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उत्तर प्रदेश

योगी आदित्यनाथ: संन्यासी के पथ से सत्ता की शपथ तक, कैसे उत्तराखंड का युवक बन गया यूपी की सियासत का सूरमा

Yogi Adityanath Oath Ceremony: आज योगी आदित्यनाथ ने इतिहास रचते हुए लगातार दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. बीजेपी के फायरब्रैंड नेता और हिंदुत्व के ‘पोस्टर बॉय’ रहे योगी आदित्यनाथ अब बीजेपी के लिए यूपी में सबसे बड़े नेता बन चुके हैं.

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Yogi Adityanath Profile: तारीख थी 10 मार्च और वक्त था सुबह के 11 बजे का. जैसे-जैसे सूरज उत्तर से पश्चिम की ओर जा रहा था, वैसे-वैसे बीजेपी की सीटें भी बढ़ती जा रही थी. हर कोई दिल थामकर टीवी स्क्रीन पर नजर लगाए बैठा था. दोपहर होते-होते उत्तर प्रदेश की सियासत के कई ऐसे मिथक ध्वस्त हो गए, जिन पर न सिर्फ राजनेता बल्कि लोग भी यकीन करते थे. बीजेपी कार्यकर्ता सड़कों पर आकर जश्न मनाने लगे. मोदी-मोदी के बीच अब एक और शख्स के नारे लग रहे थे, जिनका नाम है योगी आदित्यनाथ.

आज योगी आदित्यनाथ ने इतिहास रचते हुए लगातार दूसरी बार लखनऊ के इकाना स्टेडियम में यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उनके शपथ ग्रहण में पीएम मोदी, कई केंद्रीय मंत्री समेत बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए. बीजेपी के फायरब्रैंड नेता और हिंदुत्व के ‘पोस्टर बॉय’ रहे योगी आदित्यनाथ अब बीजेपी के लिए यूपी में सबसे बड़े नेता बन चुके हैं. लेकिन उनका संन्यासी से सत्ता तक का सफर इतना आसान नहीं रहा. संत के पथ से सत्ता की दूसरी बार शपथ लेने वाले योगी के सियासी करियर में कई उतार-चढ़ाव आए. एक बार हमला भी हुआ. संसद में उनकी आंखें तक भर आईं लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने 2022 के चुनावों में बीजेपी की जीत के रास्ते खोल दिए.  

योगी के सफर पर एक नजर 

उत्तराखंड का पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर तहसील के पंचुर गांव में 5 जून 1972 को एक लड़का पैदा हुआ. घरवालों ने नाम रखा अजय सिंह बिष्ट. आनंद सिंह बिष्ट के सातों बच्चों में सबसे तेज-तर्रार. बड़े हुए तो ग्रेजुएशन की पढ़ाई करते हुए अजय सिंह बिष्ट अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी के सदस्य बन गए. साल 1992 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी से बीएससी की.

उन दिनों देश में राम मंदिर आंदोलन उफान पर था. यूपी की सियासत भी बेहद गरम थी और देश का माहौल भी. युवक अजय का रुझान भी राम मंदिर आंदोलन की ओर हुआ और वह गुरु गोरखनाथ पर रिसर्च करने के लिए साल 1993 में गोरखपुर आए. गोरखपुर में वह महंत और राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के अगुवा महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए और 1994 में पूरी तरह संन्यासी हो गए.

अजय से योगी आदित्यनाथ तक

महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा लेने के बाद अजय सिंह बिष्ट योगी आदित्यनाथ बन गए. महंत अवैद्यनाथ ने योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. पूर्वांचल में इस गोरक्षपीठ मठ का काफी दबदबा है. 12 सितंबर 2014 को जब महंत अवैद्यनाथ ब्रह्मलीन हुए तो योगी गोरक्षपीठ के महंत घोषित किए गए. उस वक्त उनका बीजेपी से भी टकराव था. उन्होंने अपने एक संगठन हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना भी की थी.

गोरक्षपीठ का राजनीति में दबदबा

योगी का राजनीतिक सफर उपलब्धियों से भरा है. राजनीति में योगी गोरक्षपीठ की तीसरी पीढ़ी हैं. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ भी गोरखपुर से विधायक और सांसद रहे थे. इसके बाद महंत अवैद्यनाथ ने भी विधानसभा और लोकसभा दोनों में प्रतिनिधित्व किया.

योगी आदित्यनाथ ने भी गोरक्षपीठ की विरासत को आगे बढ़ाया. साल 1998 में महज 26 वर्ष की उम्र में पहली बार गोरखपुर से बीजेपी के सांसद बने और लगातार पांच बार जीत हासिल की. अपने ढाई दशक के राजनीतिक जीवन में योगी आदित्यनाथ ने पहली बार गोरखपुर से ही विधानसभा का चुनाव लड़ा.

साल 2017 में हर कोई रह गया था दंग

साल 2017 के जब विधानसभा चुनाव के नतीजे तो बीजेपी ने प्रचंड जीत हासिल की. लेकिन पार्टी ने किसी सीएम फेस का ऐलान नहीं किया था. लिहाजा अटकलों का बाजार गरम था. 300 प्लस सीटों पर जीतने वाली बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती थी कि देश का बेहद अहम सूबा किसके हाथों में सौंपा जाए. शुरुआत में नाम मनोज सिन्हा का चला, जो फिलहाल जम्मू-कश्मीर के एलजी हैं.

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लेकिन बीजेपी आलाकमान ने सबको चौंकाते हुए योगी आदित्यनाथ को यूपी चलाने की जिम्मेदारी सौंप दी. हर कोई इस फैसले पर हैरान रह गया था. 2022 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ पर विपक्ष ने बुलडोजर बाबा कहकर कटाक्ष करने की कोशिश की लेकिन योगी आदित्यनाथ ने इसे लपक लिया और चुनाव में बुलडोजर उनकी पहचान बन गया था. 

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