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ओडिशा ट्रेन हादसा: 51 घंटे, 2300 से अधिक स्टाफ… कैसे अपनी टीम संग घटनास्थल पर डटे रहे अश्विनी वैष्णव

Odisha Balasore Train Accident: ओडिशा के बालासोर में कोरोमंडल एक्सप्रेस दो जून को ‘लूप लाइन’ पर खड़ी एक मालगाड़ी से टकरा गई, जिससे कोरोमंडल एक्सप्रेस के अधिकतर डिब्बे पटरी से उतर गए. उसी समय वहां से गुजर रही तेज रफ्तार बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस के कुछ डिब्बे कोरोमंडल एक्सप्रेस से टकरा कर पटरी से उतर गए. दोनों यात्री ट्रेन में करीब 2500 यात्री सवार थे.

नई दिल्ली/बालासोर. ओडिशा के बालासोर में 2 जून की देर शाम जब घातक रेल दुर्घटना हुई, तब जनता को इसका अंदाजा नहीं था कि इसका असर कितना विनाशकारी होगा. इस मामले पर सबसे पहले जवाब देने वालों और भारतीय रेलवे के संबंधित विभाग के लिए चुनौती बिल्कुल सामने खड़ी थी. हादसे के कुछ घंटों के भीतर ही केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ग्राउंड जीरो पर पहुंच गए.

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दुर्घटना के तकनीकी कारणों को समझते हुए और निश्चित रूप से बचाव एवं राहत कार्यों की निगरानी के मद्देनजर उन्होंने दुर्घटना स्थल का दौरा किया, लेकिन ऐसा नहीं है कि यह बिना किसी योजना के हुआ था. एक वरिष्ठ अधिकारी ने एएनआई को बताया, ‘भयानक हादसा हो चुका है, अब अगली चीज क्या है जो हमें करने की जरूरत है और आगे की योजना क्या है? वास्तव में रेल मंत्री ने ठीक वैसा ही काम किया, जो करना था. इसमें कुछ अलग नहीं था.’

मानव संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल हो, यह तय करने के लिए निश्चित रूप से एक योजना थी, जिसमें अधिक से अधिक लोगों की जान बचाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था. इसके साथ ही घायलों को जल्द-से-जल्द चिकित्सा सहायता प्रदान करना सुनिश्चित किया गया था और सबसे अधिक ध्यान ट्रेन लाइन को सही करने पर केंद्रित किया गया, ताकि जितनी जल्दी हो सके वहां से ट्रेनों की आवाजाही फिर से शुरू हो.

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रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ सूत्र ने एएनआई को बताया, ‘घटनास्थल पर काम करने के लिए कम से कम 70 सदस्यों के साथ आठ टीमों का गठन किया गया था. फिर इनमें से प्रत्येक दोनों टीमों की निगरानी वरिष्ठ अनुभाग अभियंताओं (एसएसई) द्वारा की गई. इसके अलावा, इन इंजीनियरों की निगरानी की जिम्मेदारी एक डीआरएम और एक रेलवे जीएम को दी गई. आगे इनकी निगरानी भी रेलवे बोर्ड के एक सदस्य द्वारा की गई थी.’

रेल मंत्रालय के ये अधिकारी घटनास्थल पर ट्रेन की पटरी को ठीक करने और इसकी मरम्मत के काम में जुटे थे क्योंकि इसमें बहुत सारी टेक्निकल चीजें शामिल होती हैं. लेकिन सारा फोकस सिर्फ ट्रैक को सही करने पर ही नहीं था. दूसरा ध्यान यह सुनिश्चित करने पर था कि जिन लोगों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उन्हें भी किसी तरह की कोई समस्या न हो. इसी सिलसिले में रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को कटक के अस्पताल में रखा गया है, जबकि डीजी हेल्थ को भुवनेश्वर के अस्पताल में भेजा गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इलाज करा रहे यात्रियों को अधिकतम राहत मिले.

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रेल मंत्री की अगुवाई वाली टीम में काम करने वाले एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने ने एएनआई को बताया, ‘निर्देश हमारे लिए बहुत स्पष्ट थे कि न केवल घटनास्थल पर बचाव और राहत अभियान महत्वपूर्ण है, बल्कि अस्पताल में उन लोगों का आराम भी उतना ही जरूरी है. यही कारण है कि वरिष्ठ अधिकारियों को स्थिति की निगरानी के लिए भेजा गया था.’

दिल्ली में स्थित रेल मंत्रालय के रेल मंत्री मुख्यालय में हादसे को लेकर बना वॉर रूम चौबीसों घंटे घटनाक्रम पर लगातार नजर रख रहा था. एक सूत्र ने कहा, ‘घटना स्थल पर जमीनी कार्रवाईयों की लाइव फीड देने वाले चार कैमरों की लगातार एक वरिष्ठ स्तर के अधिकारी द्वारा निगरानी की जा रही थी और मंत्री एवं उनकी टीम को रियल टाइम में किए जा रहे सभी कामों बारे में बताया जा रहा था.’

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एक अनुभवी नौकरशाह से राजनेता बने, भारत के रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के लिए आपदा प्रबंधन कोई नई बात नहीं है. 1999 में, बालासोर जिले के कलेक्टर के रूप में, वैष्णव ने एक महाचक्रवात संकट को संभाला है. जमीन पर चुनौतियों में से एक यह सुनिश्चित करना था कि कोई बर्नआउट न हो. व्यस्त काम और उमस भरा मौसम एक चुनौती थी, इससे निपटने के लिए यह सुनिश्चित किया गया था कि घटनास्थल पर काम करने वालों को दोबारा काम पर वापस आने से पहले पर्याप्त ब्रेक और आराम मिले. बर्नआउट अत्यधिक और लंबे समय तक तनाव के कारण होने वाली भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक थकावट की स्थिति को कहते हैं.

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ग्राउंड टीमों में आपसी तालमेल बनाए रखने वाले टीम के एक सदस्य ने एएनआई को बताया, ‘यह प्रभावी ढंग से सुनिश्चित किया गया था कि दुर्घटना स्थल पर या अस्पताल में काम करने वाली हर टीम को समय पर ब्रेक दिया जाए और उन्हें अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रखा जाए.’ शुक्रवार की शाम हादसे के बाद रविवार की रात जब अप लाइन चलने लगी और काम करने लगी, तब जाकर इस टीम ने राहत की सांस ली. जब वहां से पहली मालगाड़ी गुजरी, तो यह बेहद भावुक करने वाला क्षण था. अश्विनी वैष्णव, जो अपनी पूरी टीम के साथ 51 घंटे तक ग्राउंड जीरो पर डटे रहे, उन्होंने और उनकी टीम ने ईश्वर की प्रार्थना में हाथ जोड़कर अपना सिर झुका लिया.

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