने के बाद डीएसपीई एक्ट,1946 और सीबीआई के अधिकार क्षेत्र तथा अधिकारों की वृहद समीक्षा की आवश्यकता महसूस की जा रही है.
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इस साल मार्च में एक संसदीय समिति ने कई राज्यों द्वारा सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस लेने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि संघीय जांच एजेंसी को नियंत्रित करने वाले मौजूदा कानूनों की कई सीमाएं हैं. समिति ने सीबीआई के अधिकार और काम के लिए नए सिरे से कानून बनाने का सुझाव दिया है. उसने कहा, समिति महसूस करती है कि दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम की कई सीमाएं हैं और इसलिए, सिफारिश करती है कि एक नया कानून बनाने और सीबीआई की स्थिति, कार्यों और शक्तियों को परिभाषित करने की आवश्यकता है और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा उपायों को निर्धारित करने की भी आवश्यकता है.
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सुप्रीम कोर्ट के वकील रुद्र विक्रम सिंह ने कहा कि आम सहमति वापस लेने का मतलब है कि सीबीआई को हर मामले की जांच से पहले नए सिरे से आवेदन करना होगा और सहमति दिए जाने से पहले वह कार्य नहीं कर सकती है. उन्होंने कहा, सीबीआई आम सहमति वापस लेने से पहले उस राज्य में पंजीकृत मामलों की जांच जारी रख सकती है. कलकत्ता उच्च न्यायालय ने जुलाई 2022 में अवैध कोयला खनन और पशु तस्करी के मामले में यह फैसला सुनाया कि केंद्रीय एजेंसी को केंद्र सरकार के किसी कर्मचारी के खिलाफ जांच करने से किसी भी राज्य में नहीं रोका जा सकता है.
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि देश भर में भ्रष्टाचार के मामलों को एक ही नजर से देखा जाना चाहिए. केंद्र सरकार के कर्मचारियों को इस आधार पर जांच से छूट नहीं दी जा सकती कि वे उन राज्यों में कार्यरत हैं जिन्होंने आम सहमति वापस ले ली है. आम सहमति वापस लेने से सिर्फ वहीं मामले प्रभावित होंगे जो सिर्फ और सिर्फ राज्य सरकार के कर्मचारियों से जुड़े हैं.
हालांकि, इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है, जहां मामला अभी भी लंबित है. इसलिए, सीबीआई कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश का उपयोग करते हुए कुछ मामलों में तब तक जांच जारी रख सकती है जब तक कि सर्वोच्च न्यायालय आदेश को खारिज नहीं कर देता.
कानून विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्य गुरमीत नेहरा ने कहा कि सीबीआई सर्च वारंट जारी करने के लिए उस राज्य की स्थानीय अदालत से संपर्क कर सकती है और वह दिल्ली में मामला दर्ज कर जांच को आगे बढ़ा सकती है.