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Shark Tank India-3: कभी घर खर्च चलाने के भी नहीं थे पैसे, आज ये 10वीं पास शख्स है ₹4 करोड़ की कंपनी का मालिक

पिछले कुछ सालों में देश में लोग स्टार्टअप (Startup) शुरू करने को लेकर काफी प्रेरित हुए हैं. जहां पहले सिर्फ बड़े शहरों से ही लोग स्टार्टअप की दुनिया में कदम रखते थे, वहीं अब छोटी जगहों से भी लोग स्टार्टअप शुरू करने लगे हैं. शार्क टैंक इंडिया-3 (Shark Tank India-3) के तीसरे एपिसोड में भी एक ऐसा ही स्टार्टअप आया, जो बिहार के सहरसा का है.

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इस स्टार्टअप की शुरुआत की है एक 10वीं पास शख्स ने, जिसके पास कभी घर का खर्चा तक चलाने के पैसे नहीं थे. बता दें कि इस एपिसोड में ओयो रूम्स के फाउंडर रितेश अग्रवाल भी शार्क की भूमिका में हैं. आइए जानते हैं कैसे बनाई उन्होंने ये कंपनी.

इस स्टार्टअप की शुरुआत बिहार के सहरसा में रहने वाले दिलखुश कुमार और सिद्धार्थ झा ने 2022 में की थी. इस स्टार्टअप का नाम है RodBez, जो रोडवेज से निकला है. यह कंपनी बिहार में अनऑर्गेनाइज्ड टैक्सी सेवा को ऑर्गेनाइज करने का काम कर रही है. दिलखुश बताते हैं कि जब भी बिहार के किसी छोटे शहर से किसी को पटना जाना होता था, तो उसे टैक्सी का दोनों तरफ का किराया देना पड़ता था. ऐसे में ग्राहकों को बहुत ज्यादा पैसे चुकाने पड़ते थे. टैक्सी वालों को वापसी में सवारी नहीं मिलती थी, इसलिए वह वापसी का भी किराया लेते थे. ये सब देखकर उन्होंने रोडबेज की शुरुआत की. 

टैक्सी की कमाई बढ़ती है, ग्राहक का पैसा बचता है

रोडबेज एक मोबाइल ऐप है, जो उबर-ओला की तरह टैक्सी सेवा देता है, लेकिन उनसे बहुत अलग क्रिएटिविटी वाला है. इसके जरिए दिलखुश कुमार खाली आ रही टैक्सी और वापसी वाले ग्राहकों को एक दूसरे से मिलाते हैं. इससे टैक्सी वालों की इनकम हर महीने 10-20 हजार रुपये बढ़ जाती है. वहीं हर यात्री की 1000-1500 रुपये की बचत भी हो जाती है. अपने इस स्टार्टअप के लिए दिलखुश कुमार ने शार्क से 5 फीसदी इक्विटी के बदले 50 लाख रुपये की मांग की.

सिर्फ 10वीं पास हैं दिलखुश कुमार

दिलखुश के पिता एक बस ड्राइवर थे. उनकी शादी 2008 में ही सिर्फ 16 साल की उम्र में हो गई थी. दिलखुश सिर्फ मैट्रिक (10वीं) पास हैं, जो उस वक्त चपरासी की एक वैकेंसी के लिए इंटरव्यू देने गए थे. वहां उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई, क्योंकि वह आईफोन का लोगो नहीं पहचान पाए थे. जब दिलखुश वापस घर आए तो गुस्से में उन्होंने अपने सारे सर्टिफिकेट ही जला डाले और पिता से बोले कि नौकरी नहीं करनी है, इसलिए वह टैक्सी चलाना सिखा दें. उनकी इस बात से दिलखुश के पिता निराश तो हुए, लेकिन फिर उन्होंने टैक्सी चलाना सिखा भी दिया.

इसके बाद दिलखुश कुमार ने 3500 रुपये की सैलरी पर टैक्सी चलाना शुरू कर दिया. कुछ समय में उनका बच्चा भी हो गया, जिसके बाद पैसे कम पड़ने लगे और घर खर्च चलाना मुश्किल हो गया. बच्चे का ख्याल रखना था, इसलिए उन्होंने सोचा कि अधिक पैसे वाला कुछ काम किया जाए. इसके बाद वह पटना चले गए और वहां ड्राइविंग की नौकरी करने लगे. फिर सोचा कुछ और सीखना चाहिए, तो इलेक्ट्रिकल का काम सीखा, फिर फायर का काम सीखा और फिर कंस्ट्रक्शन लाइन में चले गए. 

2016 में शुरू की पहली कंपनी

कंस्ट्रक्शन लाइन में थोड़ा पैसा बनाया और फिर एक कंपनी शुरू की, जो ओला-उबर की तरह सेवा गांव में देती थी. 2016 में ये कंपनी शुरू हुई और 2021 तक वह कंपनी को निवेशकों को सौंप कर बाहर हो गए. जब दिलखुश अपनी इस पहली कंपनी से बाहर हुए थे, उस वक्त उनकी कंपनी हर महीने 8 लाख रुपये का कमीशन कमा रही थी.

