Bharat Rice: बीते एक साल से चावल की खुदरा कीमतों में काफी बढ़ोतरी आते हुए देखी गई है, कीमतों को कंट्रोल करने के लिए सरकार सस्ते दर पर भारत चावल बेचने का फैसला लिया है.
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Bharat Rice Latest News: पिछले एक साल में चावल की खुदरा कीमतों में 15 प्रतिशत की वृद्धि के बीच सरकार कंज्यूमर्स को राहत देने के लिए मंगलवार को 29 रुपये प्रति किलोग्राम की रियायती दर पर ‘भारत चावल’ बाजार में उतारेगी. सब्सिडी वाला चावल पांच किलो और 10 किलो के पैक में उपलब्ध होगा.
एक सरकारी बयान में कहा गया है कि खाद्य मंत्री पीयूष गोयल राष्ट्रीय राजधानी के कर्तव्य पथ पर भारत चावल की पेशकश करेंगे.
पहले चरण में भारतीय खाद्य निगम (FCI) दो सहकारी समितियों, नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NAFED) और नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर फेडरेशन ऑफ इंडिया (NCCF) के साथ-साथ खुदरा चेन केंद्रीय भंडार को पांच लाख टन चावल प्रदान करेगा.
ये एजेंसियां चावल को पांच किलो और 10 किलो में पैक करेंगी और ‘‘भारत’’ ब्रांड के तहत अपने बिक्री केन्द्रों के माध्यम से खुदरा बिक्री करेंगी. चावल को ई-कॉमर्स मंच के जरिये भी बेचा जाएगा.
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मुक्त बाजार बिक्री योजना (OMSS) के माध्यम से समान दर पर थोक यूजर्स को चावल की बिक्री को मिली ठंडी प्रतिक्रिया के बाद सरकार ने एफसीआई चावल की खुदरा बिक्री का रास्ता चुना है.
सरकार को उम्मीद है कि ‘‘भारत चावल’’ के लिए भी अच्छी प्रतिक्रिया मिलेगी, जैसा कि उसे ‘‘भारत आटा’’ के मामले में मिल रहा है, जिसे समान एजेंसियों के माध्यम से 27.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जा रहा है और ‘‘भारत चना’’ को 60 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जा रहा है.
निर्यात पर प्रतिबंध और वर्ष 2023-24 में बंपर उत्पादन के बावजूद खुदरा कीमतें अब भी नियंत्रण में नहीं आई हैं.
सरकार ने जमाखोरी रोकने के लिए खुदरा विक्रेताओं, थोक विक्रेताओं, प्रसंस्करणकर्ताओं और बड़ी खुदरा चेन्स से अपने स्टॉक का खुलासा करने को कहा है.
विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसे समय में जब सरकार 80 करोड़ गरीब राशन कार्ड धारकों को मुफ्त एफसीआई चावल प्रदान करती है, इसकी अधिक महंगाई एफसीआई चावल में नहीं हो सकती क्योंकि एफसीआई के पास भारी स्टॉक है और वह ओएमएसएस के माध्यम से अनाज बेचता है.
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इसलिए इन्फ्लेशन संभवतः चावल की गैर-एफसीआई किस्मों से आ रही है, जिसका गरीबों द्वारा कम उपभोग किया जाता है और यह मुद्रास्फीति के रुझान के बारे में सही तस्वीर नहीं देता है.