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हिमाचल प्रदेश

Kullu News: हिमाचल में बारिश न होने से तबहा हुई गेंहू की फसल, आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे किसान

हिमाचल प्रदेश में बारिश न होने से गेंहू की फसल तबाह हो गई है। बारिश न होने से जिला भर के किसान चिंतित हो गए हैं। अगर आने वाले दिनों में बारिश नहीं हुई तो खेतों में लगाई फसलें पूर्ण रूप से नष्ट हो जाएगी। जिन इलाकों में किसान सिंचाई के लिए पूरी तरह से बारिश पर निर्भर रहते हैं वे इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।

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दविंद्र ठाकुर, कुल्लू। प्रदेश के जिला कुल्लू में करीब तीन माह बीत जाने के बाद भी कुल्लू में मेघ नहीं बरसे हैं। बारिश न होने से जिला भर के किसान चिंतित हो गए हैं। अगर आने वाले दिनों में बारिश नहीं हुई तो खेतों में लगाई फसलें पूर्ण रूप से नष्ट हो जाएगी। जिन इलाकों में किसान सिंचाई के लिए पूरी तरह से बारिश पर निर्भर रहते हैं वे इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।

सूखे के कारण जिला भर में 8649 हेक्टेयर भूमि पर नुकसान हुआ है। इसमें 5915 हेक्टेयर भूमि में गेंहू, 1225 हेक्टेयर भूमि में जौ, 160 हेक्टेयर भूमि में दालें, 7313 हेक्टेयर भूमि में अनाज, 118 हेक्टेयर भूमि में आलू, 1142 हेक्टेयर भूमि में सब्जी, लहसुन, 75 हेक्टेयर भूमि में तिलहन की फसल को नुकसान हुआ है। इसके अलावा 1336 हेक्टेयर भूमि पर व्यावसायिक फसलों को नुकसान पहुंचा है।

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बारिश न होने से किसानों की बढ़ी मुसीबत

वर्षा न होने के कारण किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए हुए हैं। अभी तक जमीन में नमी नहीं है ऐसे में कुछ किसान फसलों में पानी दे रहे हैं जबकि कुछ किसानों के पास पानी की सुविधा न होने के कारण उन्हें लाखों रुपये का नुकसान हो चुका है। गेहूं की बिजाई तो किसानों ने कर दी थी। गेंहू की फसल उग तो गई लेकिन उगने के बाद बिना पानी के मुरझा गई है।

जिला कुल्लू में 13283 हेक्टेयर भूमि पर कृषि की फसलें उगाई जाती है। इसमें सबसे अधिक गेंहू की फसल 8350 हेक्टेयर भूमि पर होती है। जबकि अनाज 11123 हेक्टेयर भूमि पर होती है। सब्जियां, लहसुन जिला में 1880 हेक्टेयर भूमि पर लगाई गई है।

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मोटे अनाज लगाने को कर रहे प्रेरित

जिला कुल्लू में अब कृषि विभाग किसानों को मोटे अनाज लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। मोटे अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं। धान और गेहूं की तुलना में मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की खपत बहुत कम होती है। इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती।

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इसलिए ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर है। न ही नुकसान का डर बना रहता है। यह मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, हृदय रोग आदि जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए कारगर है। इसमें ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), सवां, कोदा, काउंणी, सिरयारा उगाने के लिए कहा जा रहा है।

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