Labor Wage : देश में मजदूरी की परिभाषा को बदलने पर विचार किया जा रहा है. इसके लिए सरकार आईएलओ की मदद भी मांग रही है. इसका मकसद श्रमिकों को उनकी जरूरत के हिसाब से भुगतान करना है, जो अभी हर राज्य में अलग-अलग रहती है.
नई दिल्ली. सरकार जल्द मजदूरी की परिभाषा बदलने की तैयारी में है. अब न्यूनतम मजदूरी तय करने के बजाए परिवार की जरूरत के हिसाब से वेज तय किया जाएगा. सरकार ने 2025 तक मिनिमम वेज को खत्म कर लिविंग वेज लागू करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) की मदद ली जाएगी.
इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, श्रम विभाग के अधिकारियों ने ILO से मदद मांगी है. इसके लिए क्षमता निर्धारण करने, डाटा जुटाने और लिविंग वेज का क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे जानने के लिए भी आईएलओ से मदद मांगी है. अभी देश में न्यूनतम मजदूरी के आधार पर श्रमिकों को भुगतान किया जाता है. यह पूरे देश में समान रूप से लागू होता है, लेकिन सरकार को श्रमिकों के खर्च के आधार पर वेज लागू करने की जरूरत महसूस हो रही है.
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कैसा होगा नया लिविंग वेज
लिविंग वेज के तहत एक मजदूर की इनकम उसकी आधारभूत जरूरतों के आधार पर तय की जाएगी. इसमें हाउसिंग, खाना, स्वास्थ्य, शिक्षा और कपड़ों की जरूरतों के आधार पर भुगतान तय किया जाएगा. लिहाजा नया वेज लागू होने पर श्रमिकों की कमाई बढ़ जाएगी, क्योंकि इन जरूरतों को पूरी करने के लिए जाहिर तौर पर ज्यादा पैसों की जरूरत पडे़गी. मामले से जुड़े एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि हम सालभर में मिनिमम वेज से आगे बढ़ जाएंगे.
आईएलओ ने अप्रूव्ड कर दिया प्लान
आईएलओ ने पिछले दिनों जेनेवा में हुई बैठक में लिविंग वेज को लेकर हुए इन बदलावों को अप्रूव्ड कर दिया था. भारत जैसे देश में 50 करोड़ से ज्यादा वर्कर्स हैं, जिनमें से 90 फीसदी असंगठित क्षेत्र से आते हैं. यहां डेली मिनिमम वेज 176 रुपये है, जो हर प्रदेश में अलग-अलग तय की जाती है. देखा जाए तो नेशनल वेज को साल 2017 के बाद से बदला ही नहीं गया है.
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2019 में पास हुआ था बिल
वेज को सरकार ने 2019 में ही बिल पास कर दिया था. इसमें सभी राज्यों में एक जैसा मिनिमम वेज लागू करने की बात कही गई थी. भारत साल 1992 में आईएलओ की स्थापना के बाद से ही उसका सदस्य बना हुआ है. माना जा रहा है कि गरीबी को खत्म करने के लिए ही सरकार मिनिमम वेज की जगह लिविंग वेज को लागू करने की तैयारी में है.