नॉन प्रॉफिट संस्था OpenNyAI ने जुगलबंदी नाम का AI बॉट तैयार किया है जो कई भाषाओं में जानकारी देने में सक्षम है. इस बॉट की मदद से अंडर प्रिविलेज्ड लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी और एप्लिकेशन की प्रोसेस बताई जा सकती है.
नई दिल्ली. आम लोगों के जीवन में भी अब ChatGPT ने अपनी जगह बना ली है. भारत की बात करें तो ये चैटबॉट अब भारत के उस वर्क फोर्स की मदद कर रहा है जो टेक सेवी नहीं है और न ही अंग्रेजी में बातें करता है. किसान, घरेलू सहायकों, कचरा बीनकर गुजारा करने वालों की जिंदगी को भी ChatGPT छू रहा है.
ये भी पढ़ें– Samsung के इस धांसू 5G Smartphone पर मिल रही तगड़ी डील, 6 हजार से ज्यादा की बचत का मौका
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु में कचरा बीनने वाले, खाना बनाने वाले और सफाई के काम में लगे लोग एक AI ट्रायल में हिस्सा ले रहे हैं. इस ट्रायल का मकसद देश के गरीब तबके के लोगों को सरकार की उन योजनाओं का लाभ दिलाना है जो आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों को आर्थिक सहायता देती हैं.
AI ट्रायल में हिस्सा लेने वालों में एक नाम विजयलक्ष्मी का भी है. वो बेंगलुरु के जयनगर इलाके में लोगों के घरों में खाना बनाकर के महीने के 8-9 हजार रुपये कमा लेती है. वो अपने स्मार्टफोन का इस्तेमाल केवल फोन पर बात करने के लिए करती है. उसे अंग्रेजी नहीं आती. AI ट्रायल में वो कन्नड़ भाषा में एजुकेशन स्कॉलरशिप के बारे में पूछती है. AI सिस्टम स्थानीय भाषा में ही उसे जवाब देता है कि बेटे की पढ़ाई के लिए उसे कहां से मदद मिल सकती है.
नहीं देना पड़ता है घूस
इस ट्रायल में हिस्सा लेने वाली किसी भी महिला ने ChatGPT के बारे में नहीं सुना था. इनमें से कई ऐसी हैं जिन्होंने मदद की उम्मीद ही छोड़ दी थी क्योंकि उन्हें उनकी अपनी भाषा में कोई जानकारी नहीं मिलती थी और सरकारी कर्मचारी और बिचौलिये उनसे घूस मांगते थे.
ये भी पढ़ें– Adipurush: द केरल स्टोरी के निर्देशक सुदीप्तो सेन ने खरीदीं इतनी टिकट, ये सितारे भी कर चुके स्पॉन्सर
घरों में साफ-सफाई करने वाली यशोदा कहती है, “घूस से खुश नहीं होने पर सरकारी कर्मचारी हमारे एप्लिकेशन को डस्टबिन में फेंक देते थे, रोबोट ऐसा नहीं कर पाएंगे.” वहीं लक्ष्मी कहती है, “घूस नहीं लेने वाले रोबोट तक ठीक है, पर ऐसा रोबोट मत बना देना जो घर के काम करने लगे. मैं रोबोट के हाथों अपना काम नहीं गंवाना चाहती.”
कैसे काम करता है ये मल्टी लैंग्वेज टूल
नॉन प्रॉफिट संस्था OpenNyAI इस फ्री ट्रायल को चला रही है. बेंगलुरु में इसे सौरभ कर्ण और उनकी टीम मैनेज कर रही है. टीम अलग-अलग भारतीय भाषाओं में बोले गए लाखों वाक्यों को एक मशीन ट्रांसलेशन सॉफ्टवेयर में डाला, कई घंटों तक स्पीच रिकग्निशन ट्रायल किए और उसके बाद जुगलबंदी नाम का बॉट तैयार किया. जुगलबंदी एक टेक्स्ट टू स्पीट टूल है, जो कई भाषाओं में ट्रांसलेशन उपलब्ध कराता है. इस टूल में अगर हरियाणा का एक किसान अपनी भाषा में सवाल पूछता है तो बॉट उस सवाल को पहले अंग्रेजी में ट्रांसलेट करता है. उसके आधार पर डेटाबेस में जवाब ढूंढता है. जवाब मिलने के बाद उसे फिर से उस किसान की भाषा में ट्रांसलेट करता है और ह्यूमन वॉइस में वॉट्सऐप के जरिए जवाब देता है.
ये भी पढ़ें–2000 के बदले नकली करेंसी के धोखे में न आएं, ऐसे पहचानें 100, 200 और 500 रुपये का फर्जी नोट
जुगलबंदी को इस तरह से ट्रेन किया गया है कि वो ऐसी जानकारियों को फिल्टर आउट कर देता है जिसमें किसी की पर्सनल डिटेल हो सकती है. जैसे आधार डेटा, फोन नंबर, लोकेशन आदि. हालांकि, सौरभ का मानना है कि भारत जैसे देश में कई सोशल चैलेंजेस भी हैं, जिन्हें एक AI सॉल्व नहीं कर सकता है.