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बैंक में गिरवी प्रॉपर्टी नहीं बचा पाए! आ गई नीलामी की नौबत, तब भी आपको मिलेंगे ये अधिकार…जान लीजिए नियम

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आज के समय में जिस तरह से महंगाई बढ़ी है, इन स्थितियों में मिडिल क्‍लास परिवार को कार, मकान जैसी बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए अक्‍सर लोन की जरूरत पड़ती है. खासतौर से अपनी कमाई से मकान खरीद पाना आसान नहीं होता. इसलिए तमाम लोग इसके लिए होम लोन लेते हैं. जब भी आप होम लोन लेते हैं तो गारंटी के तौर पर किसी संपत्ति को गिरवी रखना होता है. जब आप लोन की रकम चुका देते हैं तो बैंक से आपको वो प्रॉपर्टी वापस मिल जाती है.

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लेकिन होम लोन बहुत लंबे समय का लोन होता है और इसकी ईएमआई भी अच्‍छी खासी होती है. ऐसे में अगर किसी परिस्थिति के चलते लोन लेने वाला व्‍यक्ति कर्ज न चुका पाए तो कई बार बैंक उस संपत्ति को नीलाम करके रकम को हासिल करता है. हालांकि नीलाम करने की नौबत आने से पहले उधारकर्ता को कई मौके दिए जाते हैं और अगर फिर भी लोन लेने वाला कर्ज न चुका पाए और प्रॉपर्टी नीलाम हो जाए, तो भी लोन लेने वाले के पास कई अधिकार होते हैं. अगर आपने भी होम लोन लिया है तो जरूर जानिए इसके बारे में.

नीलामी से पहले दिए जाते हैं ये मौके

अगर कोई व्‍यक्ति लगातार दो महीने तक लोन की ईएमआई नहीं देता तो बैंक उसे रिमाइंडर भेजता है. रिमाइंडर भेजने के बाद भी जब तीसरी किस्‍त जमा नहीं की जाती है तो लोन लेने वाले को कानूनी नोटिस भेजा जाता है. कानूनी नोटिस मिलने के बाद भी जब ईएमआई का भुगतान नहीं किया जाता है तो बैंक संपत्ति को एनपीए घोषित कर देता है और लोन लेने वाले व्‍यक्ति को डिफॉल्‍टर घोषित कर दिया जाता है.

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आखिरी विकल्‍प होता है नीलामी

ऐसा नहीं कि एनपीए घोषित होते ही आपकी प्रॉपर्टी को नीलाम कर दिया जाता है. एनपीए की भी तीन कैटेगरी होती है- सबस्टैंडर्ड असेट्स, डाउटफुल असेट्स और लॉस असेट्स. कोई लोन खाता एक साल तक सबस्टैंडर्ड असेट्स खाते की श्रेणी में रहता है, इसके बाद डाउटफुल असेट्स बनता है और जब लोन वसूली की उम्मीद नहीं रहती तब उसे ‘लॉस असेट्स’ मान लिया जाता है. लॉस असेट बनने के बाद प्रॉपर्टी को नीलाम किया जाता है. लेकिन नीलामी के मामले में भी बैंक को पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है. 

नीलामी की नौबत आने पर मिलते हैं ये अधिकार

असेट की बिक्री से पहले बैंक या उस वित्तीय संस्थान जहां से आपने लोन लिया है, उस वित्‍तीय संस्‍थान को असेट का उचित मूल्य बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र करने की जरूरत होती है. अगर बॉरोअर को लगता है कि असेट का दाम कम रखा गया है तो वो इस नीलामी को चुनौती दे सकता है.

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अगर असेट को की नीलामी की नौबत को आप रोक नहीं पाए हैं तो नीलामी की प्रक्रिया पर नजर रखें क्‍योंकि आपके पास लोन की वसूली के बाद बची अतिरिक्त रकम को पाने का अधिकार होता है. बैंक को वो बची हुई रकम लेनदार को लौटानी ही होती है.  

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