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जम्मू और कश्मीर

क्या PoK वापस लेने का है मोदी सरकार का प्लान, अमित शाह के कदम और राजनाथ के संकेत से समझें

इस महीने दो ऐसी घटनाएं हुईं, जिसके बाद से ये चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पाक अधिकृत कश्मीर (Pakistan occupied Kashmir-PoK) को वापस पाने के लिए अंदरखाने कुछ ठोस नीतियां बना रही हैं। सबसे पहले तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में जम्मू-कश्मीर से जुड़े दो विधेयक- जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 पेश किए, जिसे बाद में पारित कर दिया गया। इस बिल पर चर्चा के दौरान अमित शाह ने बताया कि पीओके के लिए 24 सीटें आरक्षित की गई हैं। 

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दूसरी बड़ी बात जो अमित शाह ने कही वह यह कि PoK हमारा है और उस पर हमारे स्टैंड में कोई बदलाव नहीं आया है। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को सही बताया और उसे बरकरार रखा। इसके बाद फिर से पीओके को लेकर लोगों की आकांक्षाएं हिचकोले लेने लगी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में अगले साल सितंबर तक  चुनाव कराने को कहा है।

अनुच्छेद 370 प्रकरण के बाद राजनीतिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि मोदी सरकार निकट भविष्य में पीओके को वापस लेने के लिए कुछ कदम उठा सकती है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और यहां तक ​​कि उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने भी हाल ही में कहा है कि सेना पीओके वापस लेने के लिए तैयार है।

क्या है PoK?

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पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (PoK) जिसे पाकिस्तान कथित तौर पर आजाद कश्मीर कहता आया है, 1947 से ही भारत और पाकिस्तान के बीच हमेशा से एक ज्वलंत मुद्दा रहा है। PoK ऐतिहासिक रूप से जम्मू और कश्मीर की तत्कालीन रियासत का एक हिस्सा था। 1947 में भारत विभाजन के तुरंत बाद, जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में शामिल करा लिया था। इसलिए, पीओके वैध रूप से भारत का अविभाज्य हिस्सा है। अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी सेना द्वारा इस क्षेत्र पर कबायली आक्रमण कर गैरकानूनी तराकी से कब्जा कर लिया गया और तब से वह इलाका पाकिस्तान के कब्जे में है।\

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पीओके में तथाकथित आजाद कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान भी शामिल है। ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट, जिसमें बाल्टिस्तान से शक्सगाम और गिलगित से रस्कम शामिल हैं, जिसे पाकिस्तान ने 1963 में चीन को सौंप दिया था, वह भी पीओके का हिस्सा है। चीन ने इसके बदले में काराकोरम राजमार्ग के निर्माण में पाकिस्तान को सहायता देने का वादा किया था।

PoK के लिए 24 सीटें रिजर्व रखने का क्या मतलब?

जम्मू-कश्मीर के विभाजन से पहले असेंबली में कुल 111 सीटें थीं। इनमें कश्मीर डिवीजन में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में चार सीटें थीं। 24 सीटें पीओके के लिए आरक्षित थीं। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 निरस्त करने और लद्दाख को केंद्रसासित प्रदेश बनाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की 107 सीटें रह गई थीं।

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अब नए परिसीमन के मुताबिक, जम्मू डिवीजन में छह और कश्मीर घाटी के लिए एक और सीटें बढ़ा दी गई हैं। इससे जम्मू-कश्मीर की कुल विधानसभा सीटें अब 90 हो गई हैं। इसमें  पीओके की 24 सीटें शामिल नहीं की गई हैं। इससे साफ है कि सरकार ने इन सीटें को खाली रखने का फैसला किया है। यह पीओके को लेकर सरकार की दूरगामी रणनीति और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यानी जब तक कि पीओके पर पाकिस्तान का कब्जा खत्म नहीं हो जाता, तब तक वो सीटें यूं ही खाली पड़ी रहेंगी और पीओके के लिए आरक्षित रहेंगी।

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