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एक ही प्रोडक्ट के लिए औरतें चुका रही हैं पुरुषों से ज्यादा कीमत, यहां किया गया Pink Tax बैन

क्या कभी आपने महिलाओं और पुरुषों के उत्पादों पर ध्यान दिया है! चाहे वो क्रीम हो या शैंपू, या फिर कपडे़- एक ही प्रोडक्ट के लिए महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा दाम चुकाना होता है. इसलिए नहीं कि उनमें क्वालिटी होती है, बल्कि इसलिए कि उनपर महिलाओं के लिए ठप्पा लगा होता है. इसे पिंक टैक्स कहते हैं.

चाहे ऑनलाइन शॉपिंग करें या फिर दुकान पर जाकर, गुलाबी रंग खूब दिखता है. परफ्यूम की गुलाबी बोतल से लेकर गुलाबी लिपस्टिक या बच्चियों के लिए गुलाबी खिलौने. बाजार की मानें तो ये औरतों का रंग है. सालों पहले हुई एक स्टडी ने दावा किया कि गुलाबी के शेड्स देखने-पहनने से दिमाग शांत रहता है तो बाजार ने औरतों के हर प्रोडक्ट को इसी रंग से रंग दिया. इसपर दशकभर से काफी बखेड़ा भी हो रहा है. ये बात तो शायद लगभग सभी जानते होंगे, लेकिन पिंक टैक्स भी है, जो बहुत चुपके से महिलाओं को गरीब बना रहा है.

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क्या है पिंक टैक्स

ये कोई असल टैक्स नहीं, बल्कि वो कीमत है जो औरतें अपने औरत होने की वजह से भर रही हैं. इसमें किसी खास प्रोडक्ट पर अगर For Women लिख दिया जाए तो कीमत ज्यादा हो जाएगी. अगर वो क्रीम है तो बताया जाएगा कि उसमें हार्मफुल केमिकल्स नहीं हैं ताकि महिलाओं की त्वचा मुलायम बनी रहे. तो क्या पुरुषों के लिए जानकर ऐसे उत्पाद बनते हैं कि उनकी स्किन सख्त-खुरदुरी हो जाए! न तो ये सवाल किसी ने पूछा, न ही इसका जवाब किसी के पास है. ऐसे ही अगर हम कपड़े देखें तो उनकी कीमत में भी फर्क दिखता है.

कैसे काम करता है ये

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यहां तक कि किसी खास सर्विस के भी महिलाओं को ज्यादा और उसी सर्विस पर पुरुषों को कम पैसे देने होते हैं. उदाहरण के लिए दिल्ली में ही भ्रमण के लिए निकलें तो कई ऐसी जगहें मिल जाएंगी, जहां टॉयलेट इस्तेमाल करने के लिए दोनों को अलग-अलग चार्ज देना होता है. या फिर ब्यूटी सर्विस लें, जैसे कि सिर में तेल मालिश तो पुरुषों को कम और औरतों को ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे, भले ही दोनों के बाल बिल्कुल बराबर हों. इसी तरह से राउंड गले की एक कॉटन टी-शर्ट, जिसमें समान फैब्रिक लगा हो और कुछ भी अलग न हो, उसपर भी दोनों को अलग चार्ज करना होता है.

इतने पैसे देने होते हैं

बाजार के शुद्ध फायदे के लिए बने इस कंसेप्ट पर इनवेस्टमेंट बैंक जेपीमॉर्गन चेज की स्टडी दावा करती है कि पिंक टैक्स के चलते एक औसत महिला को सालभर में 13 सौ डॉलर से ज्यादा एक्स्ट्रा पैसे देने होते हैं, यानी 1 लाख से भी ज्यादा रुपए. ये बात अमेरिका से लेकर भारत-पाकिस्तान में भी एक जैसी है

