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इनएक्टिव जनधन अकाउंट, KYC का पता नहीं…सरकारी योजनाओं में पिछड़े प्राइवेट बैंक, वित्तीय सेवा सचिव ने कही ये बात

RBI

वित्तीय सेवा सचिव विवेक जोशी ने मंगलवार को सरकार के वित्तीय समावेशन अभियान में निजी क्षेत्र के बैंकों की कम भागीदारी पर चिंता जताते हुए उनसे ऐसी योजनाओं को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों को बढ़ाने का आह्वान किया.

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जोशी ने 20वें वैश्विक समावेशी वित्तीय शिखर सम्मेलन में बैंकों और वित्तीय संस्थानों से इनएक्टिव अकाउंट्स के लिए केवाईसी, बैंक अकाउंट्स के लिए नॉमिनी की घोषणा और साइबर सुरक्षा को मजबूत करने पर काम करने को कहा.

सरकारी योजनाओं के तहत 

जोशी ने कहा कि वर्तमान में भारत में 92 प्रतिशत वयस्कों के पास कम से कम एक बैंक खाता है और हर साल करीब तीन करोड़ जन धन खाते जोड़े जाते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘ हम उस स्थिति से दूर नहीं हैं जहां देश के सभी वयस्कों को कम से कम एक बुनियादी बैंक खाते से कवर किया जाएगा.’’ पीएम जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) की शुरुआत के बाद से नौ वर्षों में 51 करोड़ बैंक खाते खोले गए हैं. प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) और अटल पेंशन योजना (एपीवाई) प्रमुख सरकारी बीमा योजनाएं हैं. 

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निजी क्षेत्रों के बैंकों की कम भागीदारी

उन्होंने कहा, ‘‘ हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्तीय समावेशन प्रयासों को आगे बढ़ाने में बेहतरीन काम किया है. वित्तीय समावेशन योजनाओं को लोकप्रिय बनाने के लिए काफी प्रयास किए हैं, लेकिन आईडीएफसी फर्स्ट बैंक के अलावा मुख्यधारा के निजी क्षेत्र के बैंकों की भागीदारी में कमी है. इस बारे में निजी क्षेत्र के बैंकों को सरकारी बैकों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है. ’’

उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र के बैंकों ने मुद्रा योजना के तहत ऋण वितरण बढ़ाया है. इसके तहत सूक्ष्म कारोबार क्षेत्र को कर्ज दिया जाता है. लेकिन अन्य वित्तीय समावेशन योजनाओं में उनकी भागीदारी कम है. जोशी ने साथ ही बताया कि वर्तमान में 18 प्रतिशत जन धन योजना खाते निष्क्रिय हैं और बैंकों को खाताधारकों का केवाईसी कराने की दिशा में काम करना चाहिए.

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उन्होंने कहा कि साथ ही ग्राहकों से बैंक खातों के लिए नॉमिनी की घोषणा करने को कहना चाहिए. इसके अलावा साइबर सुरक्षा बैंकों के लिए महत्वपूर्ण पहलू है और जागरूकता बढ़ने से साइबर धोखाधड़ी से निपटने में मदद मिलेगी.

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