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उत्तराखंड

कैलास मानसरोवर यात्रा को लेकर इस बार भी संशय, जानिए दो साल से क्यों नहीं हो रही यात्रा

Mansarovar Yatra 2022 पिछले दो सालों से कोविड महामारी के चलते कैलास मानसरोवर यात्रा स्थगित थी। यात्रा के लिए प्रतिवर्ष दिसंबर माह में देश भर से यात्रा में जाने वाले यात्रियों से आवेदन लिए जाते रहे हैं। इस संबंध में अभी विदेश मंत्रालय में कोई बैठक भी नहीं हुई।

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़: Kailas Mansarovar Yatra 2022 : कैलास मानसरोवर यात्रा हिंदुओं की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा मानी जाती है। अभी तक काफी दुर्गम भी रही है।  यात्रा का संचालन कुमाऊं मंडल विकास निगम करता है। यात्रा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की धारचूला तहसील के भारत चीन सीमा पर स्थित लिपुलेख दर्रे से होती है। कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए प्रतिवर्ष दिसंबर माह में देश भर से यात्रा में जाने वाले यात्रियों से आवेदन लिए जाते रहे हैं। दिसंबर माह में दिल्ली में आवेदन लेने के बाद जनवरी माह में ही विदेश मंत्रालय के तत्वावधान में पहली बैठक होती है।

कैलास मानसरोवर यात्रा (Kailas Mansarovar Yatra) के तीसरे वर्ष भी संचालित होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। यात्रा को लेकर अभी तक दिल्ली में कोई बैठक नहीं हुई है और न ही तैयारियों को लेकर किसी तरह की पहल हो रही है। इस बैठक में पिथौरागढ़ जिले के जिलाधिकारी, केएमवीएन नैनीताल के एमडी, आइटीबीपी के अधिकारी भी मौजूद रहते हैं। इस बैठक के बाद फरवरी प्रथम सप्ताह में यात्रा को लेकर पिथौरागढ़ में बैठक होती आई है। 

बैठक में यात्रा का पूरा खाका तैयार कर विदेश मंत्रालय को भेजा जाता है। इस बार फरवरी का अंतिम सप्ताह प्रारंभ हो चुका है। न तो जनवरी माह में दिल्ली में होने वाली बैठक हुई है और नहीं पिथौरागढ़ में बैठक हुई है।  जिसे लेकर तीसरे वर्ष भी कैलास मानसरोवर यात्रा पर संशय बना हुआ है।

यात्रा मार्ग सुगम होते ही लगा कोरोना का ग्रहण

तीन वर्ष पूर्व तक कैलास मानसरोवर यात्रियों को पांच पड़ावों मेंं कई किमी पैदल चलकर लिपुलेख पहुंचना पड़ता था। आधार शिविर धारचूला से वाहन से नजंग तक जाकर यात्री मालपा होते हुए बूंदी पहुंचते थे। बूंदी में पड़ाव के बाद यात्रा छियालेख, गब्र्यांग होते हुए गुंजी पहुंचती थी। गुंजी में दो दिन प्रवास के बाद कालापानी पड़ाव रहता था। अंतिम पड़ाव नाविढांग होता था। नाविढांग से लिपुलेख तक पहुंचने के बाद भारत के सुरक्षा बल यात्रियों को चीन सेना के अधिकारियों को सौंपते थे। वर्ष 2020 की मई माह में धारचूला से लिपुलेख तक चीन सीमा पर पहली सड़क तैयार हुई। देश के रक्षा मंत्री राजनाथ ङ्क्षसह ने इस सड़क का ई उद्घाटन किया। इस मार्ग के बनने से यात्रियों को चीन सीमा तक वाहन से पहुंचना संभव हुआ, परंतु कोरोना की मार से यात्रा नहीं हो सकी। वर्ष 2021 में भी यात्रा नहीं हुई। इस बार भी संशय बना है। जबकि यात्रा काफी सुगम हो चुकी है। दिल्ली से लिपुलेख तक यात्री वाहन से पहुंच सकते हैं।

प्रतिवर्ष 16 दल यात्रा में जाते रहे हैं

कैलास मानसरोवर यात्रा में प्रतिवर्ष 16 दल जाते रहे हैं। यात्रा का मार्ग पूर्व मेंं दिल्ली से काठगोदाम होते हुए पहला पड़ाव अल्मोड़ा, दूसरे दिन यात्री अल्मोड़ा से वाया मिर्थी होते हुए धारचूला पहुंचते हैं। कैलास मानसरोवर की परिक्रमा पूरी कर दल वापसी में धारचूला से पिथौरागढ़, पिथौरागढ़ से जागेश्वर जाता है। जागेश्वर से काठगोदाम होते हुए दिल्ली लौटता है। केएमवीएन संचालित इस यात्रा में आइटीबीपी की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। आधार शिविर से लिपुलेख तक सुरक्षा, आपदा प्रबंधन व चिकित्सा सुविधा आइटीबीपी देती है। यात्रियों का दिल्ली के बाद उच्च हिमालय में गुंजी में यात्रियों का स्वास्थ्य परीक्षण होता है।

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