. साल 1990 में पहली बार पिंक टैक्स पर लोगों का ध्यान गया कैलिफोर्निया असेंबली ऑफिस ऑफ रिसर्च ने पाया कि स्टेट के 64% से भी ज्यादा स्टोर में भयंकर गड़बड़ी चल रही है. वे एक से कपड़ों की धुलाई और इस्तरी के महिला-पुरुषों से अलग-अलग दाम वसूलते. इसपर कई महिलाओं ने एतराज जताया तो लॉन्ड्री से होते हुए बात आगे जांच हुई और पता लगा कि पूरे बाजार में ही झोल है. हल्ला हुआ और शांत हो गया. हाल ही में इसमें बड़ा अपडेट आया कि साल 2023 की शुरुआत से वहां किसी भी प्रोडक्ट पर केवल जेंडर के चलते एक्स्ट्रा कीमत नहीं वसूली जाएगी. इससे पहले साल 2020 में न्यूयॉर्क ने भी यही नियम बनाया. इसे पिंक टैक्स रिपील एक्ट कहा जाता है.

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ऐसे करेंगे जांच और तुलना

मेयर चेक करेगा कि किसी प्रोडक्ट को बनाने में कितना समय लगता है और क्या-क्या उपयोग हुआ है. मिसाल के तौर पर अगर महिलाओं और पुरुषों के लिए बनाए गए लोशन में समान चीजें इस्तेमाल हुई हों और समय भी उतना ही लगता हो तो दोनों की कीमत भी समान होनी चाहिए. अगर कीमत में फर्क हो तो जुर्माना भरना होगा.

जो भी कंपनी या ब्रांड पिंक टैक्स वसूलता दिखे, उसे 10 हजार डॉलर का जुर्माना भरना होगा. इसके बाद भी अगर उसने नियम तोड़ा तो 1 लाख डॉलर की पेनल्टी लगेगी. उम्मीद जताई जा रही है कि इससे महिलाएं सालाना लाखों रुपए की बचत कर सकेंगी.

कौन से उत्पादों पर अनजाने में ज्यादा पैसे दे रहे हैं

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इसकी वैसे तो एक लंबी लिस्ट है, लेकिन कुछ चीजें बिल्कुल सामने दिख जाएंगी. जैसे डियो, हेयर-केयर प्रोडक्ट, बॉडी वॉश और लोशन जैसे कॉस्मेटिक्स की कीमत में खासा अंतर दिखता है. ये फर्क सिर्फ एडल्ट महिलाओं और पुरुषों के सामान पर नहीं, बल्कि छोटी बच्चियों तक के प्रोडक्ट के साथ है. उनकी फ्रॉक और खिलौने भी उनके हमउम्र बच्चों से महंगे होते हैं. न्यूयॉर्क सिटी के मेयर और बाकी स्टाफ ने बाजार के अलग-अलग प्रोडक्ट्स की तुलना की, जिसमें पाया कि सिर्फ रंग और खुशूब के अलावा ज्यादातर चीजों में कोई फर्क नहीं होता. इसके नतीजे स्टडी ऑफ जेंडर प्राइसिंग इन न्यूयॉर्क सिटी नाम से प्रकाशित हुए.

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक पहले से ही पे-गैप यानी असमान वेतन की परेशानी से जूझ रही महिलाओं पर ये दोगुनी मार है. महिलाएं ज्यादा या समान काम की सैलरी कम पाती हैं, लेकिन खर्च ज्यादा करना पड़ता है. इससे गैर-बराबरी का खतरा बढ़ता ही जाएगा.

लेडी-चिप्स भी आ जाएगी!

भारत में अब तक पिंक टैक्स पर कोई ऐसी स्टडी नहीं हुई जिसपर पब्लिक में बात हो. यहां तक कि भारतीय मूल की पेप्सिको सीईओ इंदिरा नूई ने एक बार लेडी चिप्स लाने तक की पेशकश की थी ताकि वे जब चिप्स खाएं तो आवाज न हो. इसपर भारी हो-हल्ला मचा. यहां तक कि चिप्स के एक ब्रांड ने विरोध में कैंपेन तक चला दिया, जिसके बाद प्रपोजल पर दोबारा कोई बात नहीं हुई. लेकिन वो चिप्स मार्केट में आ जाता तो बेआवाज खाने के लिए भी महिलाएं एक्स्ट्रा पैसे चुका रही होतीं.

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