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यह कमीशन 10 फीसदी था. यानी कंपनी का हर महीने का टर्नओवर 80 लाख रुपये तक पहुंच चुका था. अपनी इस कंपंनी से उन्होंने इसलिए खुद को अलग किया, क्योंकि महज 20 लाख रुपये के निवेश पर ही उन्होंने 70 फीसदी हिस्सेदारी दे दी थी. 

जुलाई 2022 में शुरू की नई कंपनी

इसके बाद जुलाई 2022 में उन्होंने रोडबेज स्टार्टअप की शुरुआत की और नवंबर के महीने में फंड रेज किया. उन्होंने 4 करोड़ रुपये की वैल्युएशन पर 46 लाख रुपये की फंडिंग उठाई. अभी उनके पास कंपनी का 80 फीसदी है, को-फाउंडर के पास 5 फीसदी है. इसके अलावा उनके गुरु यानी मेंटर और बाकी निवेशकों के पास 15 फीसदी की हिस्सेदारी है. यह कंपनी पटना से बिहार के हर शहर को जोड़ती है. ओला-उबर अभी सिर्फ पटना में है, जबकि बाहर जाने के लिए टू-वे टैक्सी लेनी होती है. दिलखुश ने अपनी पहली कंपनी चलाते वक्त देखा कि उनके पास 40 फीसदी ऐसे राइड आ रहे थे, जो आने और जाने वालों को कुछ घंटों के गैप में कनेक्ट करते थे. इसी समस्या का समाधान करने के लिए उन्होंने रोजबेज की शुरुआत की.

अभी तक वह अपनी कंपनी से 20 टैक्सी वालों को जोड़ चुके हैं. इसके तहत जब एक तरफ से टैक्सी जाती है तो उसमें रोडबेज के ऐप के जरिए ग्राहकों को 40 फीसदी का फायदा होता है. वहीं जब वह वापस आते हैं तो उन्हें ऐप पर ही वापसी वाली टैक्सियों के बारे में पता चल जाता है और वह उनमें से कोई टैक्सी बुक कर सकते हैं. कंपनी वादा करती है कि हर टैक्सी वाले को 45 हजार रुपये महीने की कमाई कराएगी. वहीं अब उनकी कंपनी हर महीने एक टैक्सी से औसतन 65 हजार रुपये कमा रही है, जिसमें से 20 हजार कंपनी रखती है. 

ग्राहक की फ्लाइट छूटी तो सारा खर्चा उठाती है कपंनी

यह कंपनी ग्राहकों को एक कमिटमेंट देती है कि अगर उनकी ट्रेन या फ्लाइट है, तो वह मिस नहीं होगी. अगर कंपनी की वजह से उनकी फ्लाइट मिस हो जाती है, तो अगली फ्लाइट का सारा खर्च कंपनी उठाएगी. इतनी बड़ी कमिटमेंट के चलते कंपनी का भरोसा बढ़ रहा है और खूब मार्केटिंग हो रही है. कोई दिक्कत ना हो, इसलिए एक डेडिकेटेड कैप्टन भी नियुक्त किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि टैक्सी समय से चले और पहुंचे. 

दिलखुश ने बताया कि कैप्टन का यह आइडिया उन्हें रितेश अग्रवाल से मिला, जो ओयो रूम्स में एक कैप्टन के जरिए अच्छी सर्विस देते हैं. वहीं 10 हजार राइड में से सिर्फ एक बार ही कंपनी को दिक्कत हुई और करीब 6 हजार रुपये अगली फ्लाइट के लिए खर्च करने पड़े. मौजूदा वक्त में कंपनी का कमीशन करीब 6 लाख रुपये महीने पर पहुंच चुका है. वह 20 फीसदी कमीशन लेते हैं, ऐसे में उनका मंथली रेवेन्यू करीब 30 लाख रुपये पर पहुंच चुका है.

400 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है बिजनेस

दिलखुश अगले 10 साल में 100-150 करोड़ रुपये का बिजनेस बनाना चाहते हैं. उन्होंने बताया कि वह अधिकतम 2000 राइड रोज कर सकते हैं. जब कंपनी इस आंकड़े तक पहुंच जाएगी. तो करीब 80 करोड़ रुपये कमाएगी यानी सालाना टर्नओवर 400 करोड़ रुपये हो जाएगा. कॉस्ट इफेक्टिव बिजनेस बनाने के लिए उन्होंने बिहार के सारे गांव और शहरों का डेटा स्टोर कर लिया है, ताकि गूगल मैप को बार-बार पैसे ना देने पड़ें. वह सिर्फ तब गूगल से डेटा कॉल कराते हैं, जब ग्राहक बुकिंग कर रहा होता है. 

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विनीता और रितेश अग्रवाल ने किया निवेश

अभी दिलखुश की कंपनी सिर्फ 35 फीसदी ऑर्डर डिलीवर कर पाती है, जबकि डिमांड बहुत है. मौजूदा वक्त में कंपनी को हर महीने 1.5 लाख रुपये का नुकसान हो रहा है. अमन, अनुपम और पीयूष तो इस डील से बाहर हो गए, लेकिन विनीता और रितेश ने साथ मिलकर निवेश किया. दोनों ने 20 लाख रुपये के बदले 5 फीसदी इक्विटी ली और 12 फीसदी की दर पर 2 साल के लिए 30 लाख रुपये का लोन दिया. इस तरह उनके बिजनेस की वैल्यू 4 करोड़ रुपये लगी.

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