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नकली नोट को खत्म करने का केंद्र सरकार का प्रयास कितना लाया रंग, यहां जानें- क्या कहते हैं आंकड़े?

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Fake Currency Issue: पीएम मोदी ने अपने पहले ही कार्यकाल में 8 नवंबर 2016 को देश में 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट को एक झटके में ही बैन करने का ऐलान किया था. इसके पीछे जो तर्क दिए गए थे, उसमें कहां तक कामयाबी मिली है. पेश हैं आंकड़े-

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Fake Currency: 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान नोटबंदी की घोषणा की थी. सरकार ने एक झटके में 500 और 1000 के नोटों को चलन से बाहर करने का ऐलान किया था.

सरकार के फैसले का कितना असर?

नोटबंदी के इस फैसले को लेकर मोदी सरकार लगातार यह तर्क देती रही है कि इससे नकली नोटों पर लगाम लगने के साथ आतंकवाद की फंडिंग करने वालों की भी कमर टूट जाएगी. अब, मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल पूरा होने जा रहा है और नोटबंदी को भी 7 साल से ज्यादा का समय हो चुका है तो ऐसे में यह जानना जरूरी है कि सरकार के इस फैसले का असर कितना हुआ?

70 फीसदी घटे नकली नोट

आंकड़ों की मानें तो 2016 में नोटबंदी के बाद से नकली नोट और इनकी छपाई तेजी से घट रही है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से प्राप्त आंकड़ों की मानें तो वित्त वर्ष 2023 में लगभग 7.98 करोड़ मूल्य के नकली नोटों का पता चला था, जो 2014 में पाए गए 24.84 करोड़ रुपये के नकली नोटों से 70 फीसदी कम है.

500 का नोट ही अब सबसे बड़ी करेंसी

सरकार ने नोटबंदी के बाद 500 और 2000 मूल्य के नये नोट मार्केट में उतारे थे. इसमें से 2000 के नोट को भी अब मार्केट से वापस ले लिया गया है. मतलब साफ है कि देश में पहले जहां 1000 का नोट सबसे बड़ी करेंसी हुआ करती थी, अब उसकी जगह पर 500 का नोट ही सबसे बड़ी करेंसी के रूप में बची है.

नोट आज भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा

नकली नोट की मार्केट में उपस्थिति वैध करेंसी की कीमत को कम कर देती है और इसकी वजह से इन्फ्लेशन की समस्या खड़ी होती है. यह अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है. वैसे नकली नोट आज भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हैं. इसकी वजह यह है कि असली और नकली नोट के बीच अंतर कर पाना लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है. जब तक यह पता चल पाता है कि करेंसी नकली है, तब तक यह अर्थव्यवस्था में फैल चुका होता है. यह भारत ही नहीं दुनिया के लगभग सभी देशों की समस्या है.

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मजबूत सुरक्षा फीचर आए काम

RBI के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि 2016-17 में नकली नोट 43.46 करोड़ रुपये तक पहुंच गए थे. इसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी. तब से, यह वित्त वर्ष 2022 में घटकर 8.26 करोड़ और वित्त वर्ष 2023 में 7.98 करोड़ रुपये हो गया है. इसके पीछे की वजह यह है कि नोटों के साथ जो सुरक्षा फीचर डाले गए हैं, उसने जालसाजों के लिए मौजूदा तंत्र को बायपास करना अधिक कठिन बना दिया है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि इसकी वजह से भी नकली नोटों की संख्या में कमी आई है.

नियमित ट्रेनिंग से नकली नोटों की संख्या घटी

लोकसभा में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने इस पर बताया था कि RBI जाली नोटों को लेकर बैंकों को विभिन्न निर्देश जारी करता है. वह बैंकों और अन्य संगठनों जो भारी मात्रा में नकदी संभालते हैं, उनके कर्मचारियों/अधिकारियों के लिए नकली नोटों का पता लगाने के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है. जिसकी वजह से नकली नोटों की संख्या में कमी आई है.

मार्केट में सबसे अधिक 500 रुपये के नकली नोट

आंकड़ों की मानें तो नकली नोटों में जो सबसे बड़ा नंबर है, वह 500 के नोट का है. वित्त वर्ष 2022 के मुकाबले 2023 में 500 के नकली नोटों की संख्या में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वहीं, 100 रुपये के नकली नोटों में 2022 के मुकाबले 2023 में कमी आई है. जबकि, 200 के नकली नोटों की संख्या इस अवधि में थोड़ी बढ़ी है.

जालसाज बड़ी करेंसी को करते हैं टार्गेट

नोटबंदी के बाद के 2000 के नोट और 1000 के पुराने नोट अब चलन से बाहर हैं. लेकिन, बैंकिंग सिस्टम में इसकी वापसी के बाद इसके नकली नोट पाए गए. इसके पीछे की वजह यह रही है कि नकली नोट बनाने वाले आमतौर पर उच्च मूल्यवर्ग की करेंसी को लक्ष्य करते हैं. ऐसे में अब इसके बाद मार्केट में बचे बड़े नोट 500, 200 और 100 की नकली करेंसी अधिक सामने आ रही है.

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गौरतलब है कि देशभर में प्रचलन में जितनी कुल करेंसी है, उसके अनुसार वित्त वर्ष 2014 में नकली नोटों की हिस्सेदारी 0.0194 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2023 में 0.0024 प्रतिशत हो गई है.